हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में (एचएयू) में आयोजित दो दिवसीय राज्य स्तरीय कृषि अधिकारी कार्यशाला शुक्रवार को अनुसंधान निदेशक डॉ. एसके सहरावत की अध्यक्षता में संपन्न हुई। दूसरे दिन दाल व चारा वाली फसलों, तिलहनी फसलों बारानी कृषि एवं कृषि वानिकी और रबी-खरीफ फसलों की समग्र सिफारिशों के बारे में चर्चा की गई।
कार्यशाला के समापन पर डॉ. सहरावत ने कहा कि किसानों को ऐसी कृषि प्रौद्योगिकी व कृषि के विविधिकरण की आवश्यकता है, जिन्हें अपनाकर वे खेती से लाभ अर्जित कर सकें। उन्होंने बदलते जलवायु के अनुरूप कृषि प्रौद्योगिकी विकसित करने व किसानों को सरकार की लाभकारी कृषि योजनाओं से अवगत कराने पर भी बल दिया।
उन्होंने वैज्ञानिकों से आह्वान किया के किसानों की जरूरत के मुताबिक शोध कार्यों व विस्तार कार्यों की रूपरेखा तैयार की जाए और इनके क्रियान्वयन में बढ़चढ़ कर भाग लें, ताकि सरकार का वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुणा करने का सपना साकार हो सके। उन्होंने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों व कृषि अधिकारियों के आपस के तालमेल से ही किसान का भला हो सकता है।
अतिरिक्त कृषि निदेशक (विस्तार) डॉ. सुरेश गहलावत ने हरियाणा सरकार द्वारा चलाई जा रही कृषक हितैषी स्कीमों के बारे में बताया। विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. आरएस हुड्डा ने फसलों से अधिक मुनाफा लेने के लिए रासायनिक उर्वरकों को संतुलित मात्रा में प्रयोग करने पर जोर दिया। इस अवसर पर डॉ. हवा सिंह सहारण सहित अन्य वैज्ञानिक मौजूद रहे।
इन सिफारिशों को मिली मंजूरी
गेहूं में मिश्रित खरपतवारों की रोकथाम के लिए अवकिरा का 60 ग्राम प्रति एकड़ को दो लीटर प्रति एकड़ पेंडीमेथालिन 30 प्रतिशत ईसी के साथ 200 लीटर पानी में मिलाकर 0-3 दिन के अंदर छिड़काव कर सकते हैं।
सरसों की आरएच 761 की सिफारिश इस वर्ष के लिए की गई है। यह राष्ट्रीय स्तर पर जोन-2 (जम्मू, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व उत्तरी राजस्थान) की बारानी परिस्थितियों में समय पर बिजाई के लिए अनुमोदित की गई है। यह 137-143 दिनों में पक कर 10.5 से 11.5 क्विंटल प्रति एकड़ औसत पैदावार देती है। इस किस्म की फलियां लंबी और दानों का आकार मोटा है। इस किस्म में लगभग 40.4 प्रतिशत तेल अंश होता है।
गेहूं की डब्ल्यूएच 1184 किस्म की सिफारिश समय की बिजाई, अधिक उपजाऊ व सिंचित दशा के लिए वर्ष 2019 के लिए की गई है। यह किस्म हरियाणा राज्य के लिए अनुमोदित की गई है। यह बौनी किस्म (99 सेंटीमीटर) 144 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म की औसत पैदावार 24.5 क्विंटल प्रति एकड़ और अधिकतम उपज 28.1 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह किस्म पीला व भूरा रतुआ के लिए अवरोधी है और इस किस्म में प्रोटीन की मात्रा 13.0 प्रतिशत है।
धान की पराली को खेत से हटाने के लिए एक के बाद एक रोटरी स्लेशन, हैरेकर व बेलर का इस्तेमाल करें, ताकि गांठों को औद्योगिक उपयोग के लिए इस्तेमाल किया जा सके।
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स्रोत: अमर उजाला