साल दर साल घाटी में मंद पड़ती जा रही केसर की महक, हांफ गया नेशनल सैफरॉन मिशन

October 09 2019

कश्मीर घाटी के पांपोर और किश्तवाड़ में 32 हेक्टेयर भूमि में उगने वाले केसर का उत्पादन साल दर साल गिरता जा रहा है। जो पैदावार 25 हजार किलोग्राम तक निकलनी चाहिए वह मौजूदा समय में पांच से छह हजार किलोग्राम के बीच ही रह गई है। इससे विदेशों में दो से तीन हजार किलोग्राम केसर ही सप्लाई हो रहा है। इससे करोड़ों का नुकसान भी हो रहा है।

2011 से लेकर 2016 तक केसर का कुल उत्पादन 8 हजार किलोग्राम से घटकर 4 हजार किलोग्राम रह गया था। वर्ष 2017 और 18 में उत्पादन 6200 से 6500 किलोग्राम तक रहा है। इससे पहले साल दर साल उत्पादन में कमी आई है। हर साल ईरान, स्पेन, इस्राइल और जापान में कश्मीर के केसर की डिमांड ज्यादा रहती है।

यहां से हर साल दो से तीन हजार किलोग्राम के आसपास केसर विदेशों में सप्लाई किया जाता है। इसका निर्यात एग्रीकल्चर प्रोसेसिंग फूड डेवलपमेंट अथॉरिटी के माध्यम से किया जाता है। इसकी एवज में विदेशों से 60 करोड़ से 90 करोड़ के आसपास व्यापार किसान करते हैं।

शेरे कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी जम्मू (स्कास्ट-जे) के शोधकर्ताओं के अनुसार केसर की पैदावार में गिरावट आने का कारण सही तरीके से खेती नहीं करना है। किसान परंपरागत तरीके से खेती के बजाए आधुनिक तकनीक से खेती करें तो इसकी पैदावार बढ़ सकती है।

साल दर साल गिरते उत्पादन को बढ़ाने के लिए किश्तवाड़ के वेयरवाड में केसर पार्क कम ट्रेनिंग सेंटर का निर्माण किया जाना है। केसर सेंटर कम पार्क में किसानों को प्रोसेसिंग और हार्वेस्टिंग का प्रशिक्षण दिया जाना है। सेंटर में किसानों से केसर लेकर इसे विदेशों में बेचा जाना है। अभी तक सेंटर निर्माण के लिए कार्रवाई शुरू नहीं हो पाई है।

केंद्र ने नेशनल सैफरॉन मिशन 2010 में लांच किया था। इसका मकसद कश्मीर घाटी में केसर के उत्पादन को बढ़ाना था। सरकार ने शुरुआती चार साल (2010-14) के लिए 373 करोड़ रुपये मंजूर किए। इसे कामयाब बनाने के लिए प्रोजेक्ट को दो साल के लिए और बढ़ाया गया। केसर के 800 हेक्टयेर के खेताें को पुनर्जीवित करने के लिए 40 करोड़ अतिरिक्त दिए गए, लेकिन 150 करोड़ ही इस्तेमाल हो पाए हैं।

चार साल में 250 करोड़ रुपये खर्च नहीं हो पाए हैं। स्कॉस्ट-जे के 2010 में किए अध्ययन के मुताबिक केसर का उत्पादन करने केलिए 128 बोर वेल की जरूरत थी। लेकिन 2010 से अब तक पीएचई केवल तीन बोर वेल लगा सका। मिशन के तहत 85 बोर वेल लगाए जाने थे। 2014 की बाढ़ में 668 करोड़ का केसर प्रभावित हुआ था। इसका अभी तक मुआवजा नहीं मिला है।

वर्ष कितना हुआ केसर (किग्रा.) निर्यात (किग्रा.)
2011 8 हजार 3 हजार के करीब
2012 7 हजार 3 हजार
2013 5 हजार 2 हजार
2014 4500 2500
2015 5 हजार 2300
2016 4 हजार 1600
2017 6200 3 हजार
2018 6500 3200

केसर का उत्पादन बढ़ाने के लिए केसर पार्क कम सेंटर का निर्माण वेयरवाड में किया जा रहा है। मौजूदा समय में पैदावार बढ़ाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। आधुनिक तकनीक से खेती कर उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। विदेशों में उगने वाले केसर का बीज घाटी में लगाने की जरूरत है। 25 हजार किलोग्राम तक केसर की पैदावार होनी चाहिए जबकि पैदावार 5 से 6 हजार किलोग्राम ही रहती है। - जेपी शर्मा, रिसर्च निदेशक, स्कॉस्ट-जे

 

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स्रोत: अमर उजाला