सरकारी नौकरी छोड़ औषधि की खेती कर कमा रहे लाखों !

April 30 2019

आज कई युवा खेती के क्षेत्र में नई मिसाल पेश कर रहे है. वह नई-नई तकनीक को अपनाकर खेती के सहारे लाखों रूपये का मुनाफा कमाने का कार्य कर रहे है. अविनाश कुमार नें एक ऐसी ही मिसाल पेश की है, जोकि उत्तर प्रदेश के गोरखपुर पादरी बाजार के रहने वाले है. आज अविनाश सभी क्षेत्रीय किसानों के साथ-साथ युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन रहे है. इससे पहले अविनाश ने राज्य पुलिस में 6 साल तक सिपाही की नौकरी भी की है. वह हमेशा से ही कुछ नया तलाश करना चाहते थे और इसीलिए उन्होंने बाद में पुलिस की नौकरी को छोड़ दिया और कुछ अलग करने के बारे में सोचा. अविनाश कुमार ने कृषि के क्षेत्र में नई संभावनाओं को तलाशना शुरू कर दिया और इसी में नये -नये सफल प्रयोग करने के बारे में सोचने लगे. आज वह औषधीय खेती करके लाखों रूपये का मुनाफा कमा रहे है.

कर रहे औषधि की खेती

अविनाश का मानना था कि पारंपरिक खेती में लागत ज्यादा है और मुनाफा काफी कम है इसीलिए उन्होंने सोचा कि वह पारंपरिक खेती को नहीं करेंगे. इसीलिए उन्होंने औषधि फसल की खेती करने के बारे में सोचा और औषधीय फसलों को संरक्षित करने के उद्देश्य से जड़ी-बूटियों की खेती को करना शुरू किया. वर्ष 2015 में 1 एकड़ में कौंच की खेती से शुरूआत करने वाले अविनाश कुमार ने किसान साथियों के साथ मिलकर 25 एकड़ में कौंच की खेती को किया है. उन्होंने इसके लिए 4 साल तक अथक प्रयास किया है इससे उन्होंने न केवल मुनाफा कमाया है बल्कि साथी किसानों को मिलकर भी जलभराव वाले स्थानों पर ब्राही, मंडूकपर्णी और वच की खेती करने का कार्य भी कर रहे है. इसके जरिए किसान खुद 2 से 3 लाख रूपये आसानी से कमा लेते है.

सात राज्यों के किसान कर रहे खेती

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, हिमाचल, छत्तीसगढ सहित कुल सात राज्यों के कुल 1500 से अधिक किसान अलग-अलग जलवायु की खेती अलावा साथ में मिलकर ब्राही, मंडकूपर्णी, वच, तुसली, कालमेघ, कौंच, भुई आंवला, कूठ, कुटकी समेत कई तरह की औषधी फसलों की खेती करने का कार्य कर रहे है. आज कुल 50 एकड़ की जगह पर तुलसी की खेती के कार्य को किया जा रहा है जिससे 350 से 400 क्विंटल तुलसी का उत्पादन हो रहा है. इसी तरह से 50 एकड़ कौंच की फसल भी ली जा रही है इससे 150 क्विंटल तक का उत्पादन हो रहा है. कुल 800 एकड़ कृषि भूमि पर यह उगाई जा रही है.

 

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स्रोत: कृषि जागरण