सरकारी अधिकारी ने खड़ा किया देसी बीज बचाने वाले किसानों का कुनबा

February 10 2020

अपनी मिट्टी, अपनी जमीन और अपने देश के लिए एक सरकारी अधिकारी क्या कर सकता है, कृषि अधिकारी पूर्णाशंकर बार्चे इसकी बानगी हैं। सरकारी नौकरी में रहते हुए विभाग के काम से इतर उन्होंने प्रदेशभर में देसी बीज बचाने वाले किसानों का कुनबा खड़ा कर दिया है। दिन में वे सरकारी नौकरी करते हैं और शाम को और छुट्टी के दिन गांवों में जाकर किसानों को देसी बीज बचाने के लिए प्रेरित करते हैं। दूरस्थ आदिवासी किसानों के पास से ज्वार, बाजरा, मक्का, गेहूं आदि के बीज जुटाते हैं और उन्हें ऐसे किसानों के बीच बांटते हैं जो देसी बीज बोकर इसे आगे बढ़ाते हैं।

शासकीय कृषि महाविद्यालय इंदौर में आयोजित जैविक कृषि ज्ञान सम्मेलन में शनिवार को उन्होंने देसी बीजों पर संबोधित किया। बार्चे ने दो टूक कहा कि बढ़ती आबादी को आधार बनाकर वैज्ञानिकों ने हाईब्रिड बीज विकसित करने के लिए देसी बीजों से छेड़छाड़ की। इससे हमारे देसी बीज खत्म हो गए और आज हमें अपनी फसलें बचाने के लिए रासायनिक खेती की ओर जाना पड़ा। रासायनिक खेती केवल हमारा पेट भर रही है, लेकिन इसी से बीमारियां फैल रही हैं। दुर्भाग्य की बात है कि हम अपनी कमाई का 10 फीसदी भी भोजन पर खर्च नहीं कर रहे हैं।

मॉल से तीन हजार रुपए की जींस और दो हजार रुपए की शर्ट हम बिना बहस किए खरीद लाते हैं, लेकिन जैविक खेती करने वाले किसान का 40 रुपए किलो का बंशी गेहूं आपको महंगा लगता है। बार्चे ने सम्मेलन में मौजूद लोगों को सलाह दी कि आपका रसोईघर आपकी खुशहाली का साध्ान है, इसलिए अपने किचन पर ध्यान दें। जैविक खेती करने वाले किसानों से संपर्क करें। उनके खेत को तीर्थ मानकर वहां जाएं। देखें, वे कैसे मेहनत करके आपके लिए जैविक अनाज, फल और सब्जियां पैदा कर रहे हैं।

गुरुकुल का गुरु मंत्र : शहर में शुद्ध दूध-मक्खन चाहिए तो गांवों में दत्तक लीजिए गाय- गाय पर राजनीति करने वालों को गुजरात के गोपालभाई सुतारिया से न केवल सीखना चाहिए, बल्कि उनके गुरुकुल से गुरु मंत्र लेना चाहिए। उन्होंने गाय को न केवल जैविक खेती का आधार बनाया है, बल्कि अहमदाबाद में गाय आधारित गोतीर्थ विद्यापीठ के नाम से गुरुकुल भी चला रहे हैं। जैविक कृषि ज्ञान सम्मेलन में उन्होंने शहरी लोगों को गाय का दूध-मक्खन खाने के लिए अनूठी योजना बताई। उन्होंने कहा कि शहर में जगह और चारे की कमी के कारण जो लोग खुद गाय नहीं पाल सकते, वे गांवों में गो-पालक किसानों से संपर्क करें और उन्हें आर्थिक मदद कर उनकी गायों को दत्तक लें। इससे मिलने वाला दूध वे अपने घर तक बुलवा सकते हैं। इससे किसान भी गाय पालने के लिए प्रेरित होंगे और आपको भी गाय का शुद्ध दूध-घी मिलेगा।

बिना न्याय, संस्कार देने वाला एजुकेशन सिस्टम किस काम का : गोपालभाई बताते हैं कि गुरुकुल में ऐसे शिक्षक पढ़ा रहे हैं जिनके पास ज्ञान है, जरूरी नहीं कि उनके पास डिग्री हो। दो शिक्षक तो ऐसे हैं जो एक भी दिन स्कूल नहीं गए, लेकिन उनकी अंग्रेजी, हिंदी और गायन का ज्ञान सुनेंगे तो दंग रह जाएंगे। हम डिग्री के विरोधी नहीं, लेकिन योग्यता के मापंदड के विरोधी हैं। बच्चों के लिए ऐसा एजुकेशन सिस्टम किस काम का जो न न्याय दे पा रहा हो, न संस्कार।

शहरों में डिग्री तो मिलेगी, नौकरी नहीं

गोपालभाई का कहना है कि हमारा गोवंश आज संकट में है। जब देश की आबादी 25 करोड़ थी, तब हमारा गोवंश 40 करोड़ था। आज देश की आबादी 125 करोड़ से अधिक हो चुकी है, लेकिन देसी गाय आठ करोड़ भी नहीं है। यदि हम ग्रामीण आबादी का गांवों से पलायन रोकना चाहते हैं तो उन्हें गो आधारित खेती पर लौटाना होगा। सरकारों को भी समझना होगा कि शहरों में डिग्री तो मिल जाएगी, लेकिन इतने सारी नौकरियां कहां से लाएंगे? गोतीर्थ विद्यापीठ गुरुकुल के बारे में जानना भी दिलचस्प है। अहमदाबाद के पास इस गुरुकुल में 4 से 12 साल तक के बच्चों को प्रवेश दिया जाता है। उन्हें अंग्रेजी, हिंदी, गुजराती के अलावा वैदिक और आधुनिक गणित पढ़ाया जाता है। इसके साथ ही संगीत, मलखंभ, योग आदि की शिक्षा दी जाती है। बच्चों को गाय दुहना, खेती करना भी सिखाया जाता है। अपने कपड़े-बर्तन वे खुद धोते हैं। बच्चों को पूरी तरह ऑर्गेनिक भोजन दिया जाता है।


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स्रोत: नई दुनिया