पाट और मोट से खेती करने वाली जनजाति फव्वारा और टपक सिंचाई से कर रही है कृषि

November 26 2021

देश में कृषि सबसे प्राचीन कला है जिसे वनों में रहने वाली जनजातियों ने अपने जीवन को संरक्षित करने के लिए सींचा है। प्रदेश में सतपुड़ा और विंध्याचल पर्वत श्रेणी में रहने वाली भील जनजाति ने आरंभ में अपने कुनबे के पालन पोषण के लिए आखेट और खेती की प्राचीन कला को विकसित किया है। तो आज मप्र शासन ने इन्ही आदिम जातियों के लिए नित नवीन योजनाओं से इनके विकास में उजाले उगाने के प्रयास किये हैं। खरगोन जिले के आदिवासी अंचल के दुर्गम पहाडिय़ों में सदियों से खेती करने वाले किसान आज शासन की योजनाओं के बल पर आधुनिक खेती के अवसर भुना पा रहे हैं। कभी यव, शाळ, कुल्थियॉ और ज्वार बाजरे की खेती करने वाले किसान आज टमाटर, मिर्च, कपास, अदरक सौंफ, स्ट्रॉबेरी और अनेक किस्मों की कृषि नई विचारधारा के अनुसार करने में लगे हुए है। प्रारंभ में जब पानी की आवश्यकता हुई तो कुएं खोदकर मोट के सहारे अपने छोटे-छोटे खेतों को सींचने की परंपरा की शुरूआत करने वाले किसान आज जल की कमी को आधुनिक कृषि तकनीक फव्वारा (स्प्रिंकलर) और टपक सिंचाई (ड्रिप इरिगेशन) के द्वारा दूर करने की आधुनिक कला में भी पारंगत हो गए है। किसी जमाने में पाट तकनीक से पहाड़ों की तलहटी में बहने वाले नाले या नदी की धारा को ऊंची पहाड़ी की चोटी तक पहुंचा कर खेती करने वाले आदिम जनजाति किसान आज शासन की नलकूप खनन योजना को भी बखूबी उपयोगी बना रहे है।

दुर्गम मनोरम वादियों में जमराल और मगन की तरह 8768 किसानों ने ड्रिप और 1111 किसानों ने बिछाई स्प्रिंकलर की लाईन

जमराल डुडवे जिले के उन किसानों में से एक हंै जिनके पूर्वज कभी पाट और मोट के सहारे ज्वार और बाजरे की खेती किया करते थे। लेकिन आज परिर्वतन की सदियां गुजरने के बाद जब आधुनिक खेती की बात आयी तो भगवानपुरा जनपद के अतिदुर्गम गांवों में से एक धरमपुरी के किसान जबराल को आधुनिक खेती से नाता जोड़ते हुए देख बड़ी खुशी होती है।

जमराल के पास खेत तो पर्याप्त है खेत के पास ही नदी है भी है लेकिन जब जायद और रबी की फसल की बारी आती है तो वो भी किनारा कर लेती है। ऐसे समय में जबराल को उद्यानिकी विभाग से प्राप्त सहायता स्प्रिंकलर और कृषि विभाग का नलकूप हर समय साथ देता है। अब जमराल कपास के साथ-साथ गेहंू की भी खेती कर पा रहा है।

जमराल की तरह ही झिरन्या जनपद के कटझिरा गांव के मगन है जिनके दादा परदादा भी मोट,पाट और फिर डीजल पंप से खेती करने लगे। लेकिन पानी की कमी से उनको शासन ने निराश नहीं होने दिया। ड्रिप सिस्टम अनुदान पर प्रदान कर आधुनिक खेती करने योग्य हौसला दिया। आज मगन अपने खेत में मिर्च, टमाटर और अब तो अदरक की भी खेती करने लगे हैं। जमराल और मगन की तरह हजारों किसान है जिनको उद्यानिकी और कृषि विभाग की अनुदान सहायता से आधुनिक संसाधन मिले है।

आदिम जाति के किसानों को आधुनिक खेती की तकनीक से जोडऩे के लिए जिले में उद्यानिकी और कृषि विभाग अग्रणी है।

खरगोन जिले में आदिम जाति के किसानों को आधुनिक संसाधन मुहैया कराने में उद्याानिकी विभाग ने 2006 से 2021 तक 8002 किसानों को कुल 6485.56 करोड़ रूपये के अनुदान पर ड्रिप और स्प्रिंकलर जैसी आधुनिक तकनीक से रूबरू कराया है। इतना ही नहीं कृषि विभाग भी जनजाति समुदाय के कृषिगत कार्यों में सहभागी रहा है। कृषि विभाग ने वर्ष 2016-17 से अब तक 1111 किसानों 2196.17 लाख रूपये के स्प्रिंकलर और 766 किसानों को 448.54 लाख रूपये के अनुदान पर ड्रिप सिंचाई यंत्र प्रदान किये है।

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स्रोत: Krishak Jagat