औषधीय गुण, कम फैट और लजीज स्वाद के लिए चर्चित छत्तीसगढ़ के कड़कनाथ मुर्गे कांकेर के साथ ही रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में आ गए हैं। वह भी बाजार भाव की अपेक्षा कम दर पर। हांलाकि गर्मी के दिनों में कड़कनाथ की मांग थोड़ी कम रहती है, लेकिन खाने के शौकीन लोगों के लिए इनका स्वाद सदाबहार है। कृषि विवि के अखिल भारतीय समन्वित कृषि प्रणाली अनुसंधान परियोजना से जुड़े डॉ. महेश भामारी के अनुसार कुछ दिन पहले कांकेर से लगभग 60 कड़कनाथ के चूजे लाए गए। परियोजना के अंतर्गत किसानों को यही प्रशिक्षित करते हैं सिर्फ एक खेती, पशुपालन पर निर्भर न रहें। समन्वित कृषि प्रणाली को किसान अपनाएं, तो उनकी आय बढ़ेगी।
बेहतर प्रशिक्षण केंद्र बना
डॉ. महेश भामारी के अनुसार परियोजना के तहत दस हेक्टेयर में उद्यानिकी फसल, पशुपालन के साथ कड़कनाथ के चूजे का पालन किया जाता है। चूजे जब ढाई महीने के हो जाते हैं तब बेचने के योग्य मान लिया जाता है। हालांकि लोग इस बात का ध्यान रखें यहां पर कड़कनाथ के अंडे या भारी संख्या में ब्रिकी नहीं की जाती है। यहां तो बेहतर खेती करने के साथ समन्वित कृषि प्रणाली के अंतर्गत किसानों को प्रशिक्षित करने का बेहतर कार्य हो रहा है।
फैट फ्री है यह देशी किस्म
कड़कनाथ को स्थानीय भाषा में कालीमासी भी कहते हैं, क्योंकि इसका मांस, चोंच, जुबान, टांगें, चमड़ी आदि सब कुछ काला होता है। यह प्रोटीनयुक्त होता है और इसमें वसा नाममात्र रहता है। रिसर्च वैज्ञानिकों के अनुसार दिल और डायबिटीज के रोगियों के लिए कड़कनाथ बेहतरीन दवा है। इसमें विटामिन बी1, बी2, बी6 और बी12 भरपूर मात्रा में मिलती है। इसका मांस खाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। साथ ही कृषक को बताया जा रहा है कि इस योजना के तहत कैसे वे आमदनी में बढोतरी कर सकते हैं। ज्ञात हो कि एक चूजा 80 रुपये में आता है। लगभग ढाई महीने बाद कड़कनाथ को लगभग 400 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है।
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स्रोत: Nai Dunia