दिशाहीनता से कैसे बदलेगी किसान की दशा

April 01 2019

इस चुनावी मौसम में लगभग सभी राजनीतिक दलों के लिए किसान इन दिनों पहली प्राथमिकता बने हुए हैं, क्योंकि देश में किसान मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि किसानों की दशा को सुधारने के लिए वो प्रयत्न नहीं किए जा रहे हैं, जो अपेक्षित है। भारतीय किसान यूनियन के अनुसार इसी दिशाहीनता के कारण किसान भी पशोपेश में है कि क्या करें।

इस संबंध में भारतीय किसान यूनियन के इंदौर जिला अध्यक्ष श्री बबलू जाधव ने कृषक जगत को बताया कि हर राजनीतिक दल के नेता किसान को चुनाव के समय मोहरा बनाते हैं। चुनाव जीत भी जाते हैं। लेकिन फिर किसान को उसके हाल पर छोड़ देते हैं। श्री जाधव ने राज्य सरकार की दिशाहीनता के कुछ उदाहरण देते हुए बताया कि राज्य  सरकार ने मक्का भावान्तर की राशि 500 रु. से कम कर दी और सोयाबीन के भावान्तर पर चुप्पी साध ली है। इसी तरह गेहूं पर 265 रु. की जगह 165 रु. प्रति क्विंटल की घोषणा कर दी लेकिन चने पर कोई बोनस की घोषणा नहीं की गई है। सरकार ने प्याज की कीमत 800 रुपए प्रति क्विंटल तो तय कर दी लेकिन खरीदी के लिए कोई रोडमेप अभी तक तैयार नहीं किया है।

श्री जाधव ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने नियमित किसानों का दो लाख तक का कोई ऋण माफ़ नहीं किया जबकि ऋण माफ़ी के मुद्दे पर ही किसानों ने वोट दिया था। सरकार किसान हितैषी होने का ढोंग करती है, लेकिन मंडियों में समर्थन मूल्य से नीचे बिकने वाले कृषि उत्पादों की की खरीदी के लिए कोई नीति नहीं बनाई है उन्होंने कहा कि चने का समर्थन मूल्य 4620 रु. प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है, लेकिन कई किसान मंडी में चना 3800 रु. प्रति क्विंटल बेचने को मजबूर है। किसानों को 800 से 1000  रुपए प्रति क्विंटल का घाटा हो रहा है। इसकी भरपाई कौन करेगा। अभी गेहूं -चने की समर्थन मूल्य पर खरीदी व्यवस्थित तरीके से शुरू नहीं हुई है। किसानों को एसएमएस भी नहीं मिले हैं। दूसरी बात यह है कि किसान भी समर्थन मूल्य पर अपनी उपज बेचने में इसलिए रूचि नहीं ले रहे हैं, क्योंकि उन्हें नकद की जरूरत है, जबकि समर्थन मूल्य पर उपज बेचने पर भुगतान 15-20 दिन  में बैंक खाते में जमा होगा जहाँ से बैंक या सोसायटी वाले अपनी वसूली भी कर सकते हैं। सरकार की इसी दिशाहीनता के कारण किसानों की दशा नहीं सुधर पा रही है। 

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स्रोत: Krishak Jagat