मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ खेतों में बहाया पसीना, मेहनत ने खिलाया बांगवा

January 14 2020

अपनी मेहनत और लगन से एमबीए पास एक युवक ने युवाओं के लिए खेती में नई राह खोल दी। फूलों की खेती से युवा किसान अपने सपनों को महका रहा है साथ ही दर्जनों परिवार भी फल-फूल रहे हैं। 

खेती में नए प्रयोग कर युवाओं के लिए भोगांव के गांव छिवकरिया के रविपाल ने नए रास्ते खोले हैं। मैनपुरी जनपद में रहकर स्नातक  की शिक्षा लेने के बाद रविपाल ने मथुरा के सचदेवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट मथुरा से एमबीए की डिग्री ली हासिल की। कैंपस सलेक्शन में उन्हें ढाई लाख रुपए पैकेज की नौकरी भी मिली। लेकिन्र यहां उनका मन नहीं लगा। 

कुछ महीने के अंतराल में ही उन्होंने नोएडा में टाटा मोटर्स में बिजनेस एरिया मैनेजर के पद पर नौकरी की। नौकरी के दौरान ही रवि एक दिन कृषि विज्ञान केंद्र दिल्ली घूमने के लिए गए। कृषि में महारथ हासिल करने वाले कृषि वैज्ञानिकों से जब रवि ने खेती के बारे में बातचीत की तो खेती के प्रति रवि का नजरिया ही बदल गया। 

वैज्ञानिकों से मिलने के बाद छह महीने बाद ही रवि नौकरी छोड़कर घर आ गए। जब घर में फूलों की खेती करने की इच्छा जताई तो पिता वेदराम पाल ने कहा कि नौकरी से अच्छा कुछ नहीं। सभी का विरोध झेलकर रवि ने पहली साल दो बीघा गेंदे की खेती की। फसल बेहतर हुई और दाम भी अच्छा मिला, पहली ही फसल में उन्हें 75 हजार रुपये मिले। 

इसके बाद साल दर साल गेंदा की खेत का ये क्षेत्रफल बढ़ता चला गया। आज जहां रवि के पास खुद की 10 बीघा से अधिक गेंदे की खेती है तो वहीं अन्य किसानों से जुड़कर लगभग सौ बीघा में उन्होंने गेंदा लगवाया है। आज उनके खेतों में उगा गेंदा राजधानी में महक रहा है। रोजाना वे फूलों को दिल्ली, कानपुर, आगरा की मंडियों में भेजते हैं।

सबसे पहली बार रवि ने देसी गेंदा ही बोया था। फसल अच्छी हुई, लेकिन फूल छोटा होने के चलते पैदावार कम हुई। कृषि वैज्ञानिकों से बातचीत के बाद उन्होंने थाईलैंड से बीज खरीदा। इसकी पैदावार देसी गेंदा की अपेक्षा लगभग चार गुनी थी। इसके बाद से ही रवि लगातार थाईलैंड से बीज मंगा रहे हैं।  

रवि बताते हैं कि गेंदा की खेती कभी भी घाटे में नहीं जाती है। हालांकि कीमत पर बहुत कुछ निर्भर करता है। वे बताते हैं कि अगर रेट अच्छा मिल जाए तो एक बीघा में 20-30 हजार रुपये तक की बचत हो जाती है। जबकि अन्य फसलों में बमुश्किल सात से आठ हजार रुपये ही मिल पाते हैं।

 

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स्रोत: अमर उजाला