भीमा शुभ्रा प्याज को भा गई छत्तीसगढ़ की आबोहवा

December 23 2019

देशभर में प्याज की कीमतों को लेकर चर्चा है, जिससे किसान से लेकर किचन तक प्याज के विकल्प तलाशे जा रहे है। ऐसे में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय प्रदेश में इस संकट से उबरने के लिए प्याज की चर्चित वैरायटी भीमा-शु्रभा पर रिसर्च करने की तैयारी कर रहा है। प्रोजेक्ट से जुड़े कृषि वैज्ञानिको की माने तो उन्नत पांच प्याज की किस्मों में से छत्तीसगढ़ की आबोहवा में भीमा-शु्रभा प्याज की पैदावार अच्छी पायी गई है। खासकर खरीफ सीजन में इस प्याज की पैदावार 15 से 18 टन प्रति हेक्टयर पैदावार हुई ।

खरीफ में प्याज की खेती कम की जाती है, लेकिन इसके विपरीत जाकर कृषि विशेषज्ञों ने प्याज की फसल लगाई और उसके सफल परिणाम में प्राप्त किए। ठीक इसी तरह से यदि प्याज का रकबा इन इलाकों में किसान बढ़ाए तो खरीफ में प्याज का उत्पादन होगा। जिससे प्रदेश में प्याज का शार्टेज नहीं होगा।

एक वर्ष पहले निकाला तोड़

कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों ने प्याज की शार्टेज से निबटने के लिए लगभग एक वर्ष पहले एक तरकीब ढूंढ़ निकाली । खरीफ के सीजन में प्याज की तीन अलग-अलग वैरायटी पर शोध हुए थे,जिसमें से एक भीमा-शुभ्रा (सफेद प्याज) के बेहतर परिणाम प्राप्त हुए हैं।

केवीके में मजह 84 स्क्वेयर फीट में 52 किलो प्याज का उत्पादन हुआ। एक प्याज का वजन करीब 180 से 200 ग्राम । वहीं विशेषज्ञ डॉ.एसपी सिंह बताते हैं कि प्रति एकड़ इसकी पैदावार क्षमता 20 टन से भी अधिक है, जो कि रबी में ली जाने वाली फसल से दोगुना है।

आमतौर पर रबी में होती है खेती

अमूमन प्याज की खेती रबी के सीजन में की जाती है। यदि नई तकनीक को अमल में लाया गया तो प्रदेश भर में प्याज की अच्छी फसल लेकर आपूर्ति और मांग के बीच संतुलन बनाया जा सकता है।

प्रदेश के अधिकांश मैदानी क्षेत्रों में बालुई दोमट मिट्टी पाई जाती है, जो इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। इतना ही नहीं रायगढ़, बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग जांजगीर जैसे कई जिलों के माइक्रो एग्रो क्लाइमेटिक कंडीशन भी एक समान है। जहां प्याज की खेती आसानी से की जा सकती है।

चर्चित प्याज की वेरायटी

  • भीमा शु्रभा -सफेद प्याज के रूप में इसे पहचाना जाता है। खरीफ में यह 110-115 दिन और पछेती खरीफ में 120-130 दिन में यह पककर तैयार हो जाती है।
  • भीमा सुपर-लाल प्याज किस्म के रूप में जाना जाता है। खरीफ में 22-22 टन/है. और पछेती खरीफ में 40-45 टन/है. तक उपज देती है।
  • भीमा गहरा लाल-गहरे, लाल रंग के चपटे एवं गोलाकार कंद होते हैं। 20-22 टन/है. औसतन उपज प्राप्त होती है। 95-100 दिन में कंद पककर तैयार हो जाते हैं।

 

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स्रोत: नई दुनिया