बीज उत्पादन कर बदली तकदीर, कभी थी पांच एकड़ जमीन, आज 115 एकड़ पर करते हैं खेती

December 24 2019

कभी उनके पास पांच एकड़ जमीन थी और वह भी बंजर थी। इस जमीन को मेहनत कर कृषि योग्य बनाया और इस पर परंपरागत ढंग से खेती करनी शुरू कर दी। खेती से गुजारा नहीं होता था तो साथ-साथ पशु पालने लगे। मगर उनका नई बीजों के प्रति शौक ने उनकी जिंदगी बदल ली। आज उनके पास खुद की 32 एकड़ जमीन है और वह 115 एकड़ जमीन पर खेती करते हैं। 

वह बेशक आठवीं पास है, लेकिन उनका उठना-बैठना बड़े-बड़े कृषि वैज्ञानिकों के साथ है। यह कहना है कि पानीपत के उरलाना खुर्द निवासी किसान प्रीतम सिंह का। प्रीतम को कृषि क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों के कारण एचएयू की तरफ से किसान रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।

प्रीतम सिंह ने बताया कि देश की आजादी के समय वह सरकार की तरफ से उन्हें उत्तर प्रदेश बरेली जिले में कुछ जमीन दी गई। मगर वहां उनके साथ धोखाधड़ी हुई। वर्ष 1980 में वह परिवार सहित पानीपत के गांव उरलाना खुर्द में आ गए। यहां उन्होंने पांच एकड़ जमीन ली, जो कि बंजर थी। धीरे-धीरे उन्होंने उसे खेती योग्य बनाया। घर चलाने के लिए उन्हें पशुपालन शुरू किया। 

एक बार एचएयू के एक वैज्ञानिक ने उन्हें अलग-अलग किस्मों के बीज दिए। उन्होंने उस बीज को मल्टीप्लाई कर बेचना शुरू कर दिया। इसके बाद से उसे जब कभी कोई नई किस्म मिलती तो वह उसकी मल्टीप्लाई करता। इसके बाद उसने नई दिल्ली स्थित पूसा इंस्टीट्यूट और केवीके के लिए बीज उत्पादन करना शुरू कर दिया। उसने पद्मश्री अवॉर्डी डॉ. वीपी सिंह के साथ भी काफी काम किया। 

आज के समय उसके पास कृषि की सभी आधुनिक यंत्र हैं। प्रीतम सिंह के मुताबिक कृषि आज के समय में घाटे का सौदा नहीं है। बस किसानों को वही फसल उगानी चाहिए, जिसे वह अच्छे दामों में बेच सके। अगर किसान इस मंत्र पर चलेंगे तो खेती कभी घाटे का सौदा नहीं बनेगी

परंपरागत खेती छोड़कर बनें प्रगतिशील किसान : कुलबीर सिंह

किसान रत्न से सम्मानित होने वाले कुरुक्षेत्र के मंगोली जाटान निवासी कुलबीर सिंह के मुताबिक उनके पिता के पास पांच एकड़ जमीन थी, जिस पर वह परंपरागत ढंग से खेती करते थे। मगर उसकी खेती के बजाय मधुमक्खी पालन में रुचि थी। एमए करने के बाद उसने मधुमक्खी पालन शुरू कर दिया। वह पहला किसान था, जिसने ग्राफ्टिंग तकनीक की मदद से रानी मधुमक्खी तैयार की और उसे बेचा। 

इसके बाद उसे डेयरी व्यवसाय शुरू किया। शुरू में उसके पास पांच गाय थी, लेकिन आज उसके पास 60 गायें हैं। वह खुद दूध प्रोडक्ट जैसे लस्सी, पनीर व देसी घी बनाकर बेचता है। यही नहीं जब उसे पशुओं के चारे की जरूरत पड़ी तो मजबूरन उसे खेती भी करनी पड़ी। यहां भी उसने मिश्रित खेती की, जैसे वह गन्ने की फसल के साथ प्याज व फूलगोभी की फसल लेता है। करेले के साथ टमाटर की फसल लेता है। कुलबीर सिंह का कहना है कि अगर परंपरागत खेती से हटकर खेती की जाए तो खेती कभी घाटे का सौदा नहीं बनेगी।

इन किसानों को भी किया गया सम्मानित

इस दौरान निर्मल सिंह (यमुनानगर), सुरेश कुमार एवं सिमरजीत कौर (फतेहाबाद), जैत कुमार एवं शमशेर सिंह संधू (सिरसा), संदीप व अनीता (रोहतक), सुरेश गोयल व राम भगत (हिसार), बीजन सिंह रावत (पलवल), ऋषिराम एवं रीना देवी (जींद), महिंद्र सिंह (कैथल), रोहित कुमार (अंबाला),  किशन लाल (महेंद्रगढ़), हाकम सिंह (पंचकूला), महेश कुमार (सोनीपत), मुकेश कुमार एवं रजनी (फरीदाबाद), रामप्रसाद (बावल), विकास चौधरी (करनाल), धर्मबीर एवं गोमती देवी (झज्जर) और विकास फौगाट (भिवानी) को भी सम्मानित किया गया।

 

इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह खबर अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है।

स्रोत: अमर उजाला