सारूडीह के बागानों में अब चाय के साथ मसालों की खेती होगी

August 26 2019

छत्तीसगढ़ के वन विभाग के जरिए सारूडीह में विकसित किए गए चाय बागान में मसालों की खेती का नया प्रयोग शुरू किया है. दरअसल चाय बागान संचालक समूह और वन विभाग के जरिए कई तरह के यहां मसालों के पौधों को लगाया गया है. अभी तक मसालों के पौधों का ग्रोथ काफी बेहतर था. अगर यह प्रयोग पूरी तरह से सफल हुआ तो जिले के किसानों को मसालों की खेती के जरिए रोजगार का एक बेहतर विकल्प मिल जाएगा. यह मसाले कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसलों में से एक है. वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि जशपुर की जलवायु  मसालों की खेती के लिए काफी बेहतर होती है. इसीलिए चाय बगान के पास जो भी प्लेन जगह पड़ी हुई है वहां पर मसालों के पौधे को लगाया गया है.

बागान में उग रहे काफी पौधे

बागान में तेजपत्ता, लौंग, दालचीनी, वेनेगर, अमरूद, तुलसी, लेमन ग्रास, जैतून, काली मिर्च, लहसुन, झरबेरा, जंगली धनिया, धतुरा, मदार और एलोवेरा लगाए गए है. इसमें से कई मसाले तो पहले से जिले के किसान अपनी बाड़ियों में उगाते आए है. यहां पर तेजपत्ते का काफी बेहतर ग्रोथ है.

चाय में आएगी मसालों की खुशबू

प्रोसेसिंग के वक्त चाय अपने आसपास के वातावरण की खुशबू या बदबू सोख लेती है. गत वर्ष अक्टूबर महीने में जब सारूडीह चाय बगान में चाय की पूरी प्रोसेसिंग करके पहली खेप में चायपत्ती को तैयार किया था. उस समय जले हुए का स्वाद चाय में आ रहा था. चाय प्रोसेसिंग के वक्त चाय की पत्तियां भट्ठे से उठ रहे धुएं को सोख रही है, इसीलिए इसका स्वाद काफी जला हुआ सा नजर आ रहा है.  अब जब मसाले के पौधे तैयार हो रहे है तो इस बात की पूरी संभावना है कि चाय की पत्तियां मसालों की गंध सोख ले और यहां चाय से कुदरती मसालों की खुशबू आएगी.

दुनियाभर में 60 प्रतिशत मसाला की आपूर्ति देश से

बतां दे कि विषम परिस्थितियों और जलवायु में भी मसाला उत्पादित किया जा रहा है. कम लागत में अच्छी पैदावार के साथ ही आपको इससे बेहतर आय मिल जाती है. इसलिए राजस्थान और गुजरात देशभर में बीज मसालों के कटोरे के नाम से जाने जाते है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा बीज मसाला उत्पादक उपभोक्ता वाला देश है. दुनिया की करीब 60 प्रतिशत मसाले की आपूर्ति भारत से ही होती है. देश में हर साल अनुमानित 12.50 लाख हेक्येटर में मसालों की खेती होती है जिससे करीब 10.5 लाख टन मसालों की खेती की जाती है.

 

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स्रोत: कृषि जागरण