जानिए देश में कितनी है किसानों की संख्या और GDP में कृषि क्षेत्र का कितना है हिस्सा

November 28 2020

केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसान दिल्ली कूच पर निकले हैं। गुरुवार को पंजाब से लेकर हरियाणा में जगह-जगह किसानों के संघर्ष के बाद शुक्रवार को भी उनका मार्च जारी है। किसानों पर आज भी आंसू गैस के गोले दागे गए लेकिन उनकी हिम्मत नहीं डिगी है। किसान डटे हुए हैं और वह आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। 

जीडीपी में कृषि क्षेत्र की 14 फीसदी हिस्सेदारी  

देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 14 फीसदी से ज्यादा है और कोरोना वायरस महामारी की वजह से उत्पन्न हुई आर्थिक मंदी के बीच 2020-21 में किसानों की हिस्सेदारी और भी अधिक होने की उम्मीद है।

खेती पर निर्भर हैं 10.07 करोड़ परिवार 

राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में 10.07 करोड़ परिवार खेती पर निर्भर हैं। यह संख्या देश के कुल परिवारों का 48 फीसदी है। जबकि एक कृषि आधारित परिवार में वर्ष 2016-17 में औसतन सदस्य संख्या 4.9 थी। हालांकि अगल-अलग राज्यों में सदस्य की संख्या भी अलग है। जैसे, अगर हम केरल की बात करें, तो वहां एक परिवार में चार सदस्य हैं, उत्तर प्रदेश में यह संख्या छह है, मणिपुर में 6.4, पंजाब में 5.2, बिहार में 5.5, हरियाणा में 5.3 कर्नाटक और मध्य प्रदेश में एक कृषि आधारित परिवार में औसतन 4.5 सदस्य हैं।

राजधानी की सीमाओं पर पुलिस का बंदोबस्त

नए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली चलो मार्च को देखते हुए गुरुवार को राजधानी की सभी सीमाओं पर पुलिस का भारी बंदोबस्त रहा। दिल्ली पुलिस के अलावा अतिरिक्त सुरक्षा बलों की कई कंपनियों को लगभग सभी बॉर्डर पर तैनात किया गया। हालांकि, पंजाब से दिल्ली की ओर चले किसानों को हरियाणा में अलग-अलग जगहों रोक लिया गया, लेकिन इन किसानों के समर्थन में आसपास के कुछ किसान दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचते रहे।

विरोध के मुख्य कारण क्या हैं?

मुख्य तौर पर किसानों को दूसरे कानून पर आपत्ति है, क्योंकि एपीएमसी में किसानों को अपनी फसल का न्यूनतम मूल्य मिलता है, इस कानून में यह साफ नहीं किया गया है कि मंडी के बाहर किसानों को न्यूनतम मूल्य मिलेगा या नहीं। ऐसे में हो सकता है कि किसी फसल का ज्यादा उत्पादन होने पर व्यापारी किसानों को कम कीमत पर फसल बेचने पर मजबूर करें।

इसके साथ ही सरकार फसल के भंडारण का अनुमति दे रही है लेकिन किसानों के पास इतने संसाधन नहीं होते हैं कि वो सब्जियों या फलों का भंडारण कर सकें। ऐसे में वो व्यापारियों को कम कीमत पर अपनी फसल बेच सकते हैं और व्यापारी अपने पास उनकी फसल जमा कर सकते हैं। क्योंकि व्यापारी के भंडारण की सुविधा अच्छी होगी तो वो अपने हिसाब से बाजार में फसल को बेचेंगे। किसानों का कहना है कि ऐसा करने से फसल की कीमत तय करने का अधिकार बड़े व्यापारियों या कंपनियों के पास आ जाएगा और किसानों की भूमिका ना के बराबर हो जाएगी।

 

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स्रोत: Amar Ujala