केंद्र सरकार ने दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए रणनीति तैयार की

May 08 2021

कृषि मंत्रालय ने देश में दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के उद्देश्य से इस  खरीफ  सत्र में कार्यान्वयन के लिए एक विशेष खरीफ रणनीति तैयार की है। राज्य सरकारों के साथ परामर्श के माध्यम से, अरहर, मूंग और उड़द की बुआई के लिए रकबा बढ़ाने और उत्पादकता बढ़ाने दोनों के लिए एक विस्तृत योजना तैयार की गई है। रणनीति के तहत, सभी उच्च उपज वाली किस्मों hyv के बीजों का उपयोग करना शामिल है। केंद्रीय बीज एजेंसियों या राज्यों में उपलब्ध यह उच्च उपज की किस्म वाले बीज, एक से अधिक फसल और एकल फसल के माध्यम से बुआई का रकबा बढ़ाने वाले क्षेत्र में नि:शुल्क वितरित किए जाएंगे।

आने वाले खरीफ 2021 सत्र के लिए, 20 लाख मिनी बीज किट ( वर्ष 2020-21 की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक) वितरित करने का प्रस्ताव है। इन मिनी बीज किट्स का कुल मूल्य लगभग 82.01 करोड़ रुपये है। ये अरहर, मूंग और उड़द के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए हैं ।

खरीफ सत्र 2021 में केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित एक से अधिक फसल के लिए और उड़द की एकमात्र फसल के लिए उपयोग की जाने वाली उपरोक्त मिनी किट्स 4.05 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करेगी। इसके अतिरिक्त, राज्यों द्वारा एक से अधिक फसल और बुआई का रकबा बढ़ाने का सामान्य कार्यक्रम केंद्र और राज्य के बीच साझेदारी के आधार पर जारी रहेगा।

  • अरहर को एक से अधिक फसल के लिए 11 राज्यों और 187 जिलों में कवर किया जाएगा। राज्य : , आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश।
  • मूंग इंटरक्रॉपिंग – 9 राज्यों और 85 जिलों में ।
  • उड़द इंटरक्रॉपिंग – 6 राज्यों और 60 जिलों में ।

खरीफ मिनी किट कार्यक्रम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए, संबंधित जिले के साथ बड़े पैमाने पर पहुंच बनाने का कार्यक्रम केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा वेबिनार श्रृंखला के माध्यम से होगा  ताकि यह सुनिश्चित हो  सके कि इस कार्यक्र्म में कोई गड़बड़ी नहीं है। किसानों के लिए प्रभावी कार्यान्वयन और प्रशिक्षण के लिए कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी ) और कृविके को भी शामिल किया जायेगा।

केंद्रीय एजेंसियों / राज्य एजेंसियों द्वारा मिनी किट 15 जून  तक जिला स्तर तक पहुंचाई जाएंगी,.

आयात का दबाव कम होगा

देश में दालों की मांग को पूरा करने के लिए भारत अब भी 4 लाख टन अरहर, 0.6 लाख टन मूंग और लगभग 3 लाख टन उड़द का आयात कर रहा है। विशेष कार्यक्रम तीन दालों, अरहर, मूंग और उड़द का उत्पादन और उत्पादकता को काफी हद तक बढ़ा देगा और आयात के बोझ को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा और भारत को दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनने में मदद करेगा।

उत्पादन कार्यक्रम की पृष्ठभूमि

वर्ष 2007-08 में 14.76 मिलियन टन उत्पादन था जो  अब 2020-2021 (दूसरा अग्रिम अनुमान) में 24.42 मिलियन टन तक पहुंच गया है जो कि 65 प्रतिशत की वृद्धि बताता  है। यह सफलता काफी हद तक केंद्रीय स्तर पर कई महत्वपूर्ण प्रयासों के कारण मिली है। सरकार लगातार दालों के तहत नए क्षेत्रों को लाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, साथ ही यह सुनिश्चित करती है कि खेती के तहत मौजूदा क्षेत्रों में उत्पादकता में भी वृद्धि हो। इसलिए, हर प्रकार के विस्तार के दृष्टिकोण के माध्यम से दालों के उत्पादन और उत्पादकता को निरंतर बनाए रखा जाना चाहिए और बढ़ाया जाना चाहिए।

वर्ष 2014-15 से, बजट बढ़ाने के साथ साथ  दालों के उत्पादन को बढ़ाने पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया गया है। विभिन्न राज्यों / मौसमों में विशेष कार्यक्रमों, कम उत्पादकता वाले जिलों में विशेष कार्य योजना,  बढ़ी हुई लाइन और क्लस्टर तकनीक ,  रिज-फरो, अरहर रोपाई / इंटरक्रॉपिंग, आदि  पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसके अलावा 11 राज्यों में दालों के लिए 119 एफपीओ भी बनाए गए। वर्ष 2016-17 से, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत, 644 जिलों को दाल उत्पादन  कार्यक्रम में शामिल किया गया है।

हालांकि, उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रयास किसानों को गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराने पर केंद्रित रहा है। इस प्रयास की ओर एक बड़ा कदम 2016-17 में उठाया गया, जिसमें 24 राज्यों में 150 दालों के बीज के बडे केंद्रों का निर्माण किया गया। इसमें 97 जिलों में में कृषि-विज्ञान केंद्रों, 46 राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और 7 आईसीएआर संस्थानों को शामिल किया गया, ताकि स्थान-विशिष्ट किस्मों और गुणवत्ता वाले बीजों की मात्रा प्रदान की जा सके। इसके साथ ही, 08 राज्यों में 12 आईसीएआर / राज्यों  के कृषि विश्वविद्यालय  केंद्रों में प्रजनक बीज उत्पादन केंद्रों के बुनियादी ढांचे को किस्मों के प्रतिस्थापन और बीज प्रतिस्थापन बढ़ाने के लिए बनाया गया था।

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स्रोत: krishakjagat