अरब देश जॉर्डन के रसायनों से हिमाचल प्रदेश के सेब में मिठास और सुगंध घुल रही है। म्यूरेट ऑफ पोटाश, सल्फेट ऑफ पोटाश जैसे उर्वरकों के लिए जॉर्डन से कच्चा माल आ रहा है। प्रदेश के सेब बागवान इन दिनों अपने बगीचों में ये खादें डाल रहे हैं। इंडियन पोटाश लिमिटेड के उर्वरक के थैलों में भी कंट्री ऑफ ओरिजन जॉर्डन लिखा गया है।
आजकल सेब के बगीचों में पोटाश खाद डाली जा रही है। इसे कलियों को विकसित करने और फूलों की गुणवत्ता में सुधार के लिए उत्तम उर्वरक माना जाता है। इसको इंडियन पोटाश लिमिटेड तैयार करती है। कई अन्य कंपनियां भी इस उर्वरक को बनाती हैं। इसके लिए कच्चा माल अरब देश जॉर्डन से आता है।
वहां से लाकर इसकी खाद भारत में तैयार की जाती है। हिमाचल प्रदेश में पोटाश की बहुत आपूर्ति होती है। इसका सेब के पौधों के लिए खूब इस्तेमाल होता है। रेड डिलिशियस फलों में तो रंग लाने में इसकी बड़ी भूमिका होती है।
पोटाश खाद फलों, बीज की मेच्योरिटी के लिए जरूरी: डॉ. देवेंद्र
हिमाचल प्रदेश शिवा के परियोजना निदेशक और विषय वस्तु विशेषज्ञ डॉ. देवेंद्र सिंह ठाकुर का कहना है कि पोटाश खाद फलों और बीजों की मेच्योरिटी के लिए जरूरी होती है। यह इनके पकने में मदद करती है। सेब के पेड़ों में कलियां बनाने में मदद करती है। यह जल में घुलनशील न होने के कारण बहुत वक्त पौधों में पहुंचने में लगाती है।
आहिस्ता-आहिस्ता ही पेड़ों को मिलती है। इसका कच्चा माल विदेशों से आता है। पोटाश के कारण फल आकर्षक बनता है। फल से सुगंध आती है, मिठास लाने यानी स्टार्च को शूगर में बदलने में भी इसकी बड़ी भूमिका होती है।
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स्रोत: Amar Ujala