भारत की तिलहन क्रांति में अग्रणी होगी सरसों की भूमिका

May 20 2021

पिछली सदी में हरित और श्वेत क्रांति का गवाह बन चुका भारत इस बार कृषि क्षेत्र में पीली क्रांति लाने के लिए प्रतिबद्ध है और इस बार यह क्रांति तिलहन पौधों के उत्पादन के लिए है। इस क्रांति की शुरुआत सरसों के उत्पादन के द्वारा होगी जिसे जल्द ही देश के सबसे ज्यादा उगाए जाने वाले तिलहन के रूप में प्रतिष्ठित किया जा सकता है। यह उस चर्चा के प्रतिफल के रूप में सामने आया है जिसे खाद्य तेल उद्योग के अनुभवी सदस्यों और शासन के संबध अधिकारियों द्वारा एक वेबिनार के रूप में सॉल्वेन्ट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित किया गया।

एसईए लगातार इस दिशा में कार्य कर रहा है जिससे घरेलू तिलहन के उत्पादन को बढ़ाकर खाद्य तेल के क्षेत्र में भारत की आयात निर्भरता को कम से कम किया जा सके। इस उद्देश्य के लिए एसईए ने मस्टर्ड मिशन की शुरुआत की है जिसके द्वारा 2025 तक भारत में सरसों के उत्पादन को 20 मिलियन टन तक बढ़ाये जाने की योजना है। कृषि के तरीके में सुधार, सही तकनीक के इस्तेमाल, गुणवत्तायुक्त बीज और दूसरे इनपुट प्रबंधन के द्वारा इसे हासिल किया जा सकता है। ये बातें एसईए के प्रेसिडेंट अतुल चतुर्वेदी ने कही।

सरसों की खेती में मुनाफा अधिक

इस मौके पर बोलते हुए डिपार्टमेंट ऑफ फूड एंड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन के सेक्रेटरी सुधांशु पाण्डेय ने कहा कि इसकी व्यावसायिक क्षमता और स्वास्थ्यवर्धक गुणों के कारण सरसों में यह बड़ी क्षमता है कि भारत के समूचे तिलहन उत्पादन को बढ़ावा दे सके।

श्री पांडेय ने कहा कि “सरसों की खेती में मुनाफा सबसे अधिक 31 हज़ार रूपये हेक्टेयर आता है जबकि गेहूं में 26 हज़ार रूपये और चावल में केवल 22 हज़ार रूपये का रीटर्न मिलता है। सरसों की मोजुदा कीमतों ने ये मुनाफे को कई गुना बढ़ा दिया है। उन्होंने आगे कहा कि उद्योग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यदि किसान अपना उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाते हैं तो श्रम के अनुसार उपयुक्त लाभ किसानों को मिल सके।

कृषि मंत्रालय की ज्वाइंट सेक्रेटरी, श्रीमती शुभि ठाकुर जो आयलसीड मिशन की हेड भी हैं ने कहा कि सरकार भी सरसों के उत्पादन को बढ़ाने को लेकर उत्साहित है और मस्टर्ड मिशन की सरकार के द्वारा पहले ही शुरुआत की जा चुकी है। उन्होंने आगे कहा कि सरकार का ध्यान इस ओर भी है कि सरसों के अलावा प्रति एकड़ तिलहन के अंदर आने वाले फसलों जैसे मूंगफली के उत्पादन को बढ़ाया जाए और चावल की खेती के बाद परती भूमि का सदुपयोग अंतर-फसल कृषि को बढ़ावा देकर किया जा सके।

उत्पादकता में वृद्धि

एसईए और सोलिडरिडैड के द्वारा वर्ष 2019 से संयुक्त रूप से राजस्थान में विकसित मॉडल सरसों फार्म के परिणाम स्वरूप उत्पादकता में 49त्न की वृद्धि देखी गई है , जिसमें बेहतर, बेहतर बीज और तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। कोविड के बाद की दुनिया में भी सरसों को इसके स्वास्थ्यवर्धक गुणों जैसे ओमेगा -3 और मोनोसैचुरेटेड फैटी एसिड और पॉलीअनसैचुरेटेड फैट की मात्रा के कारण सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाला तिलहन के रूप में देखा जा रहा है।

80 करोड़ लोग सरसों तेल का इस्तेमाल करते हैं

सरसों में तेल की मात्रा सोयाबीन के 18त्न की तुलना में 40त्न है जो कि बहुत ज्यादा है। इसमें 36त्न प्रोटीन होता है और जलवायु के हिसाब से भी अधिक उपयुक्त फसल है जिसे पानी की आवश्यकता बहुत कम होती है। भारत की 130 करो? की आबादी में से 80 करो? लोग खाना पकाने के लिए सरसों के तेल का इस्तेमाल करते हैं , यह बात अडानी विल्मर लिमिटेड के सीईओ और एमडी अंगुशु मलिक ने कही।

अगले पांच साल में 20 मिलियन टन का लक्ष्य

चालु साल में भारत का सरसों उत्पादन हाल के बाजार वर्ष में जो अक्तूबर से शुरू हुआ है , 8.5 से 9 मिलियन टन पहुँच गया है । रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी ऊंची कीमत भी किसानों को इस बात के लिए प्रेरित करेगी कि वो आने वाले वर्षों में सरसों का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन करें जो देश की अगले पांच साल में 20 मिलियन टन के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा। यह आने वाले वर्षों में भारत में सरसों को सबसे ज्यादा उगाया जाने वाले तिलहन के रूप में स्थापित कर देगा , यह बात एसइए रेप-मस्टर्ड कौंसिल के चेयरमैन विजय दाता ने कही।

 

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स्रोत: Krishak Jagat