विदेशी नौकरी छोड़ खोली टिशू कल्चर लैब, सिखा रहे वैज्ञानिक खेती, नेपाल तक फैला है कारोबार

January 02 2020

भले ही अन्नदाता अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देकर अच्छी नौकरी का ख्वाब संजोते हों, लेकिन फर्रुखाबाद जिले में शृंगीरामपुर के एक लाल ने खेती की ललक में विदेश में मिली नौकरी को ठुकरा दिया। किसानों की तरक्की का सपना संजोए इस लाल ने गांव में ही टिशू कल्चर लैब और पॉली हाउस खोलकर अपना भविष्य बना लिया।

दूसरों को भी रोजगार देकर विदेश की नौकरी से अच्छी आमदनी के साथ ही किसानों को तरक्की की राह बताने में जुटे हैं। वे गांव से ही देश के कई प्रांतों के साथ नेपाल तक कारोबार कर रहे हैं। कमालगंज क्षेत्र के गांव शृंगीरामपुर निवासी शिक्षक गोवर्धन दास पाल के पुत्र राहुल पाल ने एमएससी बायोटेक, एमबीए व एम.फिल की पढ़ाई की।

इसके बाद वर्ष 2009 में उन्होंने एक बीज कंपनी में नौकरी की। फिर दिल्ली में एक कंपनी में परियोजना प्रबंधक हो गए। राहुल के कदम यहीं नहीं रुके। इरिटेरिया ईस्ट अफ्रीका के नेशनल एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट में जॉब का मौका मिला, तो वहां चले गए। डेढ़ लाख रुपये महीने वेतन मिलने लगा।

वहां उन्होंने बीज अनुसंधान में महारत हासिल की और अपना टिशूू कल्चर लैब लगाने की ठान ली। इसके लिए विदेश की नौकरी एक साल बाद ही ठुकरा दी। वर्ष 2015 में वे अफ्रीका से नौकरी छोड़कर गांव आ गए और अपनी टिशू कल्चर लैब खोल दी। 800 वर्ग मीटर में पॉली हाउस, 1500 वर्ग मीटर में इनसेट नेट हाउस खोला।

इसके बाद आलू बीज तैयार करना शुरू कर दिया। इसमें सफलता हासिल की। इस कारोबार से उन्होंने 25 लोगों को रोजगार दिया। राहुल पाल का दावा है कि आमतौर पर किसान एक बीघे खेत में 40 पैकेट आलू का उत्पादन करता है, जबकि उनके तैयार किए हुए वायरस रहित बीज से 80 से 90 पैकेट प्रति बीघा आलू पैदा होता है।

वह तीन हजार किसानों को बीज उपलब्ध करा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, मध्य प्रदेश व नेपाल तक कारोबार कर रहे हैं। इस बार वह 80 बीघा खेत में बीज के लिए आलू तैयार कर रहे हैं।

ये पौधे हैं उपलब्ध 

राहुल पाल के पॉली हाउस में टिशू कल्चर तकनीक से आलू, केला, आर्नामेंटल, यूकेलिप्टस, सागौन के पौधे तैयार कर रहे हैं। ये विशेष आकर्षक होने के साथ सर्वाधिक उत्पादन देकर किसानों के लिए लाभकारी हो रहे हैं। वहीं सजावट के लिए गुलाब के अलावा विशेष प्रकार के फूलदार पौधे भी तैयार कर रहे हैं। उनका कहना है कि लैब से उन्हें गांव में अपनी तरक्की के साथ किसानों को मजबूत करने का मौका मिला है।

विदेश में नौकरी सिर्फ उनकी आमदनी का जरिया था। अब अपने हुनर से खुद समृद्ध होने के साथ किसानों को तरक्की की राह दिखाकर देश को मजबूत करने का मौका मिल रहा है। बताया कि चार वर्ष में उनका प्रोजेक्ट बखूबी तैयार हो चुका है। अब उनका व किसानों का हर दिन नई ऊर्जा से भरा होगा।

क्या कहते हैं जिम्मेदार

आलू विकास एवं शाक भाजी अधिकारी आरएन वर्मा ने बताया कि पॉली हाउस पर करीब साढ़े आठ लाख रुपये लागत आती है। इसका पचास फीसदी अनुदान उद्यान विभाग से दिया जाता है। राहुल पाल के पॉली हाउस पर चार लाख तीस हजार रुपये की सब्सिडी दी जा चुकी है। आलू व केले पर टिशू कल्चर लैब में अच्छा काम किया जा रहा है। शुरुआत में राहुल पाल को कुछ दिक्कतें आईं। लेकिन अब भविष्य काफी अच्छा लग रहा है।

 

इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह खबर अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है।

स्रोत: अमर उजाला