रेशम पालन ग्रामीण क्षेत्रों में लघु उद्योग की तरह अपनायें तो कृषक की भागीदारी बढ़ेगी साथ ही रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे। रेशम पालन विभाग ग्रामीण युवकों को इसके पालन की तकनीकी जानकारी के साथ-साथ सुविधा भी मुहैया करा रहा है।
मुख्य बिन्दु
- रेशम उत्पादन कृषि आधारित नगदी फसल
- शहतूत पौधों से रेशम विक्रय तक अनुबंध
- सिंचित भूमि एवं नजदीक कृमि पालन गृह आवश्यक
- हितग्राही चयन से अनुदान तक की प्रक्रिया आनलाईन
- म.प्र. के 38 जिलों में योजना
- ई-रेशम पोर्टल पर पंजीयन
श्री कवीन्द्र कियावत रेशम आयुक्त म.प्र. ने बताया पूर्णत: ऑनलाईन पंजीयन विभाग की वेबसाईट ई-रेशम पर किया जाता है। ऑनलाईन फार्म दी जानकारी उपलब्ध कराने के बाद विभाग का मैदानी अमला संभावित हितग्राही से सम्पर्क करेगा। फार्म में दी गई जानकारी से संतुष्ट होने के बाद, शहतूत एवं रेशम पालन में पानी की सालभर उपलब्धता होना आवश्यक है। शहतूत पौधे विभाग द्वारा उपलब्ध कराये जाने एवं कृमि पालन भवन निर्माण के लिए सहायता देने से यह कुटीर उद्योग की भांति कृषकों द्वारा अपनाया जा रहा है। विभाग सिंचाई सुविधा विस्तार, कृमिपालन उपकरण सहायता में भी अनुदान देता है।
शहतूत पौधों की पत्तियां 15 वर्ष तक निकाली जा सकती है। विभाग मलबरी रेशम कृमि पालन हेतु तकनीकी मार्गदर्शन भी देता है साथ ही टसर रेशम कृमिपालन हेतु दिशा निर्देश भी दिये जाते हैं। रेशम पालन से ग्रामवासियों को आमदनी होती ही है साथ ही वनों की सुरक्षा होती है। म.प्र. में रेशम विभाग अधिक से अधिक कृषकों को जोडऩे के लिये रेशम उद्योग अपनाएं स्वयं को खुशहाल बनायें का नारा दे रहा है। श्री कियावत के मार्गदर्शन एवं सघन प्रयासों से म.प्र. में रेशम उद्योग को नई गति मिलेगी। रेशम में शहतूत उत्पादन प्रथम कार्य है।
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स्रोत: कृषक जगत