किसानों को अन्य फसलें लेने के लिए करेंगे प्रेरित

June 17 2021

जिले में लगभग 95 प्रतिशत क्षेत्र में सोयाबीन फसल की खेती की जा रही है। दो से तीन वर्षों से मौसम एवं वर्षा की असमानता तथा सोयाबीन फसल में कीट-व्याधि का प्रकोप अधिक होने के कारण सोयाबीन फसल की उत्पादकता में बहुत कमी परिलक्षित होकर किसानों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही है। पिछले दिनों स्कूल शिक्षा (स्वतंत्र प्रभार) एवं सामान्य प्रशासन राज्य मंत्री तथा कोरोना प्रभारी इंदरसिंह परमार ने जिले में खरीफ 2021 में सोयाबीन बीज की उपलब्धता की समीक्षा करने के उद्देश्य से बीज उत्पादक समितियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी। बैठक में राज्यमंत्री परमार ने निर्देशित किया था कि इस वर्ष खरीफ 2021 में किसान भाइयों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए खरीफ सीजन में सोयाबीन के स्थान पर कलस्टर क्षेत्र में ज्वार, मक्का, मूंग, उड़द, अरहर, तिल, मूंगफली एवं वर्षाकालीन प्याज की फसल लगाने के लिए किसानो को कैम्प के माध्यम से प्रेरित करें।

इसे देखते हुए कलेक्टर दिनेश जैन ने कृषि विभाग के अधिकारियों एवं कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों को जिले में विशेष अभियान चलाकर कृषकों को सोयाबीन के साथ अंतरवर्तीय फसलें लेने, सोयाबीन के स्थान पर कलस्टर के रूप में ज्वार, मक्का, मूंग, उड़द, अरहर, तिल, मूंगफली एवं वर्षाकालीन प्याज की फसल लेने के लिए प्रेरित करने हेतु ग्रामों में शिविर आयोजित करने के निर्देश दिए हैं।

किसानों को सोयाबीन के स्थान पर अन्य फसलों को लेने के लिए प्रशिक्षण देने के लिए कलेक्टर जैन ने ग्रामों के कलस्टर बनाए हैं। इसके अनुसार 17 जून को खड़ी, 18 जून को गुलाना, 19 जून को खरदौनकलां, 20 जून को बेरछा, 21 जून को घुंसी, 22 जून को अकोदिया, 23 जून को अवंतिपुर बड़ोदिया, 24 जून को करजू तथा 25 जून को दुपाड़ा में आसपास के ग्रामों को सम्मिलित करते हुए किसानों को कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक एवं कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाएगा। 15 जून को सिरोलिया में और 16 जून को पोचानेर में प्रशिक्षण संपन्ना हुआ है। कलेक्टर ने प्रशिक्षण के दौरान कोविड-19 के प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिए हैं।

आधुनिक तरीकों से खेती के बताए तरीके

कृषि विज्ञान केंद्र एवं कृषि विभाग द्वारा ग्राम सिरोलिया में किसान जागरूकता को लेकर कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसएस धाकड एवं उपसंचालक कृषि आरपीएस नायक ने बताया कि किसानों को विभिन्ना खरीफ फसलों की उन्नात किस्मों एवं आधुनिक कृषि तकनीक, एकीकृत उर्वरक प्रबंधन, उन्नात कृषि यंत्रों के साथ जैविक खेती विभिन्ना विषयों की तकनीकी की जानकारी दी। सभी किसानों से कहा गया कि खरीफ फसलों की बुवाई रेज्डबेड पद्वति से करें।कृषि वैज्ञानिक डॉ. धाकड ने बताया कि रेज्डबेड पद्वति से खरीफ फसलों जैसे सोयाबीन, उड़द, मूंग, अरहर, मक्का, ज्वार एवं खरीद प्याज की बुआई करने पर वर्षा की अनियमित स्थिति जैसें कम एवं अधिक वर्षा दोनो ही स्थिति में इन फसलों का उत्पादन का उत्पादन 25 प्रतिशत से अधिक मिल रहा है। केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. धाकड ने बताया कि बुआई करने से फसल की दो लाईनों के बीच एक गहरी नाली बन जाती है। प्रत्येक रेज्डबेड में सोयाबीन उड़द मूंग की दो कतारों में बुआई की जाती है। अल्पवर्षा की स्थिति में किसान नालियों को मेड़ से बंद कर नालियों में पानी जमा करा सकते है साथ ही इस विधि द्वारा मृदा नमी का संरक्षण भी होता है और अतिवृष्टि की स्थिति में नाली का पानी आसानी से खेत से बाहर निकाल सकते है। इससे पौधे को पर्याप्त मात्रा मे आक्सीजन और नाईट्रोजन मिल जाती है। मेढ से मेढ की दूरी पर्याप्त होने से पौधो की कैनोपी को सूर्य की किरणें अधिक से अधिक मिलती है जिससे पौधे स्वस्थ रहते हैं।

 

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स्रोत: Nai Dunia