बच की खेती से किसानों को प्रति एकड़ मिलेगा एक लाख रुपए तक का मुनाफा

September 26 2023

सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए परंपरागत फसलों की खेती को छोड़ अन्य फसलों की खेती को बढ़ावा दे रही है। इस कड़ी में छत्तीसगढ़ में किसानों ने अब बच की खेती शुरू की है। इसकी खेती छत्तीसगढ़ में आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड की पहल पर शुरू की गई है। बता दें की बच एक औषधीय पौधा है जिसे छत्तीसगढ़ी में घोड़बंध या भूतनाशक के नाम से भी जाना जाता है। जिसका उपयोग त्वचा रोग, न्यूरोलाजिकल डिसआर्डर, पेट संबंधी बिमारी एवं हृदय रोग संबंधी दवाई बनाने में किया जाता है।

कई रोगों में उपयोगी होने के कारण इसकी बाजार में बहुत अधिक माँग है, जिससे उपज कम समय में आसानी से बिक जाती है और किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है। अभी प्रयोग के तौर पर बच की खेती छत्तीसगढ़ में 108 एकड़ में शुरू की गई है। जिससे प्रति एकड़ 80 हजार रुपए से 1 लाख रुपए तक आय की प्राप्ति किसानों को होगी।

बैंगलोर के टूंकूर गाँव में होती थी खेती

पहले बच की खेती के लिए बैंगलोर का एक गांव टूंकूर देश में प्रथम स्थान पर था। वहां इस औषधीय पौधे की व्यावसायिक खेती 3 से 4 हजार एकड़ में विस्तृत रूप से की जाती थी। लेकिन यहां बच के कृषि में किसानों की मजदूरी दर ज्यादा होने के साथ ही पानी की समस्या एवं अन्य समस्याओं के कारण बच की खेती सिमट कर मात्र 106 एकड़ में आ गई है। जिसको देखते हुए इसकी खेती अब छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की सीमा पर बसे पेण्ड्रा जिले के गांव तथा खटोला, अनवरपुर, तुपकबोरा, मुरली और तेन्दुपारा के किसानों ने शुरू की है।

किसानों को दिया गया है प्रशिक्षण

राज्य में बच की खेती शुरू करने के लिए छत्तीसगढ़ आदिवासी, स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के द्वारा किसानों को प्रशिक्षण दिया गया है। जिससे इन किसानों ने बच की खेती की विधि सीख ली है। प्राप्त जानकारी के अनुसार महासमुंद जिले के बागबाहरा, तेन्दुकोना क्षेत्र के ओमकारबंध के किसानों ने भी बच के कृषिकरण का कार्य प्रारंभ कर दिया है। अब तक लगभग छत्तीसगढ़ के 108 एकड़ से भी अधिक क्षेत्र में बच की खेती की जा रही हैं।

सरकार किसानों को मुफ्त में देती है पौधे

बच की खेती करने के लिए बच के पौधे छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा औषधि पादप बोर्ड के माध्यम से किसानों को निःशुल्क उपलब्ध कराए जाते हैं। प्रथम वर्ष में आवश्यकतानुसार 10 से 15 प्रतिशत पौधों को छोड़ दिया जाता है, जो कि 40 दिन में फिर से पौधा तैयार हो जाता है, जिसे रोपण सामग्री नर्सरी के रूप में अगले वर्ष रोपण के लिए उपयोग किया जाता है। शेष का संग्राहण कर लिया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक वर्ष रोपित किये जाने वाले पौधों की उपलब्धता बनी रहती है।

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स्रोत: किसान समाधान