खेतों में होने वाली पानी की बर्बादी को रोकने के लिए अब स्पेस तकनीक की मदद ली जाएगी। अब फसल का तापमान बताएगा कि सिंचाई की अभी जरूरत है या नहीं। आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों ने पायलट प्रोजेक्ट के तहत शहर के गांवों पर एक साल तक शोध किया और डाटा एनालिसिस के बाद एक विस्तृत मैप तैयार किया है।
देश में 80 फीसदी पानी का उपयोग खेती में किया जा रहा है, जबकि इसकी जरूरत नहीं है। इस बर्बादी को रोकने के लिए यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ लीसेस्टर के वैज्ञानिकों के साथ करीब एक साल पहले शोध शुरू किया गया था।
आईआईटी के वैज्ञानिकों ने खेतों में जाकर मिट्टी से लेकर फसल का तापमान, आर्द्रता समेत अन्य जरूरी रिकॉर्ड दर्ज किए। यूके के वैज्ञानिकों ने स्पेस टेक्नोलॉजी के जरिये डाटा अलग-अलग स्थानों, दिनों और फसल के हिसाब से एकत्र किया।
प्रो. सिन्हा के मुताबिक दोनों डाटा के एनालिसिस के बाद मैप तैयार किया गया है। इस मैप के अनुसार अगर खेती की जाए तो पानी की बचत होगी और पैदावार अच्छी होगी। यूके की टीम शुक्रवार को आईआईटी आ रही है।
आर्द्रता अधिक होने पर सिंचाई से पैदावार होती कम
प्रो. राजीव सिन्हा ने बताया कि खेतों में पानी की जरूरत तापमान के अनुसार होती है। तापमान हवा और फसल का होता है। अगर फसल में आर्द्रता अधिक है तो उसे पानी की जरूरत नहीं होती है। किसान के सिंचाई करने से फसल की पैदावार भी कम होती है और पानी की बर्बादी भी।
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स्रोत: अमर उजाला