प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का संचालन एक प्रश्नचिन्ह

May 09 2019

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जो खरीफ 2016 से आरम्भ की गई थी, से किसानों को बहुत उम्मीद थी। फसल बीमा योजना के लिए वर्ष 2015-16 में निर्धारित राशि 2982.47 करोड़ रुपए थी वह वर्ष 2016-17 में बढ़कर 11054.63 करोड़ रुपए कर दी गई और यह वर्ष 2018-19 में बढ़कर 13014.15 करोड़ हो गयी, इससे किसानों में फसल बीमा योजना के प्रति आकर्षण उत्पन्न हुआ। परन्तु वर्ष 2016-17 में जहां पूरे देश के 572.49843 लाख किसानों की फसल बीमा में भागीदारी थी व वर्ष 2017-18 में घटकर 427.49066 लाख किसानों की ही रह गई। यह गिरावट देश के मध्य भाग के तीन प्रान्तों मध्यप्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में भी देखी गई। मध्य प्रदेश में वर्ष 2016-17 में 71.81316 लाख किसानों ने योजना में भाग लिया था वह घटकर 2017-18 में 68.90930 लाख किसानों तक सिमटकर रह गई। छत्तीसगढ़ में यह संख्या 2016-17 व 2017-18 में क्रमश: 15.49139 लाख तथा 14.71587 लाख रही। राजस्थान में इस योजना के प्रति सबसे अधिक गिरावट देखने को मिली। वर्ष 2016-17 में राजस्थान में 91.50224 लाख किसानों की भागीदारी थी जो वर्ष 2017-18 में घटकर 60.12084 लाख ही रह गई।

किसान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में भागीदारी कर सके इसलिए सरकार बीमा के प्रीमियम का 80 से 85 प्रतिशत तक का भुगतान कर रही है। इसके लिए सरकार को जनता के पैसे का एक बहुत बड़ा भाग खर्च करना पड़ता है। पिछले दो वर्षों में इसके लिए 47,000 करोड़ खर्च करने पड़े, इतना खर्च करने के बाद भी देश के 25 से 30 प्रतिशत किसान ही इस योजना के अन्तर्गत आ पाये हैं। यह योजना देश के 12 करोड़ किसानों तक कब तक पहुंच पायेगी यह समय ही बता पायेगा।

पिछले कुछ माहों से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में भी आंच आने लगी है जब किसानों द्वारा बीमा कराई गई फसल को नुकसान होने पर किसानों को बीमा कम्पनियों ने मात्र 5-7 रुपए के चेक मुआवजे के रूप में दिये। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016 -17 में फसल बीमा कम्पनियों के प्रीमियम के तौर पर 22,180 करोड़ रुपए प्राप्त हुए, जिसमें से 4384 करोड़ रुपए किसानों द्वारा तथा 17796 करोड़ रुपए केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों द्वारा दी गई राहत राशि थी। इस राशि में से बीमा कम्पनियों द्वारा 120 लाख किसानों के 12949 करोड़ के मुआवजे के दावे निपटाये गये। किसानों को फसल बीमा के लिए निर्धारित कम्पनियों पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। उनके पास कोई विकल्प नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कम्पनियों की निष्क्रियता के कारण किसानों को निजी बीमा कम्पनियों के ऊपर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। बीमा नियामन की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार 11 निजी बीमा कम्पनियों ने 11,905 करोड़ रुपए प्रीमियम के रूप में वसूले और भुगतान के रूप में उन्होंने 8831 करोड़ रुपए का ही भुगतान किया। वहीं 5 सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों ने प्रीमियम राशि के रूप में 13411 करोड़ रुपए प्राप्त किये तथा भुगतान के रूप में 17496 करोड़ रुपए किसानों को देना पड़ा। इससे निजी कम्पनियों की कार्यशैली में संदेह उत्पन्न होना स्वाभाविक है और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के संचालन को नये सिरे से अवलोकन करने की ओर निर्देशित करता है।

 

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स्रोत: कृषक जगत