तेजी से खत्म हो रहे बस्तर से देसी आम

June 18 2019

बस्तर में प्रतिवर्ष सात करोड़ रुपये से अधिक का अमचूर का कारोबार होता रहा है लेकिन जंगलों में तेजी से आम वृक्षों के सफाया होने से यह कारोबार भी तेजी से सिमट रहा है। इस बात की जानकारी पौधारोपण कराने वाले विभिन्न् शासकीय विभागों को भी हैं फिर भी वन सहित कृषि और उद्यानिकी विभाग अपेक्षित आम रोपण के मामले में पीछे है। बताया गया कि एक तरफ जहां अत्यधिक दोहन के चलते बस्तर के वनों से आम के वृक्ष तेजी से खत्म हो रहे हैं वहीं दूसरी तरफ रियासत काल में सड़कों के किनारे रोपे गए आम के हजारों वृक्षों को विकास और सुरक्षा के नाम पर काट दिया गया है।

अमचूर का बड़ा बाजार

बस्तर संभाग के कांकेर, भानुप्रतापपुर, केशकाल, कोंडागांव, जगदलपुर, गीदम, दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर और नरहरपुर मंडियों के अलावा सैकड़ों हाट-बाजारों में प्रति वर्ष सात करोड़ रुपये से अधिक अमचूर का कारोबार होता है। यहां के मंडी व्यापारी बताते हैं कि फिलहाल अमचूर की कीमत 50 रुपये प्रति किलो है लेकिन हर साल अमचूर की आवक घटती जा रही है। बस्तर का अमचूर देश के विभिन्न् हिस्सों में अलावा पाकिस्तान और अरब देशों में निर्यात किया जाता है। इसका उपयोग आमतौर पर भुजिया उद्योगों में होता है।

जगदलपुर मंडी से जानकारी मिली है कि वर्ष 2018 में यहां करीब आठ हजार क्विंटल अमचूर की आवक हुई थी। अमराइयों का सफाया बढ़ते अतिक्रमण और जमीन दलाली से बस्तर की कई अमराइयां कट चुकी हैं। वहीं निजी भूमि पर खड़े आमवृक्ष की लकड़ियां ईंट भट्ठों में झोंके जा रहे हैं। फलदार पेड़ों को काटना प्रतिबंध है लेकिन इन्हें बचाने वन विभाग ध्यान दे रही हैं न ही राजस्व विभाग। सड़कों के किनारे खड़े आम के पेड़ भी बेदर्दी से कटते रहे और लोक निर्माण विभाग मौन रहा। सड़क किनारे फलदार पेड़ों का रोपण भी लंबे समय से बंद है।

तृतीया को मनाए आमा तिहार

बताया गया कि बस्तर के वनों में खड़े आम वृक्षों से ग्रामीण रामनवमी के पहले ही आमा तिहार मना कर अब फल तोड़ने लगे हैं, इसलिए परिपक्व गुठलियों का प्रसार पर्याप्त मात्रा में नहीं हो रहा है। इसके चलते वनों में आम के नए पौधे तैयार नहीं हो पा रहे हैं, और जो नए पौधे तैयार होते हैं, वे जंगलों में आग लगाने से नष्ट हो जाते हैं, इसलिए कई सामाजिक व आदिवासी संगठनों ने ग्रामीणों को अक्षय तृतीया के समय आमा तिहार मनाने के बाद ही आम तोड़ने की अपील करते आ रहे हैं ताकि आम ज्यादा परिपक्व हो सके और देसी प्रजाति का पर्याप्त प्रसार हो सके।

देसी आम रोपण नहीं

बस्तर में करोड़ों रुपये का अमचूर का कारोबार होता है लेकिन आम संवर्धन के क्षेत्र में कृषि, उद्यानिकी और वन विभाग पीछे है। नर्सरियों में सिर्फ ग्राफ्टेड आम के पौधे ही तैयार किया जा रहे हैं। देसी आम को बढ़ाने उपरोक्त तीनों विभाग पीछे हैं। बस्तर के व्यापारी अमचूर से लेकर गुठलियों तक की खरीदी करते हैं। इसलिए ग्रामीण कच्चे-पक्के सभी आम तोड़ बेचने लगे हैं। इसके चलते ही जंगलों में नए पौधे तैयार नहीं हो पा रहे हैं। इस अत्यधिक संग्रहण के कारण ही पके आम बीजों का प्रसार नहीं हो रहा है। वनमंडलाधिकारी कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार इस बार लोगों की मांग के अनुरूप आम के पौधे विभिन्न् नर्सरियों में तैयार किए गए हैं। वहां से कोई भी व्यक्ति रियायती दर पर पौधे खरीद सकता है।

सुरक्षा-विकास के नाम पर कटे पेड़

जगदलपुर शहर के अलावा कई मार्गों के आमों को सड़क चौड़ीकरण के नाम कटवा दिया गया है। एक तरफ बीआरओ ने केशलूर से लेकर गीदम मार्ग के हजारों आम और काजू वृक्षों को कटवाया था। वहीं दूसरी ओर सुकमा-कोंटा मार्ग में करीब 95 किमी लंबे मार्ग के दोनों तरफ के हजारों आम वृक्षों को नक्सलियों से सुरक्षा के नाम पर कटवा दिया गया है। धनपुंजी और चित्रकोट मार्ग के आम पेड़ों को जलाऊ बेचने वालों ने खत्म कर दिया है। बताया गया कि रायपुर का टिम्बर व्यवसायी कुछ वर्ष पहले बस्तर के हजारों आमवृक्षों को कटवा कर ट्रकों में रायपुर ले गया था। इसका पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविन्द नेताम ने विरोध भी किया था। बताया गया कि इन दिनों आम लकड़ी का उपयोग सस्ता फर्नीचर निर्माण में किया जा रहा है।

 

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स्रोत: नई दुनिया