झांसी : जिले में 330 से 400 रुपये तक में बिक रही यूरिया की बोरी

December 26 2019

एक बार फिर बुंदेलखंड में यूरिया की जबरदस्त किल्लत है। स्थिति यह है कि 45 किलो खाद की जो बोरी 266 में मिलनी चाहिए वह 330 से 400 रुपये तक में बेची जा रही है। किसान बार-बार शिकायतें कर रहे हैं लेकिन प्रशासन फिर भी ध्यान नहीं दे रहा है। बड़ी मात्रा में झांसी से यूरिया मध्यप्रदेश तक जा रहा है। खाद को लेकर लगातार गूंज रहीं शिकायतों को देखते हुए अमर उजाला की टीम ने जिला मुख्यालय से लेकर कस्बाई इलाकों तक की कुछ दुकानों पर जाकर यूरिया के मूल्य को लेकर पड़ताल की तो हर जगह खाद महंगा बिकता मिला।

सहकारी समितियों से भी किसानों को खाद उपलब्ध कराया जाता है। जिले भर में 58 सहकारी समितियां हैं जहां से रियायती दरों पर खाद बेचने के दावे किए जा रहे हैं। जबकि 266 उर्वरक की दुकानें भी हैं। लेकिन इस साल मध्यप्रदेश में हुई खाद की किल्लत से बुंदेलखंड के खाद के कोटे का ऐसा गणित बिगाड़ा कि यहां के किसानों को खाद मिल नहीं पा रहा है। बड़े पैमाने पर कालाबाजारी हो रही है।

किसान जहां परेशान हैं वहीं प्रशासन दावा कर रहा है कि उनके पास महंगा खाद बिक्री की कोई शिकायत नहीं आ रही है। जिला कृषि अधिकारी केके सिंह ने बताया दुकानदारों द्वारा अधिक दाम लेने की शिकायत मिलने पर तुरंत ही कार्रवाई की जाती है। वहीं ने एआर कोपरेटिव केपी शुक्ला ने बताया कि किसी भी समिति द्वारा ओवर रेटिंग नहीं की जा रही है। शिकायत मिलने पर तुरंत ही कठोर कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।

क्या बोले किसान

तीन एकड़ जमीन पर खेती करता हूं। चार से पांच बोरी यूरिया के लिए अधिक दाम अदा करना पड़ रहा है। कई बार शिकायतों के बाद भी कार्रवाई नही की जा रही है।

-अनुरुद्ध, किसान, ग्राम नोटा

सालों से यूरिया की किल्लत बनी हुई है। सरकारी समितियों में तो दो बोरी लेने के लिए सुबह से शाम तक इंतजार कराकर अधिक दाम अदा कराने पर ही यूरिया दिया जाता है।

-रामजी सिंह, किसान पारीछा

जो बड़े किसान हैं या फिर सियासी ताल्लुकात हैं उन्हें तो खाद आसानी से मिल जाता है वरना तो किसानों को इंतजार करना पड़ता है। आप अधिक दाम दीजिए तत्काल खाद का बोरा मिल जाएगा।

-गौरी शंकर बिदुआ, किसान नेता

यूरिया की कालाबाजारी का खेल सालों से जारी है। कई बार शिकायत करने पर किसानों को ही इसका खमियाजा भुगतना पड़ता है। कालाबाजारी पर रोक आवश्यक है।

-कृष्ण मुरारी, किसान, बुढ़ाई

 

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स्रोत: अमर उजाला