मनुष्य ही नहीं, प्रकृति के सभी जीव-जंतुओं, यहां तक कि पेड़-पौधों के लिए भी अति घातक वातावरण में फैले रेडिएशन के स्तर की जांच अब छत्तीसगढ़ में भी शुरू हो चुकी है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि मौसम विज्ञान केंद्र में मिले यंत्र के जरिए माइक्रोलेवल पर अल्ट्रावायलेट किरणों का स्तर क्या है, इसका पता चलने लगा है। इससे रेडिएशन से जुड़ी बीमारियों से बचाव के रास्ते तलाशने में आसानी होगी। सही वक्त पर सही फैसले लेने, नीतियां बनाने, रेडिएशन को कम करने के उपाय करने और जिम्मेदारों पर सख्ती करने में आसानी होगी। वहीं आम लोगों को भी हालात के मुताबिक सतर्क किया जा सकेगा।
राज्य में अभी दो केंद्र
विभागाध्यक्ष डॉ. जीके दास के मुताबिक कृषि विभाग के वैज्ञानिक अल्ट्रावायलेट किरणों पर जांच कर रहे हैं। मई में अब तक का सबसे अधिक शनिवार की दोपहर में 158.2 माइक्रो मॉल प्रति स्क्वेयर मीटर प्रति सेकंड तक किरणों का स्तर पहुंच गया है। अंबिकापुर में भी यह जांच शुरू हुई है। जल्द ही जगदलपुर में भी इस पर काम शुरू होगा।
उपाय खोजने पर घटेगी बीमारी
अल्ट्रावायलेट किरणों के अध्ययन से फसलों और जीवों पर इसके प्रभाव का भी आसानी से अध्ययन किया जा सकेगा। इनकी वजह से होने वाली बीमारियों जैसे त्वचा का कैंसर, मोतियाबिंद, त्वचा में झुरियां आना, सनबर्न आदि से बचाव के उपाय करने में आसानी होगी।
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स्रोत: नई दुनिया