छत्तीसगढ़ धान का कटोरा कहलाता है, जहां धान की पैदावार कई राज्यों की तुलना में काफी अधिक है। यही वजह है कि अब धान और अन्य कृषि उत्पादों का इस्तेमाल बायोफ्यूल बनाने में किया जाएगा। राज्य सरकार कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना की दिशा में तेजी से काम कर भी रही है। सोमवार को कृषि उत्पादों से बायोफ्यूल बनाने को लेकर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन राज्य शासन ने किया, जिसमें बैकिंग से लेकर वित्तीय संस्थानों, बायोफ्यूल तकनीकी, मार्केटिंग बायोमास के लिए जमीन, पानी, कच्चा माल आदि से जुड़े देश के 30 संस्थानों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इन संस्थानों को चार समूह में बांटा गया और छत्तीसगढ़ में कृषि उत्पाद से बायोफ्यूल उत्पादन के लिए इन्होंने अनुशंसा दी है।
सीएम बघेल बोले- कृषि वैज्ञानिक, शोध संस्थान और उद्योग से धान से बायोफ्यूल उत्पादन के लिए ऐसी नीति तैयार करें, जिससे किसानों को धान जैसी उपजों का उचित मूल्य मिल सके। उद्योगों को भी फायदा हो, स्थानीय लोगों को रोजगार मिले, पर्यावरण संरक्षण भी हो और बायोफ्यूल की खरीदी की व्यवस्था हो। कार्यशाला का आयोजन राज्य के छत्तीसगढ़ बायोफ्यूल विकास प्राधिकरण और ऊर्जा विभाग द्वारा किया गया।
सीएम बघेल ने कहा
राज्य सरकार किसानों से 2500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से धान खरीदती है। हर साल 80 लाख टन धान खरीदी होती है। ऐसी स्थिति में धान से बायोफ्यूल बनाने की दिशा में आगे बढ़ते है तो कृषि आधारित उद्योगों की स्थापना होगी। किसानों को धान की अच्छी कीमत,स्थानीय युवाओं को रोजगार और पेट्रोलियम की खरीदी में खर्च होने वाली बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी खेती-किसानी भी लाभप्रद बनेगी। कहा कि धान से बायोफ्यूल बनाने का कार्य प्रदेश के साथ-साथ देश में एक अभिनव प्रयोग होगा। उन्होंने कहा कि राज्य में बायोडीजल बनाने के पूर्व में हुए प्रयास हुए, जिसका अच्छा अनुभव नहीं रहा। उन प्रयासों से सीख ले कर हमें परिणाममूलक कार्य करना होगा।
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स्रोत:नई दुनिया