चिंताजनक: देश भर में जलाई जा रही 31 करोड़ टन पराली, जीना हुआ दूभर, हर सांस में जहरीली हवा

October 31 2019

देश भर में 31 करोड़ टन से ज्यादा फसल अवशेष जलाया जा रहा है, जिससे हम हर सांस में जहरीली हवा का सेवन कर रहे हैं। सबसे ज्यादा बुरी स्थिति उत्तर भारत की है। 

यहां पराली जलाने से एयर क्वालिटी इंडेक्स खतरनाक स्थिति की तरफ बढ़ रहा है। प्रतिबंध के बावजूद भी इसको लेकर जागरूकता नहीं फैल रही है, जो हमें सांस और कैंसर जैसी बीमारियों का शिकार बना रही है। 

फसल अवशेषों को जमीन से सीधे ही समावेश करने की प्रक्रिया सरल है। लेकिन इसमें दिक्कत दो फसलों के बीच अंतर कम होना है। कम सिंचाई और अन्य क्रियाओं से लागत बढ़ जाती है, जिससे किसान बचते हैं। 

वातावरण के लिए घातक

कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. आरएस सेंगर बताते हैं कि धान का भूसा मृदा में मिलाने से मीथेन गैस का उत्सर्जन ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाता है। इन कठिनाइयों को सरल प्रक्रिया द्वारा दूर कर फसल अवशेषों को जलाने से होने वाले दुष्परिणामों को कम कर सकते हैं। 

अवशेषों का नवीनीकरण स्वस्थ वातावरण व आर्थिक दृष्टि से अति आवश्यक है। लेकिन फसल अवशेषों में कीटनाशक अवशेष होने के कारण इसको जलाने से विषैला रसायन डायवर्जन हवा में घुल जाता है। 

33-270 गुना बढ़ती है मात्रा

फसल कटाई के समय और पश्चात अवशेषों को जलाने से हवा में विषैले तत्वों की मात्रा 33 से 270 गुना बढ़ जाती है। डायवर्जन का प्रभाव वातावरण में दीर्घ समय तक रहता है, जो मनुष्य एवं पशुओं की त्वचा पर जमा हो जाता है। इससे खतरनाक बीमारियां होती हैं। दरअसल, फसल कटाई के पश्चात इसका एक बड़ा हिस्सा अवशेष के रूप में अनुपयोगी रह जाता है, जो नवीकरणीय ऊर्जा का स्रोत होता है।

भारत में इस तरह की फसल अवशेषों की मात्रा करीब 62 करोड़ टन है। इसका आधा हिस्सा घरों, झोपड़ियों की छत निर्माण, पशु आहार, ईंधन एवं पैकिंग में प्रयोग होता है। शेष भाग खेतों में ही जला दिया जाता है। सबसे अधिक पंजाब व हरियाणा में अवशेषों को जलाया जाता है। जिसका सीधा असर दिल्ली-एनसीआर में पड़ता है। 

अनुमानित तौर पर फसल अवशेष जैसे सूखी लकड़ी, पत्तियां, घास फूस जलाने से वातावरण में 40 प्रतिशत सीओटू, 32 प्रतिशत कार्बन मोनोऑक्साइड गणितीय पदार्थ 2.5 तथा 50 प्रतिशत हाइड्रोकार्बन पैदा होता है, जोकि वातावरण के लिए काफी घातक है। 

फसल क्षेत्रफल

बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान के अनुसार धान व बासमती का एरिया यूपी में 21 लाख हेक्टेयर, पंजाब में 35 लाख तो हरियाणा में 21 लाख हेक्टेयर है। यूपी में धान का करीब 22 से 25 लाख टन अवशेष तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 12 में से 10 लाख टन अवशेष जलाया जाता है। दो लाख टन ही किसान प्रयोग में ले लेते हैं।  

विकल्प एवं निदान

- फसल अवशेषों को खेत में पुन: जोत कर मृदा स्वास्थ्य को बढ़ाया जा सकता है। 

- अवशेषों को ईंधन, कंपोस्ट, पशु आहार, घर की छत और मशरूम उत्पादन आदि कार्यों में उपयोग किया जा सकता है। 

- जैविक ईंधन भी तैयार किया जा सकता है। 

स्वच्छ वातावरण के लिए चिंताजनक

यह वायु प्रदूषण वातावरण की निचली सतह पर एकत्र होता है, जिसका सीधा प्रभाव आबादी पर होता है। इस प्रकार का प्रदूषण दूरगामी इलाकों एवं विशेष क्षेत्रों में हवा द्वारा फैलता है, जिसका नियंत्रण हमारे बस में नहीं होता। फसल अवशेष जलाने से वातावरण में खतरनाक रसायन घुल जाता है। जो एक कैंसरकारी प्रदूषक है। इस प्रकार का प्रदूषण ग्रीनहाउस गैस उत्पादन कर वैश्विक मौसम परिवर्तन का कारण बनता है।

ये होती हैं बीमारियां

- थायराइड हार्मोन स्तर में परिवर्तन होता है।

- रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती है, सांस की बीमारी से लेकर कैंसर की संभावना।

- स्त्रियों में प्रजनन संबंधी रोग बढ़ जाते हैं।

- गर्भावस्था के दौरान बच्चे पर दिमागी स्तर पर दुष्प्रभाव पड़ता है।

- पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का स्तर घटता है। 

प्रदूषण के साथ बीमारियां

सरकार के जागरूक करने के बाद भी किसान अवशेषों को खेतों में जला रहे है। इससे फसल पर छिड़के गए विषैले रसायन भी हवा में घुल जाते हैं। ऐसे में प्रदूषण के साथ लोगों में बीमारियां भी बढ़ रही हैं। -डॉ. आरएस सेंगर, प्रोफेसर बायोटेक्नोलॉजी कृषि विवि

नुकसान के सिवा कुछ नहीं

पराली जलाने से खेतों के अंदर सूक्ष्म जीव तत्व खत्म हो जाते हैं। मिट्टी में लाखों करोड़ों की संख्या में जीव तत्व रहते हैं, जो पराली जलाने से खत्म हो जाते है। इससे उर्वरा शक्ति खत्म होती है। -डॉ. रितेश कुमार, प्रधान वैज्ञानिक व प्रभारी बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान, मोदीपुरम

सहयोग की जरूरत

एनसीआर क्षेत्र में वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण खेतों में अवशेष जलाना भी है। इसे रोकने के लिए जनमानस से भी सहयोग की जरूरत है। किसान खेतों में अवशेष न जलाकर प्रदूषण को रोकने में काफी सहयोगी हो सकते हैं। -आरके त्यागी, क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी 

 

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स्रोत: अमर उजाला