देशभर में 21 दिनों का लॉकडाउन लगा हुआ है और इसकी वजह महामारी का रूप ले चुका कोरोना वायरस है. इस लॉकडाउन की वजह से ही इस समय किसानों को भले ही थोड़ी राहत सरकार की तरफ से मिली है, लेकिन अभी भी दिक्कतें पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं. यह समय किसानों के लिए फसल कटाई का है. किसान रबी फसलों (rabi crops) की हार्वेस्टिंग (harvesting) में लगे हुए हैं. इसमें गेहूं किसान भी शामिल हैं जिन्हें कटाई के बाद खाद्यान्न पैकेजिंग (foodgrain packaging) की समस्या का सामना करना पड़ सकता है. वहीं ख़ास बात यह है कि किसानों को राहत देने के लिए सरकार ने भी पैकेजिंग नियम में कुछ बदलाव कर फिलहाल के लिए छूट दे दी है.
आपको बता दें कि कोरोना वायरस से हुए लॉकडाउन की वजह से जूट मिल बंद हैं. किसान अपने उत्पाद को जूट के बोरों में ही पैक करके बिक्री के लिए उतारते हैं. जिस तरह से गेहूं समेत रबी फसलों की कटाई जोर-शोर से की जा रही है, पैकेजिंग के लिए अधिक संख्या में बोरों की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में किसानों को पैकेजिंग की समस्या हो सकती है.
केंद्र सरकार ने दी यह छूट
गेहूं की फसल कटाई को ध्यान में रखते हुए और किसानों को राहत देते हुए खाद्यान्न पैकजिंग के लिए केंद्र सरकार ने जूट के बोरों की जगह पॉलिमर से तैयार किए गए बोरों के इस्तेमाल की स्वीकृति दे दी है.
इस संबंध में कपड़ा मंत्रालय का कहना है कि यह कदम गेहूं किसानों के हित में उठाया गया है. ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि इस महीने यानी अप्रैल तक गेहूं की फसल कटकर तैयार हो जाएगी. ऐसे में किसानों को उचित पैकेजिंग सुविधा देना बहुत जरूरी है. मंत्रालय के मुताबिक लॉकडाउन खत्म होने के बाद जूट मिलों में बोरों का उत्पादन शुरू कर दिया जाएगा और उन्हीं बोरों को पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल किया जाएगा.
क्या कहता है पैकेजिंग नियम?
पैकेजिंग के नियमों की बात करें तो केंद्र सरकार ने खाद्यान्न की 100% पैकेजिंग के लिए जूट बैग को ही प्राथमिकता दी है और उसे अनिवार्य किया है. जूट पैकेजिंग सामग्री अधिनियम (GPM) 1987 के तहत अनाज की पैकेजिंग जूट बोरों में ही की जाती है.
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स्रोत: कृषि जागरण