गरीब किसान ने अकेले लगा डाला 40 हजार पेड़ों का घना जंगल

November 29 2019

चित्रकूट से करीब बीस किमी दूर भरत कूप के छोटे से गांव में भैयाराम यादव की पहाड़ी आपको दूर से ही दिख जाएगी. पहाड़ी के पास पहुंचते ही आप फलदार पेड़ों की लंबी श्रंखला से गुजरते हुए भैयाराम यादव की झोपड़ी के पास ठहर जाते हैं. गर्मी में  पाठा के इस इलाके के पहाड़ जब तपते हैं तो भैयाराम का चालीस हजार पेड़ों वाला ये जंगल ठंडी भरा सूकून देता है. जब मैं उनके पास पहुंचा तो करीब 55 साल की उम्र,  दरम्याना कद..हल्का शरीर और धूप में काले पड़ गए चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए वो मिले. पत्नी और बेटे की मौत के बाद पेड़ ही उनका परिवार बन गया.

सन 2007 के बाद भैयाराम वन विभाग के पौधों को लाते और पहाड़ी के आसपास लगाते..फिर दो किमी दूर से रोज तीस से चालीस मटका पानी भरकर लाते और पौधों को सींचते. 13 साल के उनकी अथक मेहनत के नतीजे के तौर पर खड़े जंगल को दिखाते दिखाते भैयाराम इसी में खो जाते हैं. किताब का कोई अक्षर भले ही वो न पढ़ पाएं लेकिन उनके पौधरोपण का पाठ पर्यावरण की हर पुस्तक में शामिल किया जाना चाहिए. कोई और होता तो वन विभाग के दिए गए 40 हजार पौधों को पेड़ बनाने का सर्टिफिकेट दिखाकर दर्जनों पुरस्कार झटक लेता लेकिन छह महीना पहले लगवाए गए वन विभाग के हैंडपंप को चलाते वे कहते हैं कि भैया मेरे भगवान तो ये पेड़ हैं. इनकी छाया जब तक है, मेरे पास सब कुछ है.

बुंदेलखंड के सात जिलों में सरकारी पौधारोपण का हाल

पौधारोपण में तीन बार रिकार्ड बना चुके यूपी में करोड़ों पौधे लगने के बावजूद जंगल का इलाका मामूली तौर पर बढ़ा. 2017 में आई फारेस्ट सर्वे आफ इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि लगातार करोड़ों पौधे लगने के बावजूद 25 जिलों में वन क्षेत्र घट गया है. यही नहीं पानी की कमी से जूझ रहे बुंदेलखंड के 7 जिलों में 300 करोड़ रुपये की लागत से अब तक 16 करोड़ से ज्यादा पौधे लग चुके हैं लेकिन उसके बावजूद वन्य क्षेत्र न बढ़ा और न घटा. जबकि यूपी की सरकारें पौधारोपण में तीन विश्व रिकार्ड बना चुकी हैं. 2015 में 10.15 लाख पौधे, 2016 में एक दिन में 5 करोड़ पौधे और इसी साल 9 अगस्त को 22 करोड़ पौधे एक ही दिन के भीतर लगाए गए.

पानी की किल्लत से जूझ रहे बुंदेलखंड के बांदा जिले में 19 लाख पौधे लगाए गए हैं..ये पौधे किस हालात में है ये जानने हम बांदा जिले के कालिंजर किले के पास बहादुर पुर में पहुंचे. यहां 220 हेक्टेयर के इस जंगल में लगे पौधे खोजने के लिए कार से लेकर पैदल तक से मशक्कत करना पड़ी. पौधारोपण का कोई बोर्ड और मार्किंग न होने के चलते इन घनी झाड़ियों में पौधे लगाकर छोड़ दिया गया. कुछ लगे मिले तो बहुत सारी जगह पर केवल सूखे पौधे दिखे. हम जैसे-जैसे घनी झाड़ियों में आगे बढ़े तो यहां पौधे लगाने के निशान काली पन्नियों में मिले.

हम इस जंगल में पौधारोपण होने के निशान खोज ही रहे थे कि पता चला कि गिड्डिहा गांव में अनोखे लाल के घर में 2016 के पौधारोपण का बोर्ड रखा है. 2016 में हुए पौधारोपण में यहां 2500 पौधे लगाए गए और 3000 बीज डाले गए. RTI से मिली जानकारी में यहां 5400 पेड़ कागजों पर लगे हैं और इन पौधों की सुरक्षा के लिए छह सदस्यों की वन समिति भी बनी है. लेकिन जमीन पर न तो इतने पौधे दिखे और न ही इन समितियों के लोगों को कभी गांव वालों ने पौधे बचाते देखा.

बांदा से करीब साठ किमी दूर महोबा जिला है. इस साल यहां 14 लाख 60 हजार पौधे लगाए गए हैं. उप्र सरकार को एक दिन में 22 करोड़ पौधे लगाने थे लिहाजा अलग-अलग 26 विभागों को भी पौधारोपण की जिम्मेदारी सौंपी गई. यूपी परिवहन विभाग के पौधरोपण को देखने हम महोबा कि बस स्टैंड पहुंचे. यहां पौधरोपण की फोटो होने के बाद से ही पौधे नदारद हैं और अब खाली जगह पीक दान के तौर पर इस्तेमाल हो रही है. इसी महोबा के गांधी उपवन में खुद वन मंत्री दारा सिंह ने पौधरोपण करवाया था. उसका हाल जानने के लिए हममे गांधी उपवन का रुख किया. काफी पूछने के बाद ही शहर से बाहर के इस पहाड़ी पर पहुंचे. यहां गांधी जी के पसंदीदा करीब 6 हजार पौधे वन विभाग ने लगाए हैं. लेकिन पता चला कि मंत्री जी का लगाया गया बड़ा पौधा जिंदा है बाकी के कई पौधे हमें सूखे मिले. यहां घूम रहे आवारा मवेशी के चलते जो पौधे बचे हैं उन्हें बस खुशकिस्मत ही कहा जा सकता है.

बुंदेलखंड के सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर बताते हैं कि  CAG ने भी 2010 में हुए पौधरोपण पर जांच की बात कही है लेकिन बीते दस सालों से जमीनी पौधों की जांच नहीं हो पाई है. दरअसल सरकार का सारा जोर पौधरोपण पर रहता है क्योंकि इससे नेताओं को प्रचार और अधिकारियों को भ्रष्टाचार करने का मौका बना रहता है लेकिन पौधा लगाने के बजाए पौधा बचाने पर जब जोर रहेगा तभी पर्यायवरण भी बचेगा.

 

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स्रोत: NDTV इंडिया