खेतों में रबी फसल की कटाई के बाद शेष बची नरवाई में किसान नियमों एवं कायदो की अनदेखी कर आग लगा रहे हैं। शाम ढलते की गांव-गांव में नरवाई में आग सुलगने से तापमान में बढ़ोत्तरी होने के साथ ही भूमि की उर्वरता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसके अलावा खेतों के आसपास बनी मेड़ पर खड़े हरे भरे पेड़ भी आग में झुलसने के कारण असामयिक नष्ट हो रहे हैं। नरवाई में आग लगने से होने वाले नुकसान से रोकने के लिए कृषि विभाग की ओर प्रयास होते दिखाई नहीं दे रहे हैं। जिससे किसान बेखौफ होकर नरवाई जला रहे हैं।
क्या होता है नुकसान
फसलों के अवशेष जलाने से वायु प्रदूषण ही नहीं होता बल्कि मृदा का तापमान बढ़ जाता है। इससे मृदा की संरचना बिगड़ जाती है। जीवाश्म पदार्थ की मात्रा कम हो जाने से मृदा की उत्पादकता कम होने का खतरा होता है। फसल जलाने से उस पर आश्रित कीट की मौत हो जाती है। इससे मित्र कीट और शत्रु का अनुपात बिगड़ जाता है, फलस्वरूप पौधों को कीट प्रकोप से बचाने के लिए मजबूरन महंगे व जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल करना पड़ता है। जिसका दुष्प्रभाव मानव स्वास्थ्य पर देखा जा रहा है।
क्या कर सकते है किसान
किसान फसल अवशेष को काटकर भूसे के रूप में पशुचारे के लिए उपयोग कर सकते हैं। इसका दूसरा पहलू यह है कि कृषि यंत्रों पर निर्भर होने के कारण किसानों के पास पशुओं की संख्या में कमी आई है। अब किसान बैल नहीं पालते हैं या बहुत कम संख्या में किसानों के पास है। इसके अलावा फसल अवशेष का उपयोग नाडेप, वर्मीखाद जैसी कार्बनिक खाद बनाने में भी किया जा सकता है। साथ ही कृषि विभाग के द्वारा नरवाई से खाद निर्माण के लिए प्रोत्साहन रााशि देने का प्रावधान भी है।
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स्रोत: नई दुनिया