खरबूजे के बीज से मालामाल हो रहा है इंदौर

June 28 2019

खरबूजे की पैदावार के लिए मशहूर राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के लक्ष्मीपुरा किसान लोगों को मुफ्क में तरबूज खाने के लिए खुला ऑफर दे रहे है. दरअसल इनको खरबूजे से ज्यादा इनके बीज से मतलब है. इनके लिए खरबूजे के बीज बेहद ही खास है. इनका दाम खरबूजे से 10 से 20 गुना ज्यादा है. यही वजह है कि वहां पर खरबूजा मिट्टी के मोल के भाव में भी नहीं मिल पाता है. यहां मध्यप्रदेश के इंदौर में खरबूजे के बीज की बहुत ही अधिक मांग है. यहां पर 150 से 200 रूपये किलोग्राम का भाव मिल रहा है. इसीलिए फिलहाल इसका बीज 20 क्विंटल तक आ रहा है. यह बीज इंदौर से निर्यात किया जाता है. यहां के बांसवाड़ा जिले में माही नदी पर बने बांध के कैंचमेंट एरिया में खरबूजे की बढ़िया पैदावार होती है.

बीजों को सुखाकर मुफ्त में खिला रहे

इस बार खरबूजे की बेहतर फसल होती है.मगर यहां किसानों को खरबूजे से ज्यादा इसके बीज लाभ दे रहे है. इसीलिए किसान स्वयं खरबूज लोगों को मुफ्त में खाने का ऑफर दे रहे है. दरअसल वह सबसे पहले इन खरबूजों के अंदर के बीज को निकाल देते है. इसके लिए वह एक प्रचार प्रसार अभियान भी चला रहे है और लोगों को इसके बारे में जानकारी प्रदान कर रहे है. यहां रास्ते में जो भी मुसाफिर आते जाते है वह यहां के मुफ्त में तरबूज का लुफ्त उठाते है. किसान हीरालाल और गुनाराम का कहना है कि खरबूजा 10 से 15 रूपये किलों बिकता है. इसका बीज 200 रूपये किलोग्राम है. किसान सबसे पहले इसको सुखाने का काम करते है और इंदौर भेज देते है.

खरबूजे के बीज है बेहद लाभदायक

खरबूजे के बीजों का सूखे मेवे के रूप में इस्तेमाल होता है. सबसे खास बात तो मिठाईयों का है.इसके बीज से मिठाई काफी ज्यादा स्वादिष्ट हो जाती है. इसके बीज में ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है. यह दिल से जुड़ी बीमारियों को दूर करने में मदद करता है. इसमें अधिक मात्रा में विटामिन ए, सी और ई पाया जाता है. खरबूजे के बीज में ऐसे मिनरल्स होते है, जो एसिडिटी खत्म करने के साथ पाचन प्रक्रिया दुरस्त रखते है. टाइप 2 डायबिटीज में खरबूजे का बीज काफी लाभकारी होता है. खरबूजे मगज में 3.6 प्रतिशत प्रोटीन होता है. इंदौर में इनकी बहुत मांग होती है इनकी काफी सफाई होती है और विदेश में छिले हुए बीज का निर्यात होता है.

 

इस खबर को अपनी खेती के स्टाफ द्वारा सम्पादित नहीं किया गया है एवं यह खबर अलग-अलग फीड में से प्रकाशित की गयी है।

स्रोत: कृषि जागरण