कोर्ट का बड़ा फैसला, किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं बेचीं जा सकती पैतृक कृषि भूमि

March 19 2019

भारत के उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में पैतृक कृषि भूमि को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, यदि हिंदू उत्तराधिाकारी पैतृक कृषि भूमि का अपना हिस्सा बेचना हैं तो उसे घर के व्यक्ति को ही प्राथमिकता देनी होगी यानि उत्तराधिकारी अपनी पैतृक कृषि भूमि को किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं बेच सकता. बता दे कि जस्टिस यूयू ललित व एमआर शाह की पीठ ने यह बड़ा फैसला हिमाचल प्रदेश के एक मामले में दिया. इस मामले में इस सवाल को लेकर याचिका दायर की गई थी कि क्या कृषि भूमि भी धारा 22 के प्रावधानों के दायरे में आती है.

गौरतलब है कि धारा 22 में यह प्रावधान है कि बिना वसीयत के किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसकी संपत्ति उत्तराधिकारियों पर आ जाती है. उत्तराधिकारी अपना हिस्सा बेचना चाहता है तो उसे अपने बचे हुए उत्तराधिकारी को प्राथमिकता देनी होगी. कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि हिन्दू उत्तराधिकारी पैतृक कृषि भूमि का अपना हिस्सा बेचना चाहता है तो उसे घर के ही किसी व्यक्ति को प्राथमिकता देनी होगी. वह अपनी संपत्ति किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं बेच सकता.

पीठ ने कहा कि कृषि भूमि भी धारा 22 के प्रावधानों से ही संचालित होगी. इसमें हिस्सा बेचने के लिए व्यक्ति को अपने घर के ही  किसी व्यक्ति को प्राथमिकता देनी होगी. पीठ ने आगे कहा कि धारा 4 (2) के खत्म होने का इस पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि यह प्रावधान कृषिभूमि पर काश्तकारी के अधिकारों से संबंधित था। पीठ ने धारा 22 पर प्रकाश डालते हुए कहा कि धारा 22 प्रावधान के पीछे यह उद्देश्य है कि परिवार की संपत्ति परिवार के पास ही रहे और बाहरी व्यक्ति परिवार में न घुसे.

क्या था पूरा मामला

इस मामले में हिमाचल राज्य के रहने वाले लाजपत की मृत्यु के बाद उनकी कृषिभूमि दो पुत्रों नाथू और संतोष को मिली। जिसमें संतोष ने अपना जमीन का हिस्सा एक बाहरी व्यक्ति को इसे बेच दिया. जिसके बाद नाथू ने कोर्ट में याचिका दायर किया और कहा कि हिन्दू उत्तराधिकार कानून की धारा 22 के तहत उसे इस मामले में प्राथमिकता पर संपत्ति लेने का अधिकार प्राप्त है. ट्रायल कोर्ट ने डिक्री ( किसी अदालत या न्यायिक अधिकारी द्वारा जारी वह पत्र या कानूनी दस्तावेज़ जिसके द्वारा किसी को कोई आज्ञा या आदेश दिया जाता हो ) नाथू के पक्ष में दी और हाईकोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा.

 

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स्रोत: कृषि जागरण