इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रो. डॉ. गिरीश चंदेल ने चावल की उपजाति कोदो, रागी, कुटकी, सावा से चार ऐसी जीन खोजी है, जो चावल में पाए जाने वाले 02-06 पीपीएन आयरन की क्षमता को तीन गुना यानी 36 पीपीएम के ऊपर तक बढ़ा देगी। इन जीनों का प्रयोग कर धान की नई प्रजाति ईजाद की जा रही है।
ऐसे समझें शोध को
चावल में मुख्यत: आयरन और जिंक पाए जाते हैं। शोध में पौष्ठिक आयरन केवल 2 से 6 पीपीएन के बीच पाया गया। जिंक 12 पीपीएन था। प्रोफेसर चंदेल ने जिंक की मात्रा को बढ़ाने की कवायद शुरू की। कनेकेसियल विधि यानी ब्रीडिंग मैथड से चावल में जिंक को 24 पीपीएन तक पहुंचा दिया। अब चुनौती थी आयरन को बढ़ाने की।
इसके लिए डॉ. चंदेल ने चावल की अन्य उपजाति पर शोध प्रारंभ किया। शोध में कोदो, रागी, कुटकी और सावा में आयरन की मात्रा 36 पीपीएन के ऊपर पाया। इनकी जांच में पता चला कि चारों खाद्य पदार्थों में आयरन स्वयं से नहीं आता, बल्कि जमीन से ही पौधा आयरन लेता है।
ऐसे में इन पौधों को जड़, तना, पत्ती और फल चार भागों में बांट दिया। पत्ती में सबसे ज्यादा आयरन मिला। वही फलों तक पहुंचाती थी। इसमें 43 तरह के फंक्शन किए गए। इससे पत्ती से चार नई जीन निकली हैं, जिन्हें भविष्य में धान की प्रजाति के साथ ब्रीडिंग कर तैयार नई प्रजाति में आयरन की मात्रा बढ़ाई जाएगी।
ये होगा लाभ
- चावल भी गेहूं की तरह शरीर को पर्याप्त मात्रा में देगा आयरन
- कुपोषण को रोका जा सकेगा
- शुगर के मरीजों के लिए होगा लाभप्रद
(डॉ. गिरीश चंदेल के अनुसार)
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्रो. डॉ. गिरीश चंदेल ने चावल की उपजाति से आयरन बढ़ाने की चार जीन खोजी है। प्रदेश में शोध को बढ़ावा मिले, इसलिए छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद ने उसे भारत सरकार को पेटेंट के लिए भेजा है, जो डब्ल्यूएचओ के मानक को पूरा करेगा। इससे प्रदेश और अन्य राज्य के लोगों को पौष्टिक आहार मिलेगा।
-डॉ. अमित दुबे, वैज्ञानिक, छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, रायपुर
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स्रोत: नई दुनिया