अमरूद के बाद प्रयागराज और कौशाम्बी के केले की भी मांग बढ़ गई है। यहां का केला दिल्ली के आजाद मंडी समेत आसपास के कई राज्यों में जाता है लेकिन, किसानों को प्रोसेसिंग यूनिटों का अब भी इंतजार है। चिप्स, आचार आदि दूसरे उत्पाद तैयार करने की ठोस योजना के अभाव में किसानों को इसका उचित मूल्य भी नहीं मिल पा रहा।
कौड़िहार के किसान इंद्रजीत का कहना है कि टीश्यू कल्चर केले की खेती से उत्पादन अधिक मिलने लगा है। इसमें लाभ भी है लेकिन इसकी मांग दूसरे जिले में है। यहां भी उद्योग विकसित किया जाना चाहिए। प्रदेश सरकार की एक जिला एक उत्पाद के तहत कौशाम्बी में केले का चयन हुआ है। इसके तहत प्रोेसेसिंग यूनिटें लगाने की कवायद की जा रही है। कौशाम्बी के जिला उद्यान अधिकारी सुरेंद्र राम भाष्कर का कहना है कि प्रोसेसिंग यूनिट के लिए किसानों से बात की जा रही है। जल्द ही बदलाव की उम्मीद है। प्रयागराज की जिला उद्यान अधिकारी प्रतिभा पांडेय ने बताया कि प्रोसेसिंग यूनिट लगाने में कुल लागत का 50 फीसदी अनुदान दिया जाता है। इसके लिए किसानों से आवेदन मांगे गए हैं।
53 लाख क्विंतल है उत्पादन
प्रति हेक्टेयर 800 क्विंतल केले का उत्पादन होता है। इस लिहाज से दोनों जिलों में करीब 53 लाख क्विंतल केले का उत्पादन होता है। इनमें से 25 से 30 फीसदी की खपत यहां हो पाती है। शेष केला दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी के अलावा दूसरे राज्य की मंडियों में भेजा जाता है।
रेसा तैयार करने की कवायद भी फेल
केले के तने से रेसा और साड़ी तैयार की जाती है। दक्षिण भारत में यह बड़ा उद्योग है। यहां भी एक फैक्ट्री खोली गई थी लेकिन, सफलता नहीं मिली।
पत्तल, दोना बनाने की है योजना
केला के तने और पत्ते पत्तल, दोना आदि भी तैयार किए जाते हैं। थर्माकोल तथा प्लास्टिक के बर्तनों पर रोक के बाद इसकी मांग तेजी से बढ़ी है। ऐसे में इसे भी उद्योग के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई है।
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स्रोत: अमर उजाला