केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री तोमर ने जीईएम पोर्टल पर “द सरस कलेक्शन” का शुभारंभ किया

May 06 2020

केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज तथा कृषि और किसान कल्याण मंत्री, श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने, आज नई दिल्ली में गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (जीईएम) पोर्टल पर “द सरस कलेक्शन” का शुभारंभ किया। जेम और दीनदयालअनत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (डीएवाई-एनआरएलएम), ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक अनूठी पहल, सरस संग्रह, ग्रामीण स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) द्वारा बनाए गए दैनिक उपयोग वाले उत्पादों को प्रदर्शित करता है और इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में एसएचजी को केंद्र और राज्य सरकार के खरीदारों तक पहुंचने के लिए बाजार उपलब्ध कराना है।

इस पहल के तहत, एसएचजी विक्रेता अपने उत्पादों को 5 उत्पाद श्रेणियों, अर्थात (i) हस्तशिल्प, (ii) हथकरघा और वस्त्र, (iii) कार्यालयों में इस्तेमाला होने वाले सामान, (iv) किराना और पेंट्री, और (v) व्यक्तिगत देखभाल और साफ सफाई की श्रेणी में सूचीबद्ध कर सकेंगे। पहले चरण में, 11 राज्यों के 913 एसएचजी पहले से ही विक्रेताओं के रूप में पंजीकृत हैं और 442 उत्पादों को पोर्टल पर अपलोड किया जा चुका है।

जीईएम राष्ट्रीय, राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर पदाधिकारियों के लिए डैशबोर्ड प्रदान करेगा, जो उन्हें स्वयं सहायता समूहों द्वारा अपलोड किए गए उत्पादों की संख्या, और प्राप्त आदेशों की पूर्ति और मात्रा के बारे में वास्तविक समय की जानकारी प्रदान करेगा। पोर्टल पर एसएचजी उत्पादों की उपलब्धता के बारे में सरकारी खरीदारों को अलर्ट के जरिए जानकारी दी जाएगी। इच्छुक खरीदार इसके माध्यम से अपनी पसंद के उत्पादों को खोज, देख और खरीद सकेंगे।

इस पहल के तहत एसएचजी को शामिल करने का कार्य पहले बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, केरल, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा,राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल के राज्यों में किया गया है। इसका कवरेज सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों की बड़ी संख्या में एसएचजी को सक्षम बनाने के लिए तेजी से बढ़ाया जाएगा जिससे कि वे सरकारी क्रेताओं को अपना उत्पाद बेच सकें।

एसएचजी को सरकारी क्रेताओं तक सीधी पहुंच उपलब्ध कराने के द्वारा सरस कलेक्शन सप्लाई चेन में बिचैलियों को खत्म कर देगा और इस प्रकार एसएचजी के लिए बेहतर मूल्य सुनिश्चित करेगा तथा स्थानीय स्तर पर रोजगार अवसरों को बढ़ावा देगा।


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स्रोत: कृषक जगत