केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान में सैनिटाइजर का निर्माण शुरू

April 01 2020

कोरोना वायरस के संक्रमण को कम करने में सैनिटाइजर प्रभावी है, लेकिन प्रदेश में इसकी कमी से जुझना पड़ रहा है। इसी को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल के वैज्ञानिकों ने एल्कोहल आधारित सैनिटाइजर का विकास संस्थान में किया है। इसका विकास विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी फार्मूला एवं निर्देशों के अनुसार किया जा रहा है। इसका निर्माण बायोकेमेस्ट्री एवं माइक्रोबायोलॉजी प्रयोगशाला में संस्थान के सभी विभागों एवं महत्वपूर्ण स्थानों पर काम करने वाले सभी कर्मचारी के लिए शुरू किया गया है।

बड़े स्तर पर होगा उत्पादन

कोरोना संक्रमण के बचाव के लिए संस्थान द्वारा उठाया गया यह कदम महत्वपूर्ण एवं बहुपयोगी साबित हो रहा है। भविष्य में इसका उपयोग औद्योगिक स्तर एवं आम जनता के लिए हो इस पर प्रयोग जारी है। इस पूरी प्रक्रिया में आइसोप्रोपिल एल्कोहल, गलिसरोल, हाइड्रोजन पराक्साइड मुख्यतः उपयोग किया गया है। स्टेराइल डिस्टिल वाटर के साथ मिश्रण बनाया गया। त्वचा को रूखा होने से बचाने के लिए एवं इसकी स्टोरेज बढ़ाने के लिए इसमें एलोवेरा, मिनरल आयल एवं विटामिन- ई का प्रयोग किया गया है।

प्रोटीन को क्षतिग्रस्त कर वायरस को मारता है

बाजार में मुख्यतःदो तरह के हैंड सैनिटाइजर उपलब्ध होते हैं, जिसमें कुछ एल्कोहल आधारित होते हैं तथा कुछ बिना एल्कोहल आधारित होते हैं। एल्कोहल लगभग सभी सूक्ष्मजीवों को मारने में सक्षम होता है। बिना एल्कोहल वाले सैनिटाइजर मिश्रण में क्वर्टीनरी अमोनियम कंपाउंड्स होते हैं जो एल्कोहल की जगह मिलाया जाता है। कुछ प्रमुख शोधों से पता चला है कि बिना एल्कोहल वाले सैनिटाइजर सभी तरह के सूक्ष्मजीवों को मारने में पूर्णता सक्षम नहीं होते हैं। एल्कोहल आधारित सैनिटाइजर वायरस के प्रमुख भाग प्रोटीन को क्षतिग्रस्त करके उसे मार देता है। प्रोटीन वायरस को जीवित रखने एवं उसके विभाजन में महत्वपूर्ण कार्य करता है । ठीक इसी प्रकार की संरचना एवं कार्य प्रणाली कोरोना वायरस की भी होती है जिसका संक्रमण एल्कोहल आधारित सैनिटाइजर के उपयोग से रोका जा सकता है।

संस्थान में अभी तक 30 से 40 लीटर इस सैनिटाइजर का निर्माण हो चुका है जो संस्थान के सभी प्रभागों, कार्यशाला, प्रोटोटाइप सेंटर, विभिन्न सेक्शनों, मुख्य द्वार एवं सभी महत्वपूर्ण जगहों पर काम करने वालों के लिए उपयोग किया जा रहा है।

डॉ.मनोज कुमार त्रिपाठी, प्रधान वैज्ञानिक (बायोकेमेस्ट्री) केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल


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स्रोत: नई दुनिया