उत्तराखण्ड़ की परंपरागत खरीफ फसलों में शामिल मंडवा और झंगोरा का रकबा लगातार कम हो रहा है. ये दोनों फसलें पिछली कई सरकारों के एजेंडे में शामिल रही हैं. इन्हें किसानों की आय से जोड़कर पलायन रोकने की बातें पिछले 18 सालों से हो रही हैं, लेकिन तमाम वादों और आश्वासनों के बावजूद इन दोनों फसलों का रकबा घटता ही जा रहा है. मंडवा की फसल 2001 - 2002 में 1.31 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में खेती होती थी, जो 2018 -19 में घटकर 92 हजार हैक्टयर रह गई है. इसी तरह झंगोरा का रकबा 18 हजार हैक्टेयर घट गया है.
साल 2014 में केंद्र सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का फैसला लिया था. उत्तराखण्ड़ में परंपरागत फसलों के जरिए ऐसा करने की योजना बनाई गई थी. लेकिन इन फसलों का घटता रकबा अब एक बड़ी चुनौती के रूप में सरकार के सामने है. क्योंकि अगर रकबा घट रहा है तो फिर अपने लक्ष्य को पाने में सरकार के सामने कई अड़चनें आ सकती हैं. दरअसल इस घटते रकबे की एक बड़ी वजह पलायन है. पहाड़ों के गांवों से लोग बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं. प्रदेश के करीब 1000 हजार गांव पूरी तरह से खाली हो गए हैं, जिन्हे घोस्ट विलेज का नाम दिया गया गया है. लगभग 3 लाख घरों में ताले लटके हुए हैं.
मार्केटिंग-आपूर्ति की सही व्यवस्था नहीं
वही दूसरी बड़ी वजह जोत का बिखरा होना भी है, जिससे मेहनत ज्यादा लगती है और मार्केटिंग की उचित व्यवस्था ना होने की वजह से दाम भी नही मिलते हैं. वही कृषि मंत्री सुबोध उनियाल का मानना है कि पिछले 18 सालों में किसानों के लिए लाभकारी योजनाएं बनी नहीं इसलिए किसान खेती से दूर होता गया. और यही कारण है कि आज हालात ये हैं. अंतराष्ट्रीय स्तर पर इसकी डिमांड़ भी लगातार बढ रही है . हाल ही में मंडुवे की डिमांड़ जापान से आई थी लेकिन आपूर्ति पूरी नही की जा सकी.
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स्रोत: न्यूज़ 18 हिंदी