किसान गेंहूँ की नरवाई न जलायें, खेत में मिलाकर खाद बनायें

April 29 2021

कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ़ के डॉ. बी.एस. किरार, वरिष्ठ वैज्ञानिकों एवं प्रमुख द्वारा किसानों को गेंहूँ की नरवाई जलाने से भूमि एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्परिणामों के बारे में विस्तार से जानकारी दी  जा रही है । गेंहूँ की फसल काटने के पश्चात् जो तने के अवशेष अर्थात् नरवाई होती है, किसान भाई उसमें आग लगाकर उसे नष्ट कर देते हैं। नरवाई में लगभग नत्रजन 0.5 प्रतिशत, स्फुर 0.6 प्रतिशत और पोटाश 0.8 प्रतिशत पाया जाता है, जो नरवाई में जलकर नष्ट हो जाता है और गेंहूँ फसल में दाने से डेढ़ गुना भूसा होता है। अर्थात् यदि एक हेक्टेयर में 40 क्विंटल गेहूँ का उत्पादन होगा तो भूसे की मात्रा 60 क्विंटल होगी उस भूसे से 30 किलो नत्रजन, 36 किलो स्फुर, 48 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर प्राप्त होगा। जो वर्तमान मूल्य के आधार पर लगभग रुपये 3000 का होगा जो जलकर नष्ट हो जाता है। इसके साथ ही भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त हो जाती है, अर्थात् भूमि में उपस्थित सूक्ष्मजीव एवं केंचुआ आदि जलकर नष्ट हो जाते हैं। इनके नष्ट होने से खेत की  उपजाऊ मिटटी पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। भूमि की ऊपरी पर्त में उपलब्ध आवश्यक पोषक तत्व आग लगने के कारण जलकर नष्ट हो जाते हैं। साथ ही भूमि की भौतिक दशा भी खराब हो जाती है। अर्थात् भूमि कठोर हो जाती है, जिसके कारण भूमि की जल धारण क्षमता कम हो जाती है। फसलें जल्द सूखती हैं और कमजोर हो जाती हैं तथा भूमि में होने वाली रासायनिक क्रियायें भी प्रभावित होती हैं, जैसे कार्बनदृनाइट्रोजन एवं कार्बन-फास्फोरस का अनुपात बिगड़ जाता है, जिससे पौधों को पोषक तत्व ग्रहण करने में कठिनाई होती है।

गेहूँ की नरवाई से आग फैलने से जन-धन की हानि तथा पेड़-पौधे जलकर नष्ट होने की संभावना  बनी रहती है . नरवाई न जलाने से फसल अवशेषों का पशु-चारा, वर्मी-कम्पोस्ट, मशरूम उत्पादन, मल्चिंग आदि के लिए उपयोग किया जा सकता है। वैज्ञानिक शोधों के आधार पर ये ज्ञात हुआ है कि एक हेक्टेयर भूमि में फसल अवशेष जैसे गेंहूँ / धान को जलाने से पर्यावरण में कार्बन डाईऑक्साइड 9.3 टन, अमोनिया 1.0 टन, नाईट्रस ऑक्साइड 1.5 टन एवं अन्य जहरीली गसें उत्पन्न होती हैं जो पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं तथा मनुष्य एवं पशुओं में घातक बीमारियों को पैदा करती हैं। फसल अवशेषों को मृदा में गहरी जुताई करके मिला देने से रोग, कीट और खरपतवारों में जो कमी होती है, उससे प्रति हेक्टेयर रुपये 2500 की बचत होती है तथा दलहनी फसल अवशेषों से बनाये गये कम्पोस्ट में नत्रजन 1.8 प्रतिशत, फास्फोरस 3.4 प्रतिशत तथा पोटाश 0.4 प्रतिशत तक अधिक पाया जाता है । बायो-डीकम्पोजर का उपयोग फसल अवशेषों को शीघ्र सडाकर कम्पोस्ट खाद तैयार करने में किया जा सकता है। एक शीशी बायो-डीकम्पोजर/बायो-डाईजेस्टर 150 मि.ली. को एक प्लास्टिक ड्रम में दो किलो गुड के साथ 200 लीटर पानी में डालकर 7 दिन तक डंडे से हिलाते रहना चाहिए फिर इसका उपयोग किया जा सकता है तथा उपयोग करते समय खेत नमीयुक्त होना चाहिए। आधुनिक मशीनों के उपयोग से फसल अवशेषों के होते हुए भी दूसरी फसलों की खेती संभव है तथा फसल अवशेषों को मृदा में अच्छी तरह से मिलाया जा सकता है, जो बाद में सडकर पोषक तत्व प्रदान करते हैं। नरवाई को जलाना कानूनी रूप से अपराध है। अतः इसे जलाने से बचें।

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स्रोत: krishakjagat