गुलावड़ में जैविक गोबर खाद के जलबे

November 25 2021

मंडलेश्वर के पास स्थित ग्राम गुलावड़ इन दिनों इसलिए चर्चा में है, क्योंकि यहां के निवासी श्री कमलेश पाटीदार ने जैविक गोबर खाद बनाने और उसे बेचने को अपना लक्ष्य बना लिया है। उनके इस अभिनव प्रयोग से जहाँ किसानों को स्वच्छ और पूर्णत: जैविक खाद मिल रही है, वहीं श्री पाटीदार को भी आय हो रही है। हालाँकि जैविक खाद बनाने की इस प्रक्रिया में समय ज्यादा लगता है।

श्री कमलेश पाटीदार ने कृषक जगत को बताया कि जैविक खाद बनाने के लिए फिलहाल उनके पास 100 बेड है। जिसे निकट भविष्य में 200 करने का विचार है। गोबर आसपास के गांवों से खरीदते हैं, जो दो माह से ज्यादा पुराना न हो। एक ट्रॉली में 17-18 क्विंटल गोबर आता है, जो करीब 2600 रु का पड़ता है। सबसे पहले गोबर की अच्छी तरह से सफाई कर कंकर, चारा, मिट्टी अलग कर दिया जाता है और फिर ढाई फ़ीट गहरे हर बेड में यह गोबर डालकर ठंडे पानी से दो -तीन बार धोया जाता है, ताकि इसमें मौजूद मीथेन और अन्य गैस निकल जाए। 5-6 दिन के बाद जब तापमान 30 डिग्री के आसपास होने पर इसमें 5 -6 किलो केंचुए डाले जाते हैं। पहली बार बैतूल से केंचुए 450 रुपए किलो की दर से खरीदकर डाले गए थे। अब तो इन केंचुओं की संख्या बढ़ गई है। केंचुए ऊपर की 6 इंच की परत को खाते हुए नीचे उतरते जाते हैं और अपने मल को ऊपर छोड़ते जाते हैं। 45 दिन में खाद बनना शुरू हो जाता है। 70 -75 दिन में केंचुए एक बेड को पूरा खा जाते हैं। पहली बार आधे बेड भरे थे, जिससे 700 बोरी (50 किलो वाली) अर्थात 350 क्विंटल खाद तैयार हुआ था। जो 500 रुपए प्रति बोरी के भाव से बेचा। अब 900 -1000 बोरी खाद निकलने की संभावना है, क्योंकि इस बार सभी बेड भरे हैं। एक एकड़ के लिए 4 बोरी और एक बीघे के लिए 3 बोरी जैविक गोबर खाद पर्याप्त रहता है। इस कार्बनिक खाद में सभी आवश्यक सूक्ष्म तत्व नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, मैग्नेशियम, जि़ंक आदि मौजूद रहते हैं, जिनका अलग-अलग प्रयोगशालाओं में परीक्षण कराया गया था।

श्री पाटीदार ने कहा कि जैविक गोबर खाद के अलावा तरल खाद भी निकलता है, जिसका फसल पर छिडक़ाव या सिंचाई के साथ प्रयोग करने से ज़मीन का पीएच मान भी सुधरता जाता है। 7.5 का पीएच आदर्श रहता है। तरल खाद को टंकियों में गुणवत्ता के अनुसार रखा जाता है जिसमें निर्धारित पीपीएम का ध्यान रखकर टीडीएस भी नापा जाता है। यह तरल खाद 30 रुपए लीटर बेचा जाता है। इस प्लांट के लिए श्री पाटीदार ने सरकार/ बैंक से कोई आर्थिक मदद नहीं ली है। श्री पाटीदार का मानना है कि इस कार्य में व्यक्ति का आर्थिक रूप से सक्षम होना जरुरी है, क्योंकि खाद न बनने /बिकने की स्थिति में लिए गए ऋण की किश्तों में ब्याज सहित समय पर अदायगी में कई कठिनाइयां आती हैं। उनके अब तक करीब 45 लाख खर्च हो चुके हैं। लाभ -हानि की गणना नहीं की है, लेकिन रोज़ाना 40-50 बोरी खाद बिक जाता है।अब तक 1800 से अधिक बोरी खाद बेच चुके हैं। ग्राहकों में स्थानीय के अलावा खरगोन, महू, देवास के ग्राहक भी शामिल हैं।

इस कार्य में पांच मजदूरों की मदद ली जाती है, जिससे उन्हें स्थायी रोजग़ार मिला हुआ है। जबकि किसान इसलिए खुश हैं, क्योंकि उन्हें पूर्णत: स्वच्छ जैविक खाद मिल रहा है, जिसके प्रयोग से गुणवत्तापूर्ण फसल का अच्छा उत्पादन मिलेगा।

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स्रोत: Krishak Jagat