धान की कटाई के बाद खेतों में बची रहने वाली पराली पंजाब सहित पड़ोसी राज्यों के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है। ज्यादातर किसान धान की कटाई के बाद अगली फसल लेने के लिए खेत को पूरी तरह साफ करने के चक्कर में पराली को जला देते हैं क्योंकि किसानों को पराली की कटाई-ढुलाई खर्चीला लगती है। ऐसे में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने पराली संकट का एक नया समाधान ढूंढा है।
शोधकर्ता डॉ. राजदीप कौर ने बताया कि दरी बनाने के लिए सबसे पहले पराली से फाइबर निकाला गया। इसके बाद पराली के फाइबर को वेस्ट कॉटन के साथ ब्लैंड करके यार्न (धागा) बनाया। फिर पराली यार्न से फेब्रिक बनाकर उसे दरी के रूप में ढाला। फिलहाल छोटे आकार की दरी बनाई है। इसे बड़े आकार में भी बनाया जा सकता है। इसके अलावा पराली से बनाए गए यार्न से कई और वस्तुएं भी बनाई जा सकती हैं। जैसे जैकेट, वाल हैंङ्क्षगग, चटाई, डेकोरेशन के सामान व अन्य वस्तुएं। जो रोजमर्रा के इस्तेमाल में आती है। डॉ. राजदीप ने कहा कि अब अलग अलग ब्लैंडिंग के साथ जैकेट बनाने पर काम किया जाएगा।
मल्च मैट का इस्तेमाल फ्रूट, वेजीटेबल के लिए हो सकता है
शोधकर्ता डॉ. राजदीप कौर ने बताया कि दरी के अलावा वीड (नदीन, खरपतवार) कंट्रोल करने के लिए दो तरह के मल्च मैट भी तैयार किए हैं। वोवन मल्च मैट व नॉन वोवन मल्च मैट। पराली से बने दोनों तरह के मल्च मैट का इस्तेमाल फ्रूट, वेजीटेबल व फ्लावर क्राप के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। पीएयू की ओर से एक मल्च मैट को लेकर किए गए ट्रायल के शानदार परिणाम रहे हैं। मल्च मैट के बायोडिग्रेडिबल होने के कारण सॉयल की न्यूट्रेंट वैल्यू भी बढ़ती है। शोध में पाया गया है कि जहां-जहां पराली से नदीन कंट्रोल करने लिए मल्च मैट रखे गए, वहां की मिट्टी के अंदर कार्बन कंटेंट भी बढ़ गए।
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स्रोत: जागरण