एक किलो चावल उगाने में लगभग 3000 लीटर पानी लगता है. एक किलो चीनी बनाने करीब 5000 लीटर पानी की खपत होती है. कृषि वैज्ञानिक प्रो. साकेत कुशवाहा कहते हैं कि ये दोनों फसलें सबसे ज्यादा पानी की खपत करने वाली है. सितंबर 2018 में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने गन्ना किसानों के समक्ष यह सवाल उठाया था कि आखिर वे इतना अधिक गन्ना क्यों उगाते हैं तो लोगों ने इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन, अब नीति आयोग ने भी गन्ना और धान की फसल पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि धान एवं गन्ने की खेती के जरिये पानी की बर्बादी हो रही है.
दिल्ली के पूसा इंस्टीट्यूट में धान की फसल
ऐसे में मनोहर लाल खट्टर सरकार ने भूजल स्तर गिरने से रोकने के लिए योजना तैयार की है. इसके तहत धान को छोड़कर पानी की कम खपत वाली फसलें उगाने वाले किसानों को सरकार नगद सहायता देगी. धान के बदले सरकार मक्का, दलहन व तिलहन पर जोर दे रही है. चूंकि बासमती चावल हरियाणा की स्ट्रेंथ और पहचान है इसलिए सरकार गैर बासमती धान को डिस्करेज करना चाहती है. दरअसल, हरियाणा सरकार ऐसा करने के लिए इसलिए मजबूर हुई है क्योंकि अत्याधिक जल दोहन की वजह से यहां के नौ जिले डार्क जोन में शामिल हो गए हैं.
इन ब्लॉकों में शुरू हुई योजना
पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पहले चरण में यह योजना प्रदेश के सात जिलों के सात ब्लाकों में लागू की गई है. इनमें यमुनानगर का रादौर, सोनीपत का गन्नौर, करनाल का असंध, कुरुक्षेत्र का थानेसर, अंबाला का अंबाला-1, कैथल का पूंडरी और जींद का नरवाना ब्लॉक शामिल है. इन सात ब्लॉकों में 1,95,357 हेक्टेयर क्षेत्र में धान की फसल होती है, जिसमें से 87,900 हेक्टेयर में गैर बासमती धान होता है. कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि 1970 के दशक में मक्का और दलहन हरियाणा की प्रमुख फसलें होती थीं, जिनकी जगह अब धान ने ले लिया है.
किसानों को ऐसे करेंगे प्रेरित
-इन सात ब्लॉकों में धान के बदले मक्का, दलहन, तिलहन के इच्छुक किसानों का कृषि विभाग के पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन किया जाएगा. इच्छुक किसानों को मुफ्त में बीज उपलब्ध करवाया जाएगा. जिसकी कीमत 1200 से 2000 रुपये प्रति एकड़ होगी.
-प्रति एकड़ 2000 रुपये की आर्थिक मदद की जाएगी. यह पैसा दो चरणों में मिलेगा. इसमें 200 रुपए तो पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन के समय और शेष 1800 रुपए बिजाई किए गए क्षेत्र के वेरीफिकेशन के बाद किसान के बैंक खाते डाले जाएंगे.
-धान की जगह मक्का और अरहर उगाने पर फसल बीमा करवाएंगे. 766 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से प्रीमियम भी हरियाणा सरकार देगी. मक्का और अरहर तैयार होने पर हैफेड व खाद्य एवं आपूर्ति विभाग उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य की दर से खरीदेंगे.
क्या दूसरे राज्य भी हरियाणा से कुछ सीखेंगे?
ये तो रही हरियाणा की बात. क्या दूसरे राज्य भी ऐसा करेंगे? कृषि वैज्ञानिक साकेत कुशवाहा कहते हैं कि नीति आयोग ने धान और गन्ने की फसल पर ठीक चिंता जाहिर की है. जल संकट का सामना कर रहे और कृषि आधारित प्रदेशों को यह समझने की जरूरत है कि कैसे ज्यादा पानी वाली फसलें कम की जाएं और किसानों का घाटा भी न हो. हरियाणा की तरह दूसरे प्रदेश भी स्कीम बना सकते हैं, इससे किसान जल्दी दूसरी फसल उगाने के लिए प्रेरित होगा. यूनाइटेड नेशंस के खाद्य एवं कृषि संगठन के मुताबिक भारत में 90 परसेंट पानी का इस्तेमाल कृषि में होता है. भारत में पानी की ज्यादातर खपत चावल और गन्ने जैसी फसलों में होती है.
‘कॉटन पैदा करने पर खर्च होता है सबसे ज्यादा पानी’
कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा कहते हैं निसंदेह गन्ना और धान की फसल में पानी की खपत ज्यादा है, लेकिन हम कॉटन को क्यों छोड़ देते हैं. एक किलो कॉटन पैदा करने पर 22 हजार लीटर पानी खर्च होता है. एक जींस बनाने में 10 हजार लीटर पानी की खपत होती है. चूंकि इस पर टेक्सटाइल लॉबी का हाथ है तो हम कुछ नहीं कहते. शर्मा का कहना है कि आज महाराष्ट्र गंभीर जल संकट से जूझ रहा है लेकिन वहां सिंचाई का 76 फीसदी पानी सिर्फ गन्ने की खेती में लगता है, जबकि वहां गन्ना कुल फसल का 10 फीसदी भी नहीं है.
धान, गन्ना छोड़ने पर पांच हजार रुपये एकड़ देना चाहिए
देविंदर शर्मा कहते हैं कि धान की फसल को डिस्करेज करने की हरियाणा सरकार की जो योजना आई है वो तब तक सफल नहीं होगी जब तक कि फसल छोड़ने पर 2000 की जगह 5000 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन नहीं मिलेगा. साथ ही किसान जो बदले में फसल उगाएगा उसकी पूरी सरकारी खरीद सुनिश्चित करनी होगी. सही पैसा मिलेगा तो किसान छोड़ देगा धान और गन्ना.
देश में कितना है चावल और गन्ना उत्पादन
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक पिछले पांच साल के औसत चावल उत्पादन 107.80 मिलियन टन की तुलना में इस बार 7.83 मिलियन टन अधिक है. चावल का कुल उत्पादन 2018-19 के दौरान रिकॉर्ड 115.63 मिलियन टन अनुमानित है. 2017-18 में यह 112.76 मिलियन टन था. यानी 2.87 मिलियन टन की वृद्धि हुई.
इस साल देश में गन्ने का भी बंपर उत्पादन होने की संभावना है. करीब 400.37 मिलियन टन का अनुमान है. जो 2017-18 की तुलना में 20.46 मिलियन टन अधिक है. पिछले पांच साल में इसका औसत प्रोडक्शन 349.78 मिलियन टन रहा है.
यूं ही नहीं सूखे का सामना कर रहा महाराष्ट्र!
महाराष्ट्र सबसे ज्यादा सूखे की चपेट में है. अगर कृषि वैज्ञानिकों की रिसर्च पर विश्चास करें तो ऐसा यूं ही नहीं है. पानी की सबसे ज्यादा खपत करने वाली कपास और गन्ने की यहां सबसे अधिक खेती होती है. गन्ने के उत्पादन में पहले नंबर पर यूपी, दूसरे पर महाराष्ट्र और तीसरे पर कर्नाटक है. जबकि कॉटन में गुजरात पहले और महाराष्ट्र दूसरे नंबर पर है. धान की फसल पैदा करने में पश्चिम बंगाल पहले, यूपी दूसरे और आंध्र प्रदेश तीसरे नंबर पर है.
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स्रोत: न्यूज़ 18 हिंदी