ਸੰਖਪੁਸ਼ਪੀ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ

ਆਮ ਜਾਣਕਾਰੀ

शंखपुष्पी के कई औषधीय गुण होने के कारण इसे चमत्कारी जड़ी बूटी के रूप में जाना जाता है। इसे ज्यादातर आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके साभी भाग जैसे पत्ते, जड़, तने और अन्य वानस्पतिक भाग काफी दवाइयां तैयार करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। शंखपुष्पी से तैयार दवाइयों का प्रयोग अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, अनिद्रा, पागनपन, हेमेटेमिसिस, कब्ज और अल्सर के इलाज के लिए किया जाता है। यह एक सदाबहार जड़ी बूटी है जिसकी औसतन ऊंचाई 2-3 इंच होती है। इसके पत्ते लम्भाकार, फूल हल्के नीले रंग के और 6-10 काले बीज होते हैं। यह मुख्य रूप से भारत, श्री लंका और मयनमार में उगाई जाती है।  भारत में मेहरौनी और ललितपुर शंखपुष्पी उगाने वाले मुख्य क्षेत्र हैं।

ਜਲਵਾਯੂ

  • Season

    Temperature

    18-35°C
  • Season

    Rainfall

    850-1300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-28°C
  • Season

    Temperature

    18-35°C
  • Season

    Rainfall

    850-1300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-28°C
  • Season

    Temperature

    18-35°C
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    Rainfall

    850-1300mm
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    30-35°C
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    Harvesting Temperature

    18-28°C
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    18-35°C
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    850-1300mm
  • Season

    Sowing Temperature

    30-35°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-28°C

ਮਿੱਟੀ

यह मिट्टी की कई किस्मों जैसे काली मिट्टी से अच्छे जल निकास वाली दोमट मिट्टी में उगाई जा सकती है। यह लाल रेतली दोमट मिट्टी में अच्छे परिणाम देती है। यह दरमियानी मिट्टी जो अच्छे जल निकास वाली हो, में भी उगाई जा सकती है। इस फसल के लिए मिट्टी का 5.5-7 pH होना चाहिए|

ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਿਸਮਾਂ ਅਤੇ ਝਾੜ

Sodhala: इस किस्म के फूल सफेद और नीले रंग के होते हैं।
 
Vishnukarnta (Evolovulus alsinoides): इस किस्म के फूल सिर्फ नीले रंग के होते हैं।

ਖੇਤ ਦੀ ਤਿਆਰੀ

शंखपुष्पी की खेती के लिए, मई के महीने में अच्छी तरह से मिट्टी को भुरभुरा करें| ज़मीन की तैयारी के लिए, बिजाई से पहले खेत की दो बार जोताई करें| फिर मानसून से पहले खेत में रूड़ी की खाद 5-6 टन प्रति एकड़ मिट्टी में मिलाएं| ज़मीन को आवश्यक लम्बाई और चौड़ाई वाले छोटे बैडों में बांट लें|

ਬਿਜਾਈ

बिजाई का समय
इसकी बिजाई मानसून की पहली बारिश के बाद, जुलाई के पहले हफ्ते में की जाती है।
 
फासला
पंक्ति में 30x30 सैं.मी. फासला प्रयोग करें।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई बुरकाव या पनीरी लगाकर की जाती है।
 
शंखपुष्पी के बीज आवश्यक लंबाई और चौड़ाई के तैयार नर्सरी बैडों पर बोयें। बिजाई के बाद बीजों में नमी के लिए पानी की करें।
मुख्य खेत में, 25-30 दिनों में रोपाई की जाती है। रोपाई 30 x30 सैं.मी. के फासले पर करें। खेत में नमी के लिए रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें।

ਬੀਜ ਉਤਪਾਦਨ

बीज की मात्रा

 

बढ़िया विकास के लिए, 4-6 किलो बीजों का प्रयोग बुरकाव द्वारा करें।

ਪਨੀਰੀ ਦੀ ਸਾਂਭ-ਸੰਭਾਲ ਅਤੇ ਰੋਪਣ

शंखपुष्पी के बीज आवश्यक लंबाई और चौड़ाई के तैयार नर्सरी बैडों पर बोयें। बिजाई के बाद बीजों में नमी के लिए पानी की स्प्रे करें।
मुख्य खेत में, 25-30 दिनों में रोपाई की जाती है। रोपाई 30 x30 सैं.मी. के फासले पर करें। खेत में नमी के लिए रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें।

ਖਾਦਾਂ

खेत की तैयारी के समय, जैविक खाद जैसे रूड़ी की खाद दो बार डाली जाती है। एक जोताई के समय और दूसरी बिजाई के समय डालें। सामान्य और कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसल होने के कारण इसे खादों की जरूरत नहीं होती।

ਨਦੀਨਾਂ ਦੀ ਰੋਕਥਾਮ

खेत को नदीन मुक्त करने के लिए लगातार निराई करें। मुख्य रूप से 2-3 निराई की जाती है। पहली निराई बिजाई के बाद 15-20 दिनों में और दूसरी पहली निराई के बाद अगले 1-2 महीनों में की जाती है।

ਸਿੰਚਾਈ

बारिश की ऋतु में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, और शुष्क मौसम में फसल के बचाव के लिए सिंचाई की जरूरत होती है|

ਫਸਲ ਦੀ ਕਟਾਈ

यह पौधा रोपाई के बाद, 4-5 महीनों में जनवरी-मई के महीने में पैदावार देना शुरू कर देता है। अक्तूबर के महीने में फूल निकलने शुरू हो जाते हैं और फिर दिसंबर महीने में बीज विकसित होते हैं। कटाई के लिए पहले खेत को पानी दें और फिर पूरे पौधे को उखाड़ लें। प्रक्रिया के लिए पूरे पौधे का प्रयोग होता है।

ਕਟਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ

कटाई के बाद, फसल को सुखाया जाता है। फिर सूखे हुए पौधे को नाइलोन और पॉलीथीन बैग में पैक किया जाता है। पैक की गई सामग्री को विभिन्न स्थानों पर भेजा जाता है। फसल को नुकसान से बचाने के लिए अच्छी तरह पैक किया जाता है। सूखी सामग्री के उत्पाद जैसे चूर्ण, कैप्सूल, टॉनिक और अन्य उत्पाद तैयार किए जाते हैं|