ਬੇਲ ਦੀ ਫਸਲ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ

ਆਮ ਜਾਣਕਾਰੀ

बेल को पोषक तत्वों और औषधीय गुणों के कारण जाना जाता है| बेल एक घरेलू फल वाला वृक्ष है, जिसकी भारत में धार्मिक रूप में भी बहुत महत्ता है| इसको बंगाली बेल, भारतीय बेल, सुनहरी सेब, पवित्र फल, पथरीला सेब आदि नामों से भी जाना जाता है| यह लिखती पूर्व-एतिहासिक समय से ही जाना जाता है| बेल से तैयार दवाइयाँ दस्त, पेट दर्द, फूड पाईप, मरोड़ आदि के लिए प्रयोग की जाती हैं| यह एक पतझड़ वाला वृक्ष हैं, जिसकी ऊंचाई 6-8  मीटर होती है और इसके फूल हरे-सफ़ेद और मीठी सुगंध वाले होते हैं| इसके फल लम्बाकार  होते हैं, जो ऊपर से पतले और नीचे से मोटे होते हैं| इसका प्रयोग शुगर के इलाज, सूक्ष्म-जीवों से बचाने, त्वचा सड़ने के इलाज, दर्द कम करने के लिए, मास-पेशियों के दर्द, पाचन क्रिया आदि के लिए की जाने के कारण, इसको औषधीय पौधे के रूप में जाना जाता है| यह हिमालय तलहठी, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तरांचल, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, डैकनी पठार और पूर्वी तट आदि क्षेत्रों में पाया जाता है|

ਜਲਵਾਯੂ

  • Season

    Temperature

    35-50°C
  • Season

    Rainfall

    175-200cm
    175-200cm
  • Season

    Sowing Temperature

    35-45°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    10-12°C
  • Season

    Temperature

    35-50°C
  • Season

    Rainfall

    175-200cm
    175-200cm
  • Season

    Sowing Temperature

    35-45°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    10-12°C
  • Season

    Temperature

    35-50°C
  • Season

    Rainfall

    175-200cm
    175-200cm
  • Season

    Sowing Temperature

    35-45°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    10-12°C
  • Season

    Temperature

    35-50°C
  • Season

    Rainfall

    175-200cm
    175-200cm
  • Season

    Sowing Temperature

    35-45°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    10-12°C

ਮਿੱਟੀ

सख्त फसल होने के कारण इसे मिट्टी की व्यापक किस्मों जैसे रेतली मिट्टी और नमक से प्रभावित मिट्टी आदि में उगाया जा सकता है लेकिन यह अच्छी निकास वाली रेतली मिट्टी में उगाने पर यह अच्छे परिणाम देती है। 6-8.5 पी एच वाली मिट्टी में यह अच्छे परिणाम देती है। 

ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਿਸਮਾਂ ਅਤੇ ਝਾੜ

Narendra bael varieties are developed by Narendra Dev University of Agriculture and Technology, Faizabad, Uttar Pradesh

Narendra Bael (NB) 1 and Narendra Bael (NB) 2 are most useful and good yielding variety.

Narendra Bael (NB)-5: - Fruit size is medium having weight of about 1kg. The surface is smooth with round shape, having low mucilage and soft flesh with excellent taste.

Narendra Bael (NB)-6: - Fruit size is medium with about 600g of weight. The surface is round smooth having soft flesh with low mucilage content. They are mild acidic and good in taste.

Narendra Bael (NB)-7:-  Fruit size is very large, flattened round greenish grey in color.

Narendra Bael (NB)-9: - Fruits of this variety are large in size , having oblong shape with low fibre and seed content.

Narendra Bael (NB)-16:- Prolific bearing,  fruits are elliptical round in size having yellow pulp with low fibre content.

Narendra Bael (NB)-17:- Prolific bearer, fruits are average in size with low fibre content;

CISH varieties are developed by Central Institute of Sub-tropical Horticulture, Lucknow, Uttar Pradesh.

CISH B-1: - It is a mid-season variety which matures in April-May. The fruits of this variety are oval-oblong in shape. The fruits are average in size having weight of 1.0kg and are the pulp is dark yellow in color with good flavoring taste. When tree matures it has 50-80kg of weight.

CISH B-2: - It is a dwarf variety and moderately spread. The fruits are oblong-oval in shape and are average in size having 1.80-2.70kg of weight. The pulp is orange yellow in color with good taste. They have low fiber and seed content. The tree at maturity bears upto 60-90kg weight.

Goma Yashi:- Developed by Central Horticultural Experiment Station, Godhra, Gujarat. Trees are dwarf, spineless, prolific bearer and has early maturity. Fruits are bigger in size and yellowish green in color.नरेंद्र बेल वाली किस्में नरेंद्र देव यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऐग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, फैज़ाबाद, उत्तर प्रदेश द्वारा तैयार की गयी हैं|

 
Narendra Bael (NB) 1 or Narendra Bael (NB) 2 सबसे ज्यादा उपयोगी और बढ़िया पैदावार वाली किस्म है|
 
Narendra Bael (NB)-5: इसके फल का आकार दरमियाना होता है, जिसका औसतन भार 1 किलो होता हैं| यह गोल मुलायम, कम गोंद और बहुत ही स्वादिष्ट नर्म गुद्दे वाले होते हैं|
 
Narendra Bael (NB)-6: इसके फल का आकार दरमियाना होता है, जिसका औसतन भार 600 ग्राम होता हैं| यह गोल मुलायम, कम गोंद और नर्म गुद्दे वाले होते हैं| यह हल्के खट्टे और स्वाद में बढ़िया होते हैं|
 
Narendra Bael (NB)-7: इन फलों का आकार बड़ा, समतल गोल और रंग हरा-सफेद होता हैं|
 
Narendra Bael (NB)-9: इन फलों का आकार बड़ा, लम्बाकार होता है और इनमे रेशे और बीजों की मात्रा बहुत कम होती है|
 
Narendra Bael (NB)-16: यह एक बेहतरीन पैदावार वाली किस्म है, जिसके फलों का आकार अंडाकार, गुद्दा पीले रंग का होता है और रेशे की मात्रा कम होती है|
 
Narendra Bael (NB)-17: यह एक बेहतरीन पैदावार वाली किस्म है, जिसके फल औसतन आकार के होते हैं और रेशे की मात्रा कम होती है|
 
CISH किस्में सैंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ सब-ट्रॉपिकल हॉर्टिकल्चर, लखनऊ, उत्तर प्रदेश द्वारा तैयार की गई हैं|
 
CISH B-1: यह मध्य- ऋतु की किस्म हैं, जो अप्रैल-मई में पकती है| इसके फल लम्बाकार-अंडाकार होते हैं| इनका औसतन भार 1 किलो होता है और इसका गुद्दा स्वादिष्ट और गहरे पीले रंग का होता है| वृक्ष पकने पर इनका भार  50-80 किलो होता है|
 
CISH B-2: यह छोटे कद वाली किस्म है, जो दरमियानी फैली होती है| इसके फल लम्बाकार-अंडाकार होते हैं| इनका भार औसतन 1.80-2.70 किलो होता है और इसका गुद्दा स्वादिष्ट और संतरी-पीले रंग का होता है| इसमें रेशे और बीज की मात्रा कम होती है| वृक्ष पकने के समय इसका भार 60-90 किलो होता है|
 
Goma Yashi: यह किस्म सेंट्रल हॉर्टिकल्चर एक्सपेरिमेंट स्टेशन, गोधरा, गुजरात की तरफ से तैयार की गई है| इस किस्म के वृक्ष छोटे कद के, कमज़ोर, ज्यादा पैदावार और जल्दी पकने वाले होते हैं| इसके फलों का आकार बड़ा और रंग पीला-हरा होता है|
 
Pant Aparna, Pant Shivani, Pant Sujata, Pant Urvashi नाम की किस्में जी.बी. पंत यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऐग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, पंतनगर, उत्तराखंड की तरफ से तैयार की गई हैं|
 
Pant Aparna: इसके वृक्ष छोटे कद के, लटकते हुए फूलों वाले, काटों रहित, जल्दी और भारी पैदावार वाले होते हैं| इसके पत्ते बड़े, गहरे हरे और नाशपाती के आकार के जैसे होते हैं| इसके फल आकार में गोल होते हैं, जिनका औसतन भार 1 किलो होता है|
 
Pant Shivani: यह किस्म अगेती मध्य-ऋतु में पायी जाती है| इसके वृक्ष लम्बे, मज़बूत, घने, सीधे ऊपर की ओर बढ़ने वाले, जल्दी और भारी पैदावार वाले होते हैं| इसके फलों का भार 2 से 2.5 किलो होता है|
 
Pant Sujata: इसके वृक्ष दरमियाने कद के होते हैं और लटके और फैले हुए पत्तों वाले, घने, जल्दी और भारी पैदावार वाले होते हैं| इसके फलों का आकार 1 से  1.5 किलो होता है|
 
Pusa Urvashi: यह मध्य-ऋतु की किस्म है| इसके वृक्ष लम्बे, मज़बूत, सीधे बढ़ने वाले, जल्दी और ज्यादा पैदावार वाले होते हैं | इसके फल अंडाकार, लम्बाकार होते हैं | इसके फलों का भार 1.5-2.5 किलो होता है|
 

Pant Aparna, Pant Shivani, Pant Sujata, Pant Urvashi are developed by G.B. Pant university of Agriculture and Technology, Pantnagar, uttarakhand.

Pant Aparna: - Its trees are dwarf with drooping flowers, almost thornless, precocious and heavy bearer. The leaves are large, dark green and pear shaped. Fruits are globose in shape with average weight 1.0 kg.

Pant Shivani: - Found in early mid-season. Trees are tall, vigorous, dense, upright growth, precocious and heavy bearer. The weight of fruit ranges from 2 to 2.5 kg

Pant Sujata: - Trees are medium dwarf with drooping and spreading foliage, dense, precocious and heavy bearer. Fruit weight varied from 1 to 1.5 kg

Pusa Urvashi: - It is mid-season variety. Trees are tall, vigorous, dense, upright growth, precocious and heavy bearer. Fruits are ovoid, oblong. The fruit weight ranges from 1.5 to 2.5 kg.

ਬਿਜਾਈ

बिजाई का समय
फरवरी से मार्च या जुलाई से अगस्त का समय इसकी बिजाई के लिए उचित होता है|
 
फासला
बढ़िया विकास के लिए अंकुरण हुए पौधे 8x8 मीटर फासले पर बोयें और नए पौधों के बीच का फासला 10 x10 मीटर होना चाहिये|    
 
बीज की गहराई
1 मीटर x 1 मीटर x 1 मीटर आकार के गड्ढे खोदें और फिर बेल के नए पौधे को गड्ढों के बीच में लगाएं।
 
बिजाई का ढंग
इसकी बिजाई मुख्य खेत में पनीरी लगा कर की जाती है|
 

ਕਟਾਈ ਅਤੇ ਛੰਗਾਈ

युवा पौधे से पौधे को सीधा बढ़ाने के लिए सिधाई की जाती है। मुख्य तने से 1 मीटर ऊपर से सिरे को काट दें। मरी हुई, बीमार और कमज़ोर शाखाओं को काट दें और सिर्फ 4-6 सेहतमंद अच्छे फासले वाली शाखाएं ही रखें। तने को साफ रखें। आस पास की शाखाओं को निकाल दें। 

ਬੀਜ

प्रजनन
पैच और रिंग बडिंग प्रजनन के लिए प्रयोग किये जाने वाले उचित ढंग हैं| इस ढंग में सफलता की दर ज्यादा होती है|
 
बीज का उपचार
पहले बीजों को लगभग 12-14 घंटों के लिए पानी में भिगो दिया जाता है और फिर हवा में सुखाया जाता है| फिर इनको बोया जाता है| बीजों को पॉलीथिन या तैयार किये बैडों पर उगाया जाता है|
 

ਪਨੀਰੀ ਦੀ ਸਾਂਭ-ਸੰਭਾਲ ਅਤੇ ਰੋਪਣ

मिट्टी में नमी बरकरार रखने के लिए सूखे पत्तों के साथ मल्चिंग करें| तैयार किये गए नर्सरी बैडों पर बीजों की बिजाई करें| बीज 2-3 हफ्ते में अंकुरण हो जाते हैं और पनीरी लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं|
पनीरी और बीज द्वारा लगाएं गये पौधों में बहुत फर्क होता है| इस कमी को दूर करने के लिए, पनीरी लगाकर पौधे तैयार किये जाते हैं| मुख्य पौधे के साथ पैच बडिंग की जाती है और इसकी जड़ें काट कर भी पौधा तैयार किया जाता है| यह दोनों क्रियाएं इस लिए बढ़िया मानी जाती है|
इसकी छंटाई भी करनी चाहिए| बढ़िया आकार वाली 4-6 टहनियाँ ओर ज्यादा बढ़ती है| यह पानी को सोखने वाली स्थितियों के लिए बहुत संवेदनशील होती है, इस लिए इसका ध्यान रखें|
जब पौधा एक साल का हो जाये तो, 10 किलो रूड़ी की खाद, 50 ग्राम नाइट्रोजन, 25 ग्राम फास्फोरस और 50 ग्राम पोटाशियम बीमारियों और कीटों से बचाने के लिए डालें| हर साल विकास दर के अनुसार खादों की मात्रा बढ़ाते रहें| खादें डालने के बाद सिंचाई करना जरूरी है|
 

ਖਾਦਾਂ

खेत की तैयारी के समय 25 किलो रूड़ी की खाद, 1 किलो नीम केक और 1 किलो हड्डियों का चूरा डालें और इन्हें मिट्टी में अच्छी तरह मिलायें।
1 वर्ष के पौधे के लिए 10 किलो रूड़ी की खाद या अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर, नाइट्रोजन 50 ग्राम, फासफोरस 25 ग्राम और पोटाशियम 50 ग्राम प्रति पौधे में डालें। 10 वर्ष के पौधे तक इन मात्राओं को समान अनुपात में बढ़ाते रहें। खादों की पूरी मात्रा जुलाई के महीने में डालें।
 

ਨਦੀਨਾਂ ਦੀ ਰੋਕਥਾਮ

इस फसल में ज्यादा गोड़ाई की जरूरत नहीं होती | पहली गोड़ाई शुरू में पौधों के विकास के समय करें और फिर अगली गोड़ाई पौधे की 2 साल की उम्र में करें |
 

ਸਿੰਚਾਈ

नये पौधों के बढ़िया विकास और जमने के लिए गर्मियों में लगातार और सर्दियों में 1 महीने के फासले पर पानी दें| खुश्क गर्मियों में फल देने वाले वृक्ष को पानी ना दें, क्योंकि इनके पत्तें झड़ते है और शुष्क गर्म मौसम के प्रतिरोधक होते हैं| नये पत्ते निकलते समय पानी दें|

ਪੌਦੇ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ

ਬੇਲ ਕਿ ਤਿਤਲੀ
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
  • नींबू की मक्खी: यह पपीलियो डेमोलियस के कारण होती है| इसकी रोकथाम के लिए नरसरी वाले पौधों पर स्पिनोसेड@60 मि.ली. की स्प्रे 8 दिनों के फासले पर करें|
ਬੇਲ ਦੀ ਤਿਤਲੀ

बेल की तितली: यह बेक्टोसेरा ज़ोनाटा के कारण होती है|

ਪੱਤਿਆਂ ਦੀ ਸੁੰਡੀ

पत्ते खाने वाली सुंडी: यह सुंडी नये पौधे निकलते समय ज्यादा नुकसान करती है और इसकी रोकथाम के लिए थियोडेन 0.1% डालें|

ਫਲਾਂ ਤੇ ਗੰਢਾਂ ਪੈਣਾ
  • बीमारियां और रोकथाम
फलों पर गांठें पड़ना: यह बीमारी जेथोमोनस बिलवई कारण होती है| यह बीमारी पौधे के हिस्सों, पत्तों और फलों पर धब्बे डाल देती है| इसकी रोकथाम के लिए दो-मुँह वाली टहनियों को छाँट दें और नष्ट कर दें या स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट(20 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी)+ कॉपर ऑक्सीक्लोराइड(0.3%) 10-15 दिनों के फासले पर डालें|
ਫਲ ਦਾ ਫਟਣਾ ਤੇ ਡਿੱਗਣਾ

फल का फटना और गिरना: यह दोनों बीमारियां फल की बनावट को बिगाड़ देती है| इसकी रोकथाम के लिए बोरेक्स 0.1% दो बार फूल के खिलने पर और फल के गुच्छे बनने के समय डालें|

ਪੱਤਿਆਂ ਤੇ ਸਫੇਦ ਫੰਗਸ

पत्तों पर सफेद फंगस: यह बीमारी भी बेल की फसल में आम पायी जाती है और इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील सल्फर+क्लोरपाइरीफोस/ मिथाइल पैराथियान+गम एकेशियाँ (0.2+0.1+0.3%) की स्प्रे करें|

ਫਸਲ ਦੀ ਕਟਾਈ

पनीरी लगाने से 6 से 7 साल बाद यह पौधे फल देना शुरू कर देते है| इसकी तुड़ाई जनवरी में की जाती है जब पौधे पीले-हरे दिखने लग जाते है| यह पीले-हरे फल 8 दिनों के लिए रखें, ताकि इनका हरा रंग चला जाये| फलों को उठाने-रखने के समय सावधानी का प्रयोग करें, नहीं तो फल गिरने के साथ इसमें दरार आ सकती है| इससे नयें उत्पाद तैयार करने के लिए पूरी तरह से पके हुए और नरम गुद्दे वाले फल ही प्रयोग करें|

ਕਟਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ

तुड़ाई के बाद फलों की छंटाई करें| फिर फलों को दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए बोरियों या हवा- रहित पैकटों में पैक करें| इनको 15 दिनों के लिए स्टोर किया जाता है| बेल के फलों को ज्यादा समय के लिए स्टोर करने के लिए बनावटी उपचार भी किया जाता है| पके हुए बेल से बहुत किस्म के उत्पाद जैसे कि जूस, स्क्वेश, जैम, टॉफ़ी और पाउडर आदि तैयार किये जाते है|