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ਆਮ ਜਾਣਕਾਰੀ

मूली एक खाद्य जड़ों वाली सब्जी है जो कि क्रूसीफैरी परिवार से संबंधित है। यह उष्णकटिबंधीय और सयंमी क्षेत्र की फसल है। यह एक जल्दी उगने वाली और सदाबहार फसल है। इसकी खाद्य जड़ें विभिन्न रंगो जैसे सफेद से लाल रंग की होती हैं। पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटका, पंजाब और आसाम मुख्य मूली उत्पादक राज्य हैं। मूली विटामिन बी 6, कैल्शियम, कॉपर, मैग्नीश्यिम और रिबोफलेविन का मुख्य स्त्रोत है। इसमें एसकॉर्बिक एसिड, फॉलिक एसिड और पोटाश्यिम भी भरपूर मात्रा में होता है।

ਜਲਵਾਯੂ

  • Season

    Temperature

    18-25°C
  • Season

    Rainfall

    100-225cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-20°C
  • Season

    Temperature

    18-25°C
  • Season

    Rainfall

    100-225cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-20°C
  • Season

    Temperature

    18-25°C
  • Season

    Rainfall

    100-225cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-20°C
  • Season

    Temperature

    18-25°C
  • Season

    Rainfall

    100-225cm
  • Season

    Sowing Temperature

    20-25°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    18-20°C

ਮਿੱਟੀ

इस फसल को मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है पर यह भुरभुरी, रेतली दोमट मिट्टी में अच्छे परिणाम देती है। भारी और ठोस मिट्टी में खेती करने से परहेज़ करें, इसकी जड़ें टेढ़ी होती है| फसल के बढ़िया विकास के लिए मिट्टी का pH 5.5-6.8 होना चाहिए।

ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਿਸਮਾਂ ਅਤੇ ਝਾੜ

Japanese white: यह किस्म नवंबर-दिसंबर महीने में बिजाई के लिए अनुकूल है। इसे भारत में जापान द्वारा लायी गई है। उत्तरी मैदानों में इसकी पिछेती बिजाई के लिए और पहाड़ी क्षेत्रों में जुलाई से सितंबर महीने में इसकी खेती के लिए सिफारिश की गई है। इसकी जड़ें बेलनाकार और सफेद रंग की होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 160 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। 
 
Pusa chetki: यह किस्म अप्रैल-अगस्त में बिजाई के लिए अनुकूल है। यह जल्दी पकने वाली किस्म पंजाब में बीज उत्पादन के लिए खेती करने के लिए अनुकूल है। इसकी जड़ें नर्म, बर्फ जैसी सफेद और मध्यम लंबी होती है। इसकी
औसतन पैदावार 105 क्विंटल प्रति एकड़ और बीजों की उपज 4.5 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Pusa Deshi: यह किस्म उत्तरी मैदानों में बिजाई के लिए अनुकूल हैं। इसकी जड़ें सफेद रंग की होती हैं। यह किस्म बिजाई के बाद 50-55 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। 
 
Pusa Reshmi: यह किस्म अगेती बिजाई के लिए अनुकूल है। यह 50-60 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
Arka Nishant: यह लंबी और गुलाबी जड़ों वाली किस्म है। यह किस्म 50-55 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं।
 
Pusa Himani:  इसकी जड़ें सफेद रंग की और 30-35 सैं.मी. लंबी होती हैं। यह किस्म बिजाई के 50-55 दिनों के बाद पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 130 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Shweta: यह जल्दी पकने वाली किस्म है। यह किस्म बिजाई के 30-35 दिनों के बाद पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 170-180 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Kashi Hans: यह किस्म बिजाई के 40-45 दिनों के बाद पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 170-180 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Jaunpuri Giant or Newari: यह यू पी के नज़दीकी क्षेत्रों और ज़ोनपुर की प्रसिद्ध किस्में है।
 
दूसरे राज्यों की किस्में
 
Rapid Red White Tipped: यह जल्दी पकने वाली यूरोपियन किस्म है। यह 25-30 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। इसकी जड़ें छोटी और चमकदार लाल रंग के साथ सफेद रंग का गुद्दा होता है।
 
Hisar Sel 1: यह किस्म उच्च पैदावार वाली, मध्यम लंबी, सफेद, नर्म और इसकी जड़ें कोमल होती हैं। इसकी औसतन पैदावार 120-130 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
White Icicle: यह दरमियाने कद की यूरोपियन किस्म है। यह 35-45 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसका गुद्दा सफेद, रसीला, करारा और सौम्य होता है। 
 
Punjab Safed: इस देसी किस्म की 30-40 सैं.मी. लंबी जड़ें होती हैं। यह बिजाई के 45 दिनों के बाद पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
 
Chinese pink: इस किस्म के फल का छिल्का चमकदार लाल रंग का होता है और गुद्दा सख्त, कुरकुरा सफेद रंग का होता है। यह किस्म बिजाई के 45 दिनों के बाद पुटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 
Scarlet globe: इस किस्म की जड़ें गोल और छोटी होते हैं। गुद्दा मजबूत, कुरकुरा और सफेद रंग का होता है। यह किस्म बिजाई के 25-30 दिनों के बाद पुटाई के लिए तैयार हो जाती है।
 

ਖੇਤ ਦੀ ਤਿਆਰੀ

खेत की हल से जोताई करें और खेत को नदीनों और ढेलियों रहित करें। प्रत्येक जोताई के बाद सुहागा फेरें। खेत की तैयारी के समय अच्छी तरह से गली हुई रूड़ी की खाद 5-10 टन प्रति एकड़ मिट्टी में मिलाएं| अच्छी तरह से ना गली हुई रूड़ी की खाद को ना डालें। इससे जड़ें दोमुंही हो जाती हैं। बिजाई के लिए समतल बैड या मेढ़ों का ही प्रयोग करें।

ਬਿਜਾਈ

बिजाई का समय
मैदानी क्षेत्रों में, इसकी बिजाई के लिए सितंबर से जनवरी का महीना उपयुक्त होता है जबकि पहाड़ी क्षेत्रों के लिए मार्च  से अगस्त का महीना उपयुक्त होता है। अच्छी गुणवत्ता वाली मूली लेने के लिए नवंबर से दिसंबर के महीने में बिजाई करें।
 
फासला
अच्छी उपज और वृद्धि के लिए मूली को मेड़ों पर बोयें। दो मेंड़ों में 40-45 सैं.मी. और दो पौधों में 6-8 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
अच्छी पैदावार के लिए, बीज को 1.5-3 सैं.मी. गहरा बोयें।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई पंक्तियों में या बुरकाव विधि द्वारा की जा सकती है।
 

ਬੀਜ

बीज की मात्रा
एक एकड़ खेत में 4-5 किलो बीज का प्रयोग करें।
 

ਖਾਦਾਂ

बिजाई के समय गली हुई रूड़ी की खाद, के साथ नाइट्रोजन 20-32 किलो (यूरिया 45-70 किलो), फासफोरस 20 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 125 किलो) और पोटाश 20 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 35 किलो) प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

ਨਦੀਨਾਂ ਦੀ ਰੋਕਥਾਮ

नदीनों की संख्या को जांचने और मिट्टी को हवादार बनाने के लिए निराई और गोडाई करते रहें। बिजाई के दो से तीन सप्ताह बाद पहली गोडाई करें। शुरूआती अवस्था में मेंड़ों पर मिट्टी चढाएं। जब जड़ें विकसित होनी शुरू हो जाएं तो दूसरी बार मेंड़ पर मिट्टी चढ़ाएं।
नदीनों की रासायनिक रोकथाम के लिए नदीनों के अंकुरण से पहले नाइट्रोफेन 0.8 किलो को प्रति एकड़ में स्प्रे करें।
 

ਸਿੰਚਾਈ

मूली की पूरी फसल को तीन से चार सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। बिजाई के बाद पहली सिंचाई करें। यह अच्छे अंकुरण में मदद करेगी। दूसरी सिंचाई फसल पर 3-4 पत्ते निकलने की अवस्था में करें। मिट्टी की किस्म और जलवायु के आधार पर गर्मियों में 6-7 दिनों के अंतराल पर और सर्दियों में 10-12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। अत्याधिक सिंचाई ना करें क्योंकि इससे जड़ों का आकार बेढंगा और उन पर बालों की वृद्धि ज्यादा होती है। खेत में वृद्धि के समय पर्याप्त नमी की मात्रा का भी अच्छे से ध्यान रखा जाना चाहिए। क्योंकि शुष्क हालात जड़ों के विकास पर प्रभाव डालतें हैं। गर्मियों के मौसम में पुटाई से पहले हल्की सिंचाई करें। इससे जड़ें ताजी रहेंगी और उनकी गंध कम होगी।

ਪੌਦੇ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ

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  • हानिकारक कीट और रोकथाम
चेपा: यह मूली का गंभीर कीट है। इसका हमला नए पौधे पर या पकने के समय होता है। हमला दिखने पर,रोकथाम के लिए मैलाथियॉन 50 ई सी 1 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 10 दिनों के अंतराल पर दोबारा दो-तीन बार स्प्रे करें।  
 
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  • बीमारियां और रोकथाम
मुरझाना: पत्तों पर पीले रंग के धब्बे देखे जा सकते हैं। इनका हमला ज्यादातर बारिश वाले मौसम में होता है। फलियों और बीजों पर फंगस लग जाती है और विकास धीमा हो जाता है।
इनका हमला रोकने के लिए, मैनकोजेब 2 ग्राम और कार्बेनडाज़िम 1 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
 
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काली भुंडी और पत्ते की सुंडी: इनका हमला यदि खेत पर दिखाई दें तो, इसे रोकने के लिए मैलाथियॉन  50 ई सी 1 मि.ली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। 10 दिनों के अंतराल पर दोबारा 2-3 बार स्प्रे करें।

ਫਸਲ ਦੀ ਕਟਾਈ

किस्म के आधार पर मूली 45-60 दिनों में पुटाई के लिए तैयार हो जाती है। यूरोपियन किस्में 28-30 दिनों में जब कि एशियाई किसमें 45 से 60 दिनों में पक जाती हैं। पुटाई मुख्यत: पौधे की जड़ों को उखाड़कर की जाती है। पुटाई की गई जड़ों को धोया जाता है और फिर उन्हें आकार के अनुसार छांटा जाता है।

ਕਟਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ

पुटाई के बाद मूली को उनके आकार के अनुसार छांटे। मूली को मंडी में सीधे तौर पर या फिर कई बार बोरियों या टोकरी में पैक किया जाता है। इन्हें 3-4 दिनों के लिए कमरे के तापमान  पर और दो महीनों के लिए 0 डिगरी सेल्सियस, 90-95 डिगरी आर्द्रता पर रखा जा सकता है।

ਬੀਜ ਉਤਪਾਦਨ

बीज लेने के लिए जड़ों का चयन किया जाता है और उन्हें 60 सैं.मी. x 60 सैं.मी. या 60 सैं.मी. x 45 सैं.मी.  के फासले पर बोया जाता है। नाइट्रोजन 38 किलो (यूरिया 84 किलो), फासफोरस 22 किलो (140 किलो), पोटाश 22 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 40 किलो) प्रति एकड़ में डालें। जब फलियां अपना रंग बदलकर पीले रंग की हो जाएं तो ये पुटाई के लिए तैयार होती है। पुटाई के बाद साफ करें, सुखाएं और छंटाई करें।