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ਆਮ ਜਾਣਕਾਰੀ

यह भारत की एक महत्तवपूर्ण फसल है। मिर्च को कड़ी, आचार, चटनी और अन्य सब्जियों में मुख्य तौर पर प्रयोग किया जाता है। इसकी काफी औषधीय विशेषताएं भी हैं इसमें कैंसर रोधी और तुरंत दर्द दूर करने वाले तत्व पाए जाते हैं। यह खून को पतला करने और दिल की बीमारियों को रोकने में भी मदद करती है। मिर्च विटामिन का उच्च स्त्रोत है। भारत, संसार में मिर्च पैदा करने वाले देशों में मुख्य देश हैं। आंध्र प्रदेश, महांराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, तामिलनाडू, बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान मिर्च पैदा करने वाले भारत के मुख्य राज्य हैं।
 
उत्तर प्रदेश में, बरेली और खुरजा मुख्य मिर्च उत्पादक राज्य हैं। उत्तर प्रदेश में लगभग 17.5 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्र में 0.93 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादकता के साथ मिर्च की खेती की जाती है। 
 

ਜਲਵਾਯੂ

  • Season

    Temperature

    18-40°C
  • Season

    Rainfall

    625-1500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    35-40°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-40°C
  • Season

    Temperature

    18-40°C
  • Season

    Rainfall

    625-1500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    35-40°C
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    Harvesting Temperature

    35-40°C
  • Season

    Temperature

    18-40°C
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    Rainfall

    625-1500mm
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    Sowing Temperature

    35-40°C
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    Harvesting Temperature

    35-40°C
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    Temperature

    18-40°C
  • Season

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    625-1500mm
  • Season

    Sowing Temperature

    35-40°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    35-40°C

ਮਿੱਟੀ

मिर्च रेतली से भारी चिकनी हर तरह की मिट्टी में उगाई जा सकती है। अच्छे विकास के लिए हल्की उपजाऊ और पानी के अच्छे निकास वाली ज़मीन जिसमे नमी सोखने की क्षमता हो, इसके लिए अनुकूल होती है। हल्की ज़मीनें भारी ज़मीनों के मुकाबले अच्छी क्वालिटी की पैदावार देती हैं। मिर्च के अच्छे विकास के लिए ज़मीन की pH 6-7 अनुकूल है।

ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਿਸਮਾਂ ਅਤੇ ਝਾੜ

Arka Meghana: High yielding hybrid with resistant to powdery mildew and viruses. Fruits are of length 10.6cm and width 1.2 cm. Fruits are dark green and turn to red on maturity. Gives average yield of 13.5t/acre green chilli and 2 t/acre dry chilli.

Arka Sweta: High yielding hybrid for fresh market. Suitable for cultivation in kharif and rabi seasons under irrigated conditions. Fruits length is 11-12 cm, width 1.2-1.5 cm. They are smooth and medium pungent. Fruits are light green and turn red at maturity. Tolerant to viruses. Yield 13t/acre (fresh) and 2t/acre (dry).

Kashi Early: Plants of are tall (100-110 cm height) without nodal pigmentation on dull green stems and bear pendant fruits. Fruits are long (8-9 x 1.0-1.2 cm), attractive, dark green and turn bright red at physiological maturity, pungent with smooth surface. First picking of the green fruits starts at about 45 days after transplanting. Average yield of this hybrid is 100 qtl/acre (red ripe).

Kashi Surkh: Plants are semi determinate (1-1.2 m), erect and nodal pigmentation on stem. Fruits are light green, straight, length 11-12cm, suitable for green as well as red fruit production. First harvest starts after 55 days of transplanting. Green fruit yield is 100 qtl/acre.

Kashi Anmol: Plants are determinate, dwarf (60-70 cm) with nodal pigmentation on stem and bear green attractive pendant fruits. First picking starts from 55 days after transplanting. It gives average yield of 80qtl/acre.

Pant C-1: This variety is easily distinguishable from the other varieties because it has upright fruiting pods. The pods are highly pungent, relatively small, broader at the base and narrow towards the tip. It is moderately resistant to mosaic and leaf curl virus. The green pod yield of this variety is 110qtl/acre. The dry pod yield is about 20qtl/acre.

Kashmir Chilly : Fruits are long, fleshy and deep red in color. Suitable for cultivation in winter.

Hot Portugal: The fruits are deep green in color but gets red when mature. The fruit are 11-15 cm long and gives an average yield of 40-50 qtl/acre.

Soorajmukhi: Short plant, deep color fruits, red at maturity and is excessive bitter in taste. Fruits are in bunches of 8-12. It gives an average yield of 31-40qtl/acre.

Sweet Banana: Fruits are light yelow in color which becomes red at maturity. The fruits are 18-20cm long and are excessive bitter in taste. It gives an average yield of 40qtl/acre.

Hungarian Wax: Fruits are red at maturity, 10-16cm long and is less bitter in taste. It gives an average yield of 31-33qtl/acre.

Other States variety

Pusa Jwala: Plants are dwarf, bushy, light green. Fruits are 9-10 cm long; light green, highly pungent, fairly tolerant to thrips and mites. Average yield of 85qtl/acre (green) and 18qtl/acre (dry).

Pusa Sadabahar: Plants are erect, perennial (2-3 years), 60-80cm tall, fruits are 6-8cm long, born in clusters with 6-14 fruits/cluster, ripe fruits dark red, highly pungent, resistant to CMV, TMV and leaf curl complex, first picking in 75-80 days after transplanting. It gives an average yield of 95qtl/acre (green) and 20qtl/acre (dry).

NP-46A: High yielding variety with medium size fruit. It gives average yield of 40qtl/acre.

G 5: Chilly is thick, glossy with deep red color. Gives average yield of 20qtl/acre.

G 3: Suitable for cultivation under rainfed and irrigated conditions. Chilly are having high pungency. Gives average yield of 16qtl/acre.

Pant C 2, Jawahar, Mathaniya Long, RCH 1

Kashi Vishwanath

Sankeshwar: Mild flavor, long and red color variety. It is suitable for export.

Byadgi (Kaddi) :  Mild flavor, long and bright red color variety.

Dabbi: Mild flavor, long and thick blackish variety.

Tomato chilly

Tadappally

S9 Mundu, Sattur s4, Sangli Sannam, Nalchetti, Nagpur, Madras Pari, , Kanthari white, Guntur Sannam, Ellachipur Sannam.

ਖੇਤ ਦੀ ਤਿਆਰੀ

खेत को तैयार करने के लिए 2-3 बार जोताई करें और प्रत्येक जोताई के बाद डलियों को तोड़ें। बिजाई से 15-20 दिन पहले रूड़ी की खाद 150-200 क्विंटल प्रति एकड़ डालकर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें। टमाटर और मिर्च की खेती एक ही या नज़दीक वाले खेत में ना करें, क्योंकि दोनों की बीमारियां एक जैसी होती हैं और इस कारण एंथ्राक्नोस और बैक्टीरिया वाली बीमारीयों के बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है।

ਬਿਜਾਈ

बिजाई का समय
मिर्च की खेती पूरे वर्ष की जाती है। खरीफ की फसल के लिए मई-जून और गर्मियों की फसल के लिए फरवरी - मार्च का समय मिर्च की रोपाई के लिए उपयुक्त होता है।
 
फासला
खरीफ के मौसम में 60-75 सैं.मी.  x 45 सैं.मी. और सिंचित क्षेत्रों में 60 x 60 सैं.मी. फासले का प्रयोग करें।
 
बीज की गहराई
नर्सरी में बीजों को 3-5 सैं.मी. की गहराई में बोयें और फिर मिट्टी से ढक दें।
 
बिजाई का ढंग
इसकी मुख्य खेत में रोपाई की जाती है|
1 मीटर चौड़े और आवश्यकतानुसार लंबे बैड बनाएं। कीटाणु रहित कोकोपिट 300 किलो, 5 किलो नीम केक को मिलाए और 1-1किलो एज़ोसपीरिलियम और फासफोबैक्टीरिया भी डालें। उपचार किए हुए बीज ट्रे में एक बीज प्रति सैल बोयें। बीज को कोकोपिट से ढक दें और ट्रे एक- दूसरे के साथ रखें। बीज अंकुरन तक इन्हें पॉलीथीन से ढक दें। नर्सरी में बीज बीजने के बाद बैडों को 400 मैश नाइलोन जाल या पतले सफेद कपड़े से ढक दें। यह नए पौधों को कीड़े-मकौड़े और बीमारियों के हमले से बचाता है। 6 दिनों के बाद, ट्रे में लगे नए पौधों को एक एक करके जाल की छांव के नीचे बैडों में लगाएं। बीज अंकुरन तक पानी देने वाले बर्तन की मदद से पानी दें। बिजाई के 18 दिन बाद 19:19:19 की 0.5 % (5 ग्राम प्रति लीटर ) की स्प्रे करें।
 

ਬੀਜ

बीज की मात्रा
किस्मों के लिए 200 ग्राम बीज और हाइब्रिड के लिए 80-100 ग्राम बीज प्रति एकड़ में प्रयोग करें।
 
बीज का उपचार
फसल को मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारीयों से बचाने के लिए बीज का उपचार करना बहुत जरूरी है। बिजाई से पहले बीज को 3 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कार्बेनडाज़िम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद, बीज को 5 ग्राम ट्राइकोडरमा या 10 ग्राम सीडियूमोनस फ्लोरीसैन्स से प्रति किलो बीज का उपचार करें और छांव में रखें। फिर यह बीज, बिजाई के लिए प्रयोग करें। फूलों को पानी देने वाले बर्तन से पानी दें। उखेड़ा रोग से फसल का बचाने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 2.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15 दिनों के अंतराल पर नर्सरी में छिड़कें।
फसल को सूखा, रस चूसने वाले कीटों से बचाने के लिए जड़ों को ट्राइकोडरमा हरज़ियानम 20 ग्राम $ 0.5 मि.ली. को प्रति लीटर इमीडाक्लोप्रिड में मिलाकर रोपाई से पहले जड़ों को इस मिश्रण में डुबोयें। नये पौधों की रोपाई के बाद VAM के साथ नाइट्रोजन डालने से सुपर फासफेट 50 प्रतिशत के साथ 25 प्रतिशत नाइट्रोजन को बचाया जा सकता है। 
 

ਖਾਦਾਂ

खादें (किलोग्राम प्रति एकड़)

  UREA SSP MOP
Rainfed 110 100 35
Irrigated 182 150 40

 

तत्व (किलोग्राम प्रति एकड़)

  NITROGEN PHOSPHORUS POTASH
Rainfed 50 16 20
Irrigated 84 24 24

 

बारानी क्षेत्रों के लिए, नाइट्रोजन 50 किलो (110 किलो यूरिया), फासफोरस 16 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 100 किलो) और पोटाश 20 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 35 किलो) प्रति एकड़ डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा पनीरी खेत में लगाने के समय डालें। रोपाई के बाद बाकी बची नाइट्रोजन दो बराबर हिस्सों में 30वें और 50वें दिन डालें।
 
सिंचित क्षेत्रों के लिए, नाइट्रोजन 84 किलो (182 किलो यूरिया), फासफोरस 24 किलो (सिंगल सुपर फासफेट 150 किलो) और पोटाश 24 किलो (म्यूरेट ऑफ पोटाश 40 किलो) प्रति एकड़ डालें। रोपाई से पहले 24 किलो नाइट्रोजन (यूरिया 52 किलो), फासफोरस की पूरी मात्रा और पोटाश की आधी मात्रा प्रति एकड़ में डालें। बाकी बची नाइट्रोजन को पांच भागों में बांटें और पोटाश को तीन बराबर भागों में बांटें। नाइट्रोजन 12 किलो (यूरिया 26 किलो) को बिजाई के बाद 45वें, 60वें, 75वें, 95वें और 115वें दिन डालें और पोटाश 4 किलो को बिजाई के बाद 45वें, 60वें, और 75वें दिन डालें।
 
पानी में घुलनशील खादें  : रोपाई के 10-15 दिनों के बाद 19:19:19 के साथ सूक्ष्म तत्व 2.5 से 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। कम तापमान के कारण पौधा कम तत्व लेता है जिससे पौधे की वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है। ऐसे हालातों में फोलियर स्प्रे पौधे की वृद्धि में मदद करती है। वानस्पतिक विकास की अवस्था में 19:19:19 या 12:61:00 @ 3-5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। अच्छी वृद्धि और अच्छी उपज के लिए ब्रासीनोलाइड 50 मि.ली. को 150 लीटर पानी में डालकर रोपाई के 40-50 दिन बाद 10 दिनों के अंतराल पर दो बार स्प्रे करें।
 
अच्छी उपज के साथ अच्छे फल लेने के लिए 12:61:00 (मोनोअमोनियम फास्फेट) 10 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे फूल निकलने से पहले डालें। जब फूल निकलने शुरू हो जायें तो शुरूआती दिनों में बोरोन 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की स्प्रे करें। यह फल और फूल के गिरने से रोकने में मदद करेगी।कभी कभी फलों पर काले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। यह कैलशियम की कमी के कारण होता है। इसके लिए कैलशियम नाइट्रेट 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। ज्यादा तापमान पर फल गिरते दिखाई देते हैं। NAA@50ppm (50 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी) की स्प्रे फूल निकलने की अवस्था पर करें। सलफेट ऑफ पोटाश (00:00:50+18S) फलों के विकसित होने के दौरान 3-5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। यह फलों को विकास और रंग को अच्छा बनाती है। फलों में दरारें पड़ना फलों की गुणवत्ता और 20 प्रतिशत तक कीमत को कम कर देता है। इसके लिए फल पकने के समय चीलेटड बोरोन (सोलुबोर) 200 ग्राम को 200 लीटर पानी में डालकर प्रति एकड़ में स्प्रे करें। पौधे की वृद्धि को सुधारने के लिए फूलों और फलों पर सीविड अर्क (बायोज़ाइम/धनज़ाइम) 3-4 मि.ली. को प्रति लीटर पानी में मिलाकर महीने में दो बार करें। मिट्टी में नमी बनाकर रखें।
 

ਨਦੀਨਾਂ ਦੀ ਰੋਕਥਾਮ

45 दिनों तक गोडाई करें, कही की मदद से मिट्टी चढ़ाएं और खेत को नदीन मुक्त रखें। यदि नदीनों की रोकथाम ना की जाये तो यह 70-90 % पैदावार कम कर देते हैं। रोपाई से पहले मुख्य खेत में पैंडीमैथालीन 1 लीटर प्रति एकड़ में डालें। यदि नदीनों की संख्या ज्यादा हो तो उनके अंकुरण के बाद सेन्कोर 800 मि.ली की स्प्रे प्रति एकड़ में करें। नदीनों की रोकथाम के साथ मिट्टी में नमी को बनाए रखने के लिए मलचिंग एक प्रभावी तरीका है।

ਸਿੰਚਾਈ

मिट्टी में नमी के आधार पर सर्दियों में 6-7 दिनों के अंतराल पर और गर्मियों में 4-5 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। फूल निकलने की अवस्था सिंचाई के लिए गंभीर होती है। इस अवस्था पर पानी की कमी से फल गिरते हैं जिससे फलों के उत्पादन में कमी होती है। विभिन्न खोजों में यह पाया गया है, कि प्रत्येक पखवाड़े में आधा इंच सिंचाई से जड़ों में नमी ज्यादा होती है जिससे वे अधिक उपज देती हैं।

ਪੌਦੇ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ

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  • हानिकारक कीट और रोकथाम
फल छेदक: इसकी सुंडियां फल के पत्ते खाती हैं फिर फल में दाखिल होकर पैदावार का भारी नुकसान करती हैं। प्रभावित फलों और पैदा हुई सुंडियों को इक्ट्ठा करके नष्ट कर दें। हैलीकोवेरपा आरमीगेरा या स्पोडोपटेरा लिटूरा के लिए फेरोमोन जाल 5 एन ओ एस प्रति एकड़ लगाएं।
 
इस कीट को रोकने के लिए ज़हर की गोलियां जो कि बरैन 5 किलो, कार्बरिल 500 ग्राम, गुड़ 500 ग्राम और आवश्यकतानुसार पानी की बनी होती है, डालें। यदि इसका नुकसान दिखे तो क्लोरपाइरीफॉस + साइपरमैथरिन 30 मि.ली.+टीपोल 0.5 मि.ली. को 12 लीटर पानी में डालकर पावर स्प्रेयर से स्प्रे करें या एमामैक्टिन बैंजोएट 5 प्रतिशत एस जी 4 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी या फलूबैंडीआमाइड 20 डब्लयु डी जी 6 ग्राम को प्रति 10 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें।
 
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मकौड़ा जूं: यह सारे संसार में पाया जाने वाला कीट है। यह बहुत सारी फसलों जैसे आलू, मिर्चें, दालें, नर्मा, तंबाकू, कद्दू, अरिंड, जूट, कॉफी, निंबू, संतरे, उड़द, काली मिर्च, टमाटर, शकरकंदी, आम, पपीता, बैंगन, अमरूद आदि को नुकसान करता है। नए जन्में और बड़े कीट पत्तों को नीचे की ओर से खाते हैं। प्रभावित पत्ते कप के आकार के हो जाते हैं। नुकसान बढ़ने पर पत्ते झड़ने और सूखना, टहनियों का टूटना आदि शुरू हो जाता है।

यदि खेत में पील जुंएं और भूरी जुंएं का हमला दिखे तो क्लोरफैनापायर 1.5 मि.ली. प्रति लीटर एबामैक्टिन 1.5 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे करें। यह खतरनाक कीड़ा है जो कि फसल के पैदावार का 80 प्रतिशत तक नुकसान करता है। इसे रोकने के लिए स्पाइरोमैसीफेन 22.9 एस सी 200 मि.ली. प्रति एकड़ प्रति 180 लीटर पानी की स्प्रे करें।

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चेपा: यह कीड़ा आमतौर पर सर्दियों के महीने और फसल के पकने पर नुकसान करता है। यह पत्ते का रस चूसता है। यह शहद जैसा पदार्थ छोड़ता है। जिससे काले रंग की फंगस पौधे के भागों कैलिकस और फलियों आदि पर बन जाती है और उत्पाद की क्वालिटी कम हो जाती है। चेपा मिर्चों में चितकबरा रोग फैलाने में मदद करता है, जिससे पैदावार में 20 से 30 प्रतिशत नुकसान हो जाता है।
 
इसे रोकने के लिए एसीफेट 75 एस पी 5 ग्राम प्रति लीटर या मिथाइल डेमेटॉन 25 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। पनीरी लगाने के 15-60 दिनों के बाद दानेदार कीटनाशक जैसे कार्बोफिउरॉन, फोरेट 4-8 किलो प्रति एकड़ की स्प्रे भी लाभदायक सिद्ध होती है।
 
white_fly chilly.jpg

सफेद मक्खी: यह पौधों का रस चूसती है और उन्हें कमज़ोर कर देती है। यह शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जिससे पत्तों के ऊपर दानेदार काले रंग की फंगस जम जाती है। यह पत्ता मरोड़ रोग को फैलाने में मदद करते हैं। इनके हमले को मापने के लिए पीले चिपकने वाले कार्ड का प्रयोग करें, जिस पर ग्रीस और चिपकने वाला तेल लगा होता है।

नुकसान के बढ़ने पर एसेटामिप्रिड 20 एस पी 4 ग्राम प्रति 10 लीटर या ट्राइज़ोफॉस 2.5 मि.ली. प्रति लीटर या प्रोफैनोफॉस 2 मि.ली. प्रति लीटर की स्प्रे करें। 15 दिनों के बाद दोबारा स्प्रे करें।

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  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर सफेद धब्बे: इस बीमारी से पत्तों के नीचे की ओर सफेद रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। यह बीमारी पौधे को अपने खाने के तौर पर प्रयोग करती है, जिससे पौधा कमज़ोर हो जाता है। यह बीमारी विशेष तौर पर फलों के गुच्छे बनने पर या उससे पहले, पुराने पत्तों पर हमला करती है पर यह किसी भी समय फसल पर हमला कर सकती है। अधिक नुकसान के समय पत्ते झड़ जाते हैं।
 
खेत में पानी ना खड़ा होने दें और साफ सुथरा रखें। इसे रोकने के लिए हैक्साकोनाज़ोल को स्टिकर 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर स्प्रे करें। अचानक बारिश पड़ने से इस बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। ज्यादा हमला होने पर घुलनशील सलफर 20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी की 2-3 स्प्रे 10 दिनों के फासले पर करें।
 
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फाइटोफथोरा झुलस रोग: यह फाइटोफथोरा कैपसीसी नाम की फंगस के कारण होता है। यह मिट्टी में पैदा होने वाली बीमारी है और ज्यादातर कम निकास वाली ज़मीनों में और सही ढंग से खेती ना करने वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। बादलवाई वाला मौसम भी इस बीमारी को फैलाने में मदद करता है।
 
इस बीमारी को रोकने के लिए फसली चक्र में बैंगन, टमाटर, खीरा, पेठा आदि कम से कम तीन वर्ष तक ना अपनायें। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 250 ग्राम प्रति 150 पानी की स्प्रे करें।
 
thrips chilly.jpg
थ्रिप्स: यह ज्यादातर शुष्क मौसम में पाया जाने वाला कीड़ा है। यह पत्तों का रस चूसता है और पत्ता मरोड़ रोग पैदा करता है। इससे फूल भी झड़ने लग जाते हैं।
इनका हमला मापने के लिए नीले चिपकने वाले कार्ड 6-8 प्रति एकड़ लगाएं। इनके हमले को कम करने के लिए वर्टीसिलियम लिकानी 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे की जा सकती है।
 
यदि इसका हमला अधिक हो तो इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस एल या फिप्रोनिल 1मि.ली. प्रति लीटर पानी या फिप्रोनिल 80 प्रतिशत डब्लयु पी 2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी या एसीफेट 75 प्रतिशत डब्लयु पी 1.0 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे करें या थाइमैथोक्सम 25 प्रतिशत डब्लयु जी 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
wilt chilly.png
उखेड़ा रोग: यह बीमारी मिट्टी में ज्यादा नमी और घटिया निकास के कारण फैलती है। यह मिट्टी से पैदा होने वाली बीमारी है। इससे तना मुरझा जाता है। यह बीमारी नए पौधों को अंकुरन से पहले ही नष्ट कर देती है। यदि यह बीमारी नर्सरी में आ जाये तो सारे पौधे नष्ट हो जाते हैं।
 
इसे रोकने के लिए पौधों के नजदीक मिट्टी में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 250 ग्राम या कार्बेनडाज़िम 200 ग्राम प्रति 150 लीटर पानी डालें। पौधे का उखेड़ा रोग जो जड़ गलन के कारण होता है, की रोकथाम के लिए जड़ें ट्राइकोडरमा बायो फंगस 2.5 किलो प्रति 500 लीटर पानी डालें।
 
anthrocanse chilly.jpg
एंथ्राक्नोस: यह बीमारी कोलैटोट्रीचम पीपेराटम और सी कैपसिसी नाम की फंगस के कारण होती है। यह फंगस गर्म तापमान, अधिक नमी के कारण बढ़ती है। प्रभावित हिस्सों पर काले धब्बे नज़र आते हैं। धब्बे आमतौर पर गोल, पानी जैसे और काले रंग की धारियों वाले होते हैं। ज्यादा धब्बों वाले फल पकने से पहले ही झड़ जाते हैं, जिससे पैदावार पर बुरा असर पड़ता हैं|
 
इसकी रोकथाम के लिए प्रॉपीकोनाज़ोल या हैक्साकोनाज़ोल 1 मि.ली प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें।
 
yellow mosaic Virus chilly.JPG

चितकबरा रोग: इस बीमारी से पौधे पर हल्के हरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। शुरूआत में पौधे का विकास रूक जाता है। पत्तों और फलों पर पीले, गहरे पीले और पीले-सफेद गोल धब्बे बन जाते हैं। बिजाई के लिए हमेशा तंदरूस्त और निरोगी पौधों का ही प्रयोग करें। मिर्च के साथ एक ही फसल खेत में बार बार ना लगाएं। मक्की या ज्वार की दो लाइनें, मिर्च की हर पांच लाइनें बाद हवा के बहाव के विपरीत बोयें। प्रभावित पौधे उखाड़कर खेत से दूर नष्ट कर दें।

चेपे की रोकथाम के लिए एसीफेट 75 एस पी 1 ग्राम प्रति लीटर या मिथाइल डैमेटन 25 ई सी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी की स्प्रे करें। मिट्टी में दानेदार कीटनाशक कार्बोफिउरॉन, फोरेट 4-8 किलो प्रति एकड़ पनीरी खेत में लगाने के 15 से 60 दिन बाद डालें।

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बैक्टीरियल पत्तों पर धब्बा रोग : यह रोग आमतौर पर वर्षा के मौसम में फैलता है। नए पत्तों और पील-हरे और पुराने पत्तों पर गहरे और पानी जैसे धब्बे पड़ जाते हैं। अधिक प्रभावित पत्ते पीले पड़ जाते हैं और झड़ जाते हैं। यह बीमारी तने पर भी पाई जाती है, जिससे टहनियां सूख जाती हैं और कैंकर नाम का रोग पैदा हो जाता है। इससे फल के ऊपर गोल आकार के पानी जैसे पीले घेरे वाले धब्बे पड़ जाते हैं।
 
इसे रोकने के लिए प्रॉपीकोनाज़ोल 25 प्रतिशत ई सी 200 मि.ली. या क्लोरोथैलोनिल 75 प्रतिशत डब्लयु पी 400-600 ग्राम प्रति 150-200 लीटर पानी की स्प्रे करें। यदि नुकसान दिखे तो स्ट्रैपटोसाइकलिन 1 ग्राम + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 400 ग्राम प्रति 200 लीटर पानी की स्प्रे करें।
 

ਫਸਲ ਦੀ ਕਟਾਈ

मिर्चों की तुड़ाई हरा रंग आने पर करें या फिर पकने के लिए पौधे पर ही रहने दें। मिर्चों का पकने के बाद वाला रंग किस्म पर निर्भर करता है। अधिक तुड़ाइयां लेने के लिए यूरिया 10 ग्राम प्रति लीटर और घुलनशील K @ 10 ग्राम प्रति लीटर पानी (1 प्रतिशत प्रत्येक का घोल) की स्प्रे 15 दिनों के फासले पर कटाई के समय करें। पैकिंग के लिए मिर्चें पक्की और लाल रंग की होने पर तोड़ें। सुखाने के लिए प्रयोग की जाने वाली मिर्चों की पूरी तरह पकने के बाद ही तुड़ाई करें।

ਕਟਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ

मिर्चों को पहले सुखाया जाता है फिर आकार के आधार पर छांटने के बाद पैक किया जाता है और स्टोर कर लिया जाता है।