ਮਲੱਠੀ ਦੀ ਫਸਲ

ਆਮ ਜਾਣਕਾਰੀ

इसे ‘मीठी जड़’ के रूप में जाना जाता है और इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार करने के लिए किया जाता है। इसकी जड़ों से काफी प्रकार की दवाइयां तैयार की जाती हैं। मुलेठी से तैयार दवाइयों का प्रयोग त्वचा की समस्याओं, पीलिया, अल्सर, ब्रोंकाइटिस इत्यादि का इलाज करने के लिए किया जाता है। यह 1-2 मीटर की औसत ऊंचाई के साथ वार्षिक झाड़ी है। इसके फूल जामुनी से सफेद नीले रंग के होते हैं जिसकी लंबाई 0.8-1.2 सैं.मी. होती है। इसके फलों में काफी बीज होते हैं और 2-3 सैं.मी. लंबे होते हैं। जड़ें स्वाद में मीठी होती हैं और इनकी कोई गंध नहीं होती। यह दुनिया भर में ग्रीक, चीन, मिस्र और भारत में पाया जाता है। इसका मूल एशिया और दक्षिणी यूरोप के कुछ हिस्से हैं। भारत में पंजाब और उप हिमालय में इसकी खेती की जाती है।
 

ਜਲਵਾਯੂ

  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    8-18°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    8-18°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    8-18°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C
  • Season

    Temperature

    15-30°C
  • Season

    Rainfall

    50-100cm
  • Season

    Sowing Temperature

    8-18°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    15-25°C

ਮਿੱਟੀ

इसके सख्तपन के कारण इसकी खेती मिट्टी की किस्मों जैसे तेजाबी और हल्की क्षारीय में की जाती है। इसे रेतली दोमट उपजाऊ मिट्टी, जिसका pH 6-8.2 हो ,  में बढ़िया पैदावार देती है|

ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਿਸਮਾਂ ਅਤੇ ਝਾੜ

G. glabra: यह किस्म तुर्की, ईरान, ईराक, मध्य-एशिया और उत्तर-पश्चिमी चीन के क्षेत्रों में पाई जाती है| इसकी आगे तीन अन्य किस्में है: G. glabra viz. Spanish and Italian licorice (G. glabra var. typical), Russia licorice (G.glabra var. glandulifera)and Persian and Turkish licorice (G.glabra var. violacea).
 
G. uralensis: यह किस्म  मध्य-एशिया और उत्तर-पश्चिमी चीन और मंगोलिया के पूर्वी भागों में पाई जाती है|
 
G.inflata: यह किसम केवल चीन-द जिनजियांग उईगुर के उत्तर-पूर्वी भागों और निजी क्षेत्रों में पाई जाती है|

ਖੇਤ ਦੀ ਤਿਆਰੀ

मुलेठी की खेती के लिए, खेत को अच्छी तरह से समतल करें। मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा बनाने के लिए, ज़मीन की अच्छी तरह से जोताई करें और पानी ना खड़ा होने दें|

ਬਿਜਾਈ

बिजाई का समय
जनवरी - फरवरी के महीने में नर्सरी तैयार करें। फरवरी-मार्च या जुलाई-अगस्त के महीने में बिजाई  की जा सकती है।
 
फासला
रोपाई का फासला 90x45 सैं.मी. होना चाहिए।
 
बिजाई का ढंग
बिजाई सीधे या पनीरी लगा कर की जा सकती है।

ਬੀਜ

बीज की मात्रा
पौधे की अच्छी वृद्धि के लिए 100-120 किलो प्रति एकड़ तने के भागों का प्रयोग करें| बैड की गहराई 6-8 सैं.मी. होनी चाहिए।

ਪਨੀਰੀ ਦੀ ਸਾਂਭ-ਸੰਭਾਲ ਅਤੇ ਰੋਪਣ

बिजाई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार करें। प्रजनन के लिए तने या जड़ को लें। बिजाई के लिए 15-25 सैं.मी. लंबी जड़ या तना जिसकी 2-3 आंखे हों , लें। मुख्य खेत में बिजाई सीधे की जाती है। 
 
बिजाई के बाद बसंत ऋतु के दौरान हल्की सिंचाई जरूर करें। सिंचाई इस तरह की जानी चाहिए ताकि जड़ें या तना खुद को मिट्टी में स्थापित कर सके। रोपाई फरवरी - मार्च या जुलाई -अगस्त में की जा सकती है।

ਖਾਦਾਂ

इसे किसी खाद की जरूरत नहीं होती। यदि मिट्टी हल्की हो तो, खेत की तैयारी के समय रूड़ी की खाद मिट्टी में डालें और मिक्स करें|  मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए मलचिंग की जाती है।

ਨਦੀਨਾਂ ਦੀ ਰੋਕਥਾਮ

खेत को नदीनों से मुक्त करने के लिए निराई- गोडाई की जाती है। पहले साल में 3-4 बार खुरपे की सहायता से गोड़ाई करें, फिर अगले सालों में 2 गोड़ाईयां करें|

ਸਿੰਚਾਈ

गर्मियों के सूखे मौसम में 30-45 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें और सर्दियों में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। फसल को कुल 7-10 सिंचाइयां दी जा सकती हैं। पानी की स्थिरता से बचा जाना चाहिए क्योंकि इससे जड़ गलन की बीमारी होती है।

ਪੌਦੇ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ

ਮਕੌੜਾ ਜੂੰ
  • हानिकारक कीट और रोकथाम
मकोड़ा जूं: यह कीट ज्यादातर सूखे गर्मियों के मौसम में हमला करती है।
 
इस बीमारी से बचाव के लिए पत्तों पर पानी की स्प्रे करें।
ਸਲੱਗ
घोंगा: यह हरे पत्तों को खाकर पौधे को नुकसान पहुंचाते है|
 
इस बीमारी से बचाव के लिए पौधे के आस-पास कॉपर की तार या डायटोमेसियस लगाएं।
ਸੁੰਡੀ
सुंडी: यह हरे पत्तों को खाती है जिसका प्रभाव पौधे पर पड़ता है।
 
सुंडी की रोकथाम के लिए नीम के तेल या बैसिलस थरिंगिएनसिस  डालें।
ਪੱਤਿਆਂ ਦੇ ਧੱਬੇ
  • बीमारियां और रोकथाम
पत्तों पर सफेद धब्बे: यह एक फंगस वाली बीमारी है, जिससे पत्तों पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं।
 
इसकी रोकथाम के लिए पोटाशियम बाइकार्बोनेट डालें।

ਫਸਲ ਦੀ ਕਟਾਈ

ढ़ाई या तीन साल में पौधा उपज देना शुरू कर देता है। उद्देश्य के अनुसार कटाई की जाती है। जैसे स्थानीय बाजार में ही भेजनी है या दूर के स्थानों पर । कटाई मुख्यत: सर्दियों (नवंबर से दिसंबर) महीने में की जाती है ताकि उच्च मात्रा में ग्लाइसिराइजिक एसिड प्राप्त किया जा सके। उत्पाद तैयार करने के लिए जड़ों का प्रयोग किया जाता है।

ਕਟਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ

कटाई के बाद जड़ों को धूप में सुखाया जाता है फिर छंटाई की जाती है। जड़ों को हवा रहित बैग में डाला जाता है। सूखी जड़ों से कई तरह के उत्पाद जैसे चाय, पाउडर आदि बनाए जाते हैं।