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ਆਮ ਜਾਣਕਾਰੀ

बहुत सारे फायदे होने के कारण नीम को एक अद्भुत वृक्ष कहा जाता है। नीम के बीजों से निकला तेल दवाइयों और कीड़ों को रोकने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके पत्ते छोटी माता नाम की बीमारी के लिए प्रयोग किये जाते हैं। दक्षिण भारत में इसकी लकड़ी सामान बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। नीम की खल खादों के तौर पर भी प्रयोग की जाती है। इसे चिकित्सक वृक्ष के तौर पर भी प्रयोग किया जाता है। यह 100 फुट लंबा सदाबहार वृक्ष है। यह बहार ऋतु में खिलता है और सफेद फूल निकालता है।

ਜਲਵਾਯੂ

  • Season

    Temperature

    25-30°C
  • Season

    Rainfall

    400-1200mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-30°C
  • Season

    Temperature

    25-30°C
  • Season

    Rainfall

    400-1200mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-30°C
  • Season

    Temperature

    25-30°C
  • Season

    Rainfall

    400-1200mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-30°C
  • Season

    Temperature

    25-30°C
  • Season

    Rainfall

    400-1200mm
  • Season

    Sowing Temperature

    25-30°C
  • Season

    Harvesting Temperature

    20-30°C

ਮਿੱਟੀ

इसे शुष्क, पथरीले, चिकनी, खारी मिट्टी और पी एच 8.5 की हालतों में भी उगाया जा सकता है। अच्छे जल निकास वाली ज़मीनें इस फसल के लिए फायदेमंद हैं।

ਖੇਤ ਦੀ ਤਿਆਰੀ

जमीन की जोताई करें और सारे कंकड़ों को तोड़ें।

ਬਿਜਾਈ

बिजाई का समय
मॉनसून के समय में चार से छः महीने पुराने पनीरी के पौधों को लगाना चाहिए।
 
फासला
बीजों को 15-20 सैं.मी. के फासले पर बीजें और 1-1.5 सैं.मी. गहरे बीजें और बिजाई के बाद हल्की सिंचाई करें।
 
बीज की गहराई
बीजों को 1-1.5 सैं.मी. गहरें बीजें।
 
बिजाई का ढंग
नीम को सीधा गड्ढा खोद कर और पनीरी लगाकर बीजा जा सकता है।
 
पनीरी लगाकर बीजना
वृक्ष से पके हुए बीज इकट्ठा करें। छिल्का उतारें और पानी से साफ करें और 3-7 दिनों तक छांव में सुखाएं। 10 मीटर लंबे, 1 मीटर चौड़े और 15 सैं.मी. लंबे बैड बनाएं। रूड़ी की खाद, रेत और मिट्टी को 1:1:3 की मात्रा में मिलाएं और बैडों पर 1:1:5 सैं.मी. गहरे बीजें और हल्की सिंचाई करें। पनीरी 5-6 दिनों में तैयार हो जाती है फिर प्लास्टिक के लिफाफों में बरेती, चिकनी रेतली और रूड़ी की खाद 1:1:1:1 के अनुपात में डालें और पनीरी को इनमें लगाएं। 
 
खेत में लगाना
4-6 महीने के और 15-20 सैं.मी.  लंबे पौधे खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाते हैं। 30x30x30 सैं.मी. के गड्ढे 5x5 मीटर के फासले पर उखाड़ें और सावन के महीने पनीरी को इनमें लगाएं। वर्षा के अनुसार 2-3 दिन बाद सिंचाई करें। बाद में पानी 7-10 दिनों के बाद  भी दिया जा सकता है।

ਬੀਜ

बीज की मात्रा
एक गड्ढे में एक बीज बोयें।

ਖਾਦਾਂ

खादें (ग्राम/प्रति एकड़)

VAM AZOSPIRILLUM PHOSPHOBACTERIA
22 20 20

 

50 ग्राम VAM, 20 ग्राम एज़ोसपाईरीलियम और फास्फोबैक्टीरिया जरूर डालें।

ਨਦੀਨਾਂ ਦੀ ਰੋਕਥਾਮ

गोडाई पके हुए बूटों में करें और अपने खेत को साफ और नदीन रहित रखें। यदि नदीन ज्यादा हों तो पौधे का विकास रूक सकता है। नीम की फसल के पूरे विकास के लिए दो साल सिंचाई और गोडाई बहुत जरूरी है। गोडाई से हवा का बहाव और जड़ों का अच्छा विकास होता है।
 

ਸਿੰਚਾਈ

फसल के विकास के लिए पहले दो साल तक नदीनों की रोकथाम और सिंचाई करनी बहुत जरूरी है। प्रत्येक गोडाई के बाद सिंचाई करें। यदि पानी की कमी हो तो 10 दिनों के फासले पर अकेले-अकेले बूटे को पानी दें। पौधों के आस-पास पराली बिछाकर पानी बचाया जा सकता हैं।

ਫਸਲ ਦੀ ਕਟਾਈ

3-5 साल बाद फल बनने शुरू हो जाते हैं। उत्तरी भारत में मार्च-अप्रैल में और जून-जुलाई में फल बनते हैं। वर्षा और मिट्टी की किस्म के अनुसार इसकी पैदावार 30-100 किलो प्रति वृक्ष हो सकता है। भराई के लिए बीजों को छांव में सुखाएं। फफूंदी से बचाने के लिए इसे पटसन की बोरी में भरें। यदि बीज को एक महीने से ज्यादा समय के लिए रखा जाये तो पौधे का विकास रूक सकता है। यदि तुरंत बिजाई करनी हो तो बीज को ना सुखाएं।

ਕਟਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ

नीम के बहुत सारे फायदे हैं इसकी लकड़ी सामान बनाने के लिए और पत्ते भेड़ों को खिलाने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। नीम के बीजों से 20-30 प्रतिशत तेल निकलता है। इसके तेल में अजादी रैकटिन नाम का पदार्थ निकलता है। जिसे कीड़े भगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।