ਖੇਤੀਬਾੜੀ

ਜਲਵਾਯੂ
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Temperature
15-40°C -
Rainfall
300-400 mm -
Sowing temperature
15-20°C30-37°C -
Harvesting temperature
30-40°C15-20°C
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300-400 mm -
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ਮਿੱਟੀ
इसे ज्यादा और कम गहरी वाली मिट्टी के इलावा रेतली और चिकनी मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। इसकी खेती बंजर और बारानी इलाकों में की जा सकती है इसकी खेती लवण वाली, खारी और दलदली मिट्टी में भी की जा सकती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए पानी को सोखने में सक्षम रेतली मिट्टी, जिस में पानी के निकास का अनुकूल प्रबंध हो , ठीक रहती है।
ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਿਸਮਾਂ ਅਤੇ ਝਾੜ
ਖੇਤ ਦੀ ਤਿਆਰੀ
खेत को जोताई करें और फिर समतल करें। खेत में से नदीनों को निकाल दें।
ਪ੍ਰਜਣਨ
यह आमतौर पर कलमों और टहनियों के द्वारा लगाया जाता है। कत्था बेर आमतौर पर जड़ों के लिए प्रयोग किया जाता है। बेर के बीजों को 17-18 प्रतिशत नमक के घोल में 24 घंटों के लिए भिगो कर रखें फिर अप्रैल के महीने नर्सरी में बिजाई करें। पंक्ति से पंक्ति का फासला 15 सैं.मी. और पौधे से पौधे का फासला 30 सैं.मी होना चाहिए। 3 से 4 सप्ताह बाद बीज अंकुरन होना शुरू हो जाता है और पौधा अगस्त महीने में कलम लगाने के लिए तैयार हो जाता है। टी के आकार में काटकर जून-सितंबर महीने में इसे लगाना चाहिए।
ਬਿਜਾਈ
ਕਟਾਈ ਅਤੇ ਛੰਗਾਈ
हर साल पूरी तरह पौधे की कटाई और छंटाई जरूरी होती है। यह नर्सरी के समय शुरू होती है। ध्यान रखें कि नर्सरी में एक तने वाला पौधा हो। खेत में रोपण के समय पौधे का ऊपर वाला सिरा साफ हो और 30-45 सैं.मी. लंबी 4-5 मजबूत टहनियां हों। पौधे की टहनियों की कटाई करें ताकि टहनियां धरती पर ना फैल सकें। पौधे की सूखी, टूटी हुई और बीमारी वाली टहनियों को काट दें। मई के दूसरे पखवाड़े में पौधे की छंटाई करें जब पौधा ना बढ़ रहा हो।
ਅੰਤਰ-ਫਸਲਾਂ
इसमें पहले तीन से चार साल अन्य फसलों की बिजाई कर सकते हैं जैसे कि छोले, मूंग और काले मांह आदि शुरूआती वर्षों में इस फसल के साथ लगा सकते हैं। इस तरह यह फसलें ज्यादा आमदन देती हैं और ज़मीन में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती हैं।
ਖਾਦਾਂ
स्थान से स्थान पर खादों की मात्रा विभिन्न होती है। मिट्टी की जांच के आधार पर खादों की मात्रा डालें। गाय के गोबर की पूरी मात्रा मई महीने में डालें। खादों को दो भागों में बांटे। पहले भाग को जुलाई-अगस्त महीने में और दूसरे भाग को फलों के विकास की शुरूआती अवस्था में डालें।
ਨਦੀਨਾਂ ਦੀ ਰੋਕਥਾਮ
नदीनों के अंकुरण से पहले अगस्त महीने के पहले पखवाड़े में 1.2 किलोग्राम डयूरॉन प्रति एकड़ में डालें। नदीनों के पैदा हो जाने की सूरत में जब यह 15 से 20 सैं.मी. तक लंबे हो जायें तो इनकी रोकथाम के लिए 1.2 लीटर गलाईफोसेट या 1.2 लीटर पैराकुएट का प्रति 200 लीटर पानी में घोल तैयार करके प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।
ਸਿੰਚਾਈ
आमतौर पर लगाएं पौधों को जल्दी सिंचाई की जरूरत नहीं होती पौधा शुरूआती समय में होता है तो इसे ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती। फल बनने के समय पानी की जरूरत होती है। इस पड़ाव के समय तीन से चार सप्ताह के फासले पर मौसम के हिसाब से पानी देते रहें। मार्च के दूसरे पखवाड़े में सिंचाई बंद कर दें।
ਪੌਦੇ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ

- हानिकारक कीट और रोकथाम

पत्तों की सुंडी : यह कीड़ा पौधे के पत्ते और फल को खा जाता है। इसके हमले के कारण फल की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
इसका हमला होने पर कीड़े को हाथ से उठाकर खत्म कर देना चाहिए। 750 ग्राम कार्बरिल का प्रति 250 लीटर पानी में घोल तैयार करके छिड़काव करना चाहिए।


पत्तों पर फंगस : इसका हमला होने पर पत्तों के निचली ओर काले रंग की फफूंदी लगनी शुरू हो जाती है। इस कारण पत्तों का रंग पीला पड़ जाता है। हमला ज्यादा होने पर पत्ते गिरने लग जाते हैं।
इसका हमला दिखाई देने पर 300 ग्राम कॉपर ऑक्सी क्लोराइड का प्रति 100 लीटर पानी में घोल तैयार करके छिड़काव करना चाहिए।

फलों पर काले धब्बे : बेर के फल के ऊपर छोटे काले धब्बे दिखने शुरू हो जाते हैं। इस बीमारी के लक्षण फरवरी महीने में दिखाई देते हैं। हमला बढ़ने पर फल गिरने शुरू हो जाते हैं।
इसकी रोकथाम के लिए 250 ग्राम मैनकोजेब 75 डब्लयू पी का प्रति 100 लीटर पानी में घोल तैयार करके जनवरी महीने से लेकर फरवरी के मध्य तक 10 से 15 दिनों के फासले पर छिड़काव करना चाहिए।
ਫਸਲ ਦੀ ਕਟਾਈ
फलों की पहली तुड़ाई पौधे के 2 से 3 साल का होने पर करनी चाहिए। फलों की तुड़ाई अच्छी तरह पकने के बाद ही करनी चाहिए। फल को जरूरत से ज्यादा पकने नहीं देना चाहिए, क्योंकि इससे फल की गुणवत्ता और स्वाद पर बुरा प्रभाव पड़ता है। फल का सही आकार और किस्म के हिसाब से रंग बदलने पर ही तुड़ाई करनी चाहिए।
ਕਟਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ
तुड़ाई के बाद खराब और कच्चे फलों को अलग कर देना चाहिए और फलों को उनके आकार के हिसाब से अलग अलग कर देना चाहिए। फलों को छंटाई करने के बाद इन्हें सही आकार वाले गत्ते के डिब्बे, लकड़ी की टोकरी या जूट की बोरियों में पैक करना चाहिए।तुड़ाई के बाद खराब और कच्चे फलों को अलग कर देना चाहिए और फलों को उनके आकार के हिसाब से अलग अलग कर देना चाहिए। फलों को छंटाई करने के बाद इन्हें सही आकार वाले गत्ते के डिब्बे, लकड़ी की टोकरी या जूट की बोरियों में पैक करना चाहिए।