सोयाबीन फसल को सूखे से बचाने के लिए किसान ये करें

July 14 2021

सोयाबीन फसल को सूखे से बचाने के लिए किसान ये करें –कई क्षेत्रों में बोवनी के बाद विगत कुछ दिनों से वर्षा के अभाव में सोयाबीन की फसल प्रभावित हुई है. ऐसी स्थिति में फसल को सूखे से बचाने के लिए सलाह है कि निराई-गुड़ाई, डोरा-कुल्पा चलायें या पुरानी फसल के अवशेषों (गेहूँ /चना का भूसा@ 2.5 टन/हे ) से पलवार लगाएं. साथ ही यह भी सलाह है कि सुविधानुसार भूमि में दरारें पड़ने से पहले ही फसल की सिंचाई करें या अनुशंसित एन्टीट्रांस्पिरेन्ट जैसे पोटेशियम नाइट्रेट (1%) या मेग्नेशियम कार्बोनेट अथवा ग्लिसरॉल (5%) का छिड़काव करे।

  1. सूखे की स्थिति में लोह तत्व की अनुपलब्धता के कारण सोयाबीन की ऊपरी पत्तियां पीली होने (पत्तियों की शिराएँ हरी रहते हुए पीलापन) के समाचार है।  ऐसी स्थिति में सूचित किया जाता है कि पर्याप्त वर्षा होने पर फसल का पीलापन अपने आप समाप्त हो जायेगा. समय का इंतज़ार करे।
  2. उत्पादन की दृष्टि से सोयाबीन की बोवनी हेतु जुलाई के प्रथम सप्ताह तक का समय अनुकूल होता है. अतः जिन क्षेत्रों में अभी तक सोयाबीन की बोवनी नहीं हुई है, वहाँ पर्याप्त वर्षा होने पर शीघ्र पकनेवाली सोयाबीन की किस्मों को 30 सेमी कतारों की दूरी पर 25 प्रतिशत बीज दर बढ़ाकर बोवनी करें या कम समयावधि वाली किसी अन्य उपयुक्त फसल की बोवनी करें ।  
  3. सोयाबीन फसल को प्रारंभिक 45 दिन तक खरपतवार मुक्त रखना अत्यंत आवश्यक है. अतः कृषकगण अपनी सुविधा अनुसार खरपतवार नियंत्रण की विभिन्न अनुशंसित विधियों (डोरा/कुलपा/हाथ से निंदाई/रासायनिक खरपतवारनाशक) में से किसी एक का प्रयोग करें. सोयाबीन फसल के लिए अनुशंसित खरपतवारनाशकों की सूची नीचे दी गई है ।
  4. जिन कृषकों ने बोवनी पूर्व या बोवनी के तुरंत बाद उपयोगी खरपतवारनाशक का छिडकाव किया है, वे 20-30 दिन की फसल होने पर डोरा/कुलपा चलाएं।
  5. जिन किसानों ने सोयाबीन की बोवनी के तुरंत बाद उपयोगी खरपतवारनाशक (जैसे डायक्लोसुलम, सल्फेंट्राजोन/पेंडिमेथालिन आदि) का प्रयोग नहीं किया हो, ऐसे कृषकों को सलाह है कि पर्णभक्षी इल्लियों से सुरक्षा
  6. हेतु फूल आने से 4-5 दिन पहले अपनी फसल पर क्लोरइंट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी. (150 मिली./हे) का छिड़काव करे।  इससे अगले 25-30 दिनों तक इल्लियों से सुरक्षा मिलेगी ।
  7. खरपतवार नाशक एवं कीटनाशक के अलग-अलग छिड़काव में होने वाले व्यय को कम करने एवं एक साथ उपयोग करने हेतु उनकी संगतता बाबत किए  गए अनुसन्धान परीक्षणों के आधार पर सोयाबीन में निम्न कीटनाशकों एवं खरपतवार नाशकों को मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है: क्लोरइंट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी. (150 मिली./हे) या इन्डोक्साकार्ब 15.8 ई.सी. (333 मिली/हे) या क्विनाल्फोस 25 ई.सी. (1500 मिली/हे) के साथ अनुशंसित खरपतवारनाशक जैसे इमज़ेथापायर 10 एस.एल. (1 ली/हे) या क्विज़लोफोप इथाइल 5 ई.सी. (1 ली/हे)।
  8. जैविक सोयाबीन उत्पादन में रूचि  रखने वाले कृषक गण पत्ती खाने वाली इल्लियों (सेमीलूपर, तम्बाखू की इल्ली)की छोटी अवस्था की रोकथाम हेतु बेसिलस थुरिन्जिएन्सिस अथवा ब्युवेरिया बेसिआना (1.0 ली./हेक्टे.) का प्रयोग कर सकते है।
  9. सोयाबीन की फसल में तम्बाखू की इल्ली एवं चने की इल्ली के प्रबंधन के लिए बाजार में उपलब्ध कीट-विशेष फिरोमोन ट्रैप्स एवं वायरस आधारित एन.पी.वी. (250 एल.ई./हेक्टे.) का उपयोग करे।
  10. यह भी सलाह है कि सोयाबीन की फसल में पक्षियों की बैठने हेतु “T” आकार के बर्ड-पर्चेस लगाएं।  इससे कीट-भक्षी पक्षियों द्वारा भी इल्लियों की संख्या कम करने में सहायता मिलती है.
  11. महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में सोयाबीन की फसल पर सोयाबीन मोज़ेक वायरस व पीला मोज़ेक वायरस के लक्षण देखे गए हैं. अतः सलाह है कि तत्काल रोगग्रस्त पौधों को खेत से उखाड़कर निष्कासित करें तथा इन रोगों को फ़ैलाने वाले वाहक जैसे एफिड एवं सफ़ेद मक्खी की रोकथाम हेतु पूर्वमिश्रित कीटनाशक थायोमिथोक्सम +लैम्ब्डा सायहेलोथ्रिन (125 मिली/हे) या बीटासायफ्लुथ्रिन+इमिड़ाक्लोप्रिड (350 मिली./हे) का छिडकाव करे।  इनके छिडकाव से तना मक्खी का भी नियंत्रण किया जा सकता है. यह भी सलाह है कि “सफ़ेद मक्खी” या एफिड के नियंत्रण हेतु कृषकगणअपने खेत में विभिन्न स्थानों पर पीला स्टिकी ट्रैप लगाएं.

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Source: krishakjagat