सोयाबीन का उत्पादन बढ़ाने के लिये कुछ बांतों का रखें ध्यान

December 15 2017

 

 

सोयाबीन फसल पर कृषि मेला और प्रदर्शनी

 

इंदौर. भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के संस्थापक निदेशक डा. प्रेम स्वरूप भटनागर ने सोयाबीन उत्पादक किसानों को सलाह दी है कि वे सोयाबीन फसल की समय पर बुवाई करें, एक महीने के भीतर खरपतवार पर नियंत्रण और कीटनाशक का प्रयोग अनुशंसित मात्रा में करने के साथ फसल में पानी की कमी या अधिकता नहीं होने दें तो सोयाबीन का उत्पादन बढ़ सकता है. गत दिनों इंदौर स्थित भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के 31 वें स्थापना दिवस पर आयोजित सोयाबीन की फसल पर कृषि मेला और प्रदर्शनी में डा. भटनागर ने कहा कि सोयाबीन की फसल की कटाई और गहाई भी विज्ञानिक तरीके से करने के बाद उचित भंडारण करना चाहिये. फसल की कटाई के बाद खेत में आग नहीं लगायें बल्कि गहरी जुताई करें ताकि फसल के अवशेषों की खाद बन जायेगी जिससे खेत की उर्वर शक्ति बढ़ेगी.

 

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के पूर्व निदेशक और संस्थान की अनुसंधान समिति के अध्यक्ष डा. एस.पी. तिवारी ने कहा कि किसानों को संगठित होकर फारमर्स प्रोड्यूसर कम्पनी बनानी चाहिये तथा नवाचार तथा विविधीकरण के जरिये उत्पादन बढ़ाने के साथे आमदनी भी बढ़ायें ताकि राज्य और केंद्र सरकार की मंशा के अनुरूप किसानों की आय दोगुना हो सके.

 

कृषि मेला और प्रदर्शनी में आयोजित संगोष्ठी में दलहन विकास बोर्ड, भोपाल के निदेशक डा. ए.के. तिवारी ने बताया कि मध्य प्रदेश में देश में कुल दलहन उत्पादान का 20 प्रतिशत उत्पादन होता है. केंद्र सरकार ने देश में तिलहन और दलहन विकास के लिये 46 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है. इसी तरह प्रधानमंत्री फसल बीमा के लिये 10 हजार करोड़ रूपये का प्रावधान किया है. तिलहन विकास के राष्ट्रीय सलाहकार डा. एस. के दलाल ने बताया कि भारत में प्रति व्यक्ति खाद्य तेल की खपत 17 किलोग्राम प्रतिवर्ष है. खाद्य तेल आयात करने के लिये 73 हजार करोड़ रूपये खर्च होते हैं. उन्होने बताया कि केंद्र सरकार ने सोयाबीन के आयात पर रोक लगा दी है ताकि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सके. भारत सरकार के कृषि एवं सहकारी विभाग के निदेशक डा. टी.पी. सिंह ने विश्वास व्यक्त किया कि किसान नई तकनीक, उन्नत और प्रमाणिक बीज, वैज्ञानिकों की सलाह और अनुशंसा के अनुसार खेती करेंगे तो भारत निश्चित ही सोयाबीन उत्पादन में विश्व में पहले स्थान पर आ सकता है.

 

कार्यक्रम के आरम्भ में भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. वी.एस. भाटिया ने बताया कि देश में सोयाबीन का औसत उत्पादन 11-12  क्विटल प्रति हेक्टेयर अहि जबकि कुछ किसान उन्नात तकनीक और प्रामाणिक बीज का प्रयोग कर 30-32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन ले रहे हैं. उन्होने बताया कि इस संस्थान ने 100 से अधिक उन्नत किश्में विकसित की हैं तथा जल्दी पकने और बिना उबालकर खा सकने वाली उन्नत किस्मे विकसित की जा रही हैं.

 

कार्यक्रम के दौरान अतिथियों ने सोयाबीन का उत्पादन करने वाले गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के पांच प्रगतिशील किसानों को स्मृतिचिन्ह, प्रमाणपत्र और दो-दो हजार रूपये की राशि प्रदान कर सम्मानित भी किया.  कृषि मेला और प्रदर्शनी स्थल पर सोयाबीन के खाद्य पदार्थ बनाने जैसे सोया दूध, सोया पनीर, सोया नट्स, पकौड़े बनाने का सजीव प्रदर्शन भी किया गया. संगोष्ठी के तकनीकी सत्र में कृषि वैज्ञानिकों ने सोयाबीन के बीज, बीजोपचार, फसल की बुवाई, कीट एवं खरपतवार नियंत्रण, कीटनाशक का छिड़ाकाव, कटाई, गहाई और भंडारण जैसे अनेक महत्वपूर्ण विषयों की जानकारी दी तथा इनसे सम्बंधित किसानों की संकाओं का समाधान किया. इसी अवसर पर अतिथियों ने सोयाबीन उत्पादन की प्ररणादायक सफलता की गाथायें पुस्तक और किसानों के लिये उपयोगी मोबाईल एप का लोकार्पण किया. कार्यक्रम में मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान से बड़ी संख्या में किसानों ने हिस्सा लिया इनमें महिला किसानों की उल्लेखनीय संख्या रही. कार्यक्रम का संचालन डा. सिंह ने किया. डा. बी.यू. दुपारे ने आभार माना.

 

 – डा. भटनागर

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