रोस्टस और पेट्रोपस प्रजाति के जिन चमगादड़ों के शरीर से निकला कोरोना वायरस दुनिया भर में कहर ढा रहा है, बरेली में भी उनकी तादाद हजारों में है। विशेषज्ञों का मानना है कि बेशक इन चमगादड़ों के शरीर में कई तरह के वायरस होते हैं लेकिन देश में ऐसी कोई मिसाल नहीं है जब उन्होंने इंसानों को कोई बड़ा नुकसान पहुंचाया हो। उल्टे फसलों में लगने वाले कीड़ों को खाकर वे सैकड़ों सालों से किसानों से दोस्ती निभाते आ रहे हैं।
रोस्टस को किसानों का सबसे अच्छे मित्र माना जाता है। रात के अंधेरे में पेड़ों से उतरकर वे खेतों में तमाम तरह के कीड़े खाकर उन्हें फसलों को नुकसान पहुंचाने से रोकते हैं। ये चील व कौओं की तरह मांसाहारी भी नहीं होते। फलों को खाकर जीवित रहते हैं। आम जैसी फसलों के सीजन में किसानों को नुकसान भी होता है मगर कुल मिलाकर इन्हें दुश्मन मानने के बजाय दोस्त के तौर पर ही देखा जाना चाहिए।
भारत में चमगादड़ नहीं खाए जाते इसलिए खतरा नहीं पर शोध हो जाए तो बेहतर
आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रवीश अग्रवाल कहते हैं कि चीन में चमगादड़ों को खाए जाने की वजह से यह वायरस मनुष्य के शरीर में पहुंचकर संक्रमण की वजह बना लेकिन भारत में कहीं चमगादड़ नहीं खाए जाते हैं। ऐसे में इस चमगादड़ से भारत में कोरोना संक्रमण फैलने की आशंका भी नहीं है। हालांकि अगर एहतियातन भ्रम दूर करने के लिए बरेली में पाए जाने वाले चमगादड़ों पर शोध करा लिया जाना बेहतर रहेगा।
चमगादड़ों के शरीर में हजारों सालों से है कोरोना वायरस
आईएमए उपाध्यक्ष डॉ. विनोद पागरानी का कहना है कि चमगादड़ों में कोरोना वायरस हजारों सालों से है मगर कभी मनुष्यों में ट्रांसफार्म नहीं हुआ। आईसीएमआर की कहती है कि करीब एक हजार सालों में एक बार ही ऐसा होने की आशंका है। देखा जाए तो मनुष्यों में जो संक्रमण फैला है वह नोवल कोरोना वायरस का है जो लोगों को गंभीर बीमार बनाता है और उनके संपर्क में आने वालों को भी चपेट में ले सकता है। बरेली में मिलने वाले चमगादड़ खतरनाक नहीं हैं।
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स्रोत: अमर उजाला